सतर्कता ही विकल्प

सतर्कता ही विकल्प

बलात्कार कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिस पर बार-बार लिखा जाए और बार-बार लोग उसे प़ढ्ें। फिर भी, बच्चों से बलात्कार जैसी दिल दहलाने वाली जो वारदातें सामने आई हैं, उनकी भर्त्सना बहुत जरूरी है। बच्चों से यौन अपराध परिवार और प़डोस के साथ ही स्कूलों तक में होता है। बच्चे किस पर भरोसा करें? भारत का अनुभव यह है कि यह देश अपने भीतर की बुराइयों को अनदेखा करने पर भरोसा रखता है और अपनी हर बुराई को पश्चिम पर थोपकर खुद पाक-साफ हो लेता है कि इसकी अपनी संस्कृति बुराइयों और विकृतियों से आजाद है। यह देश अपने लोगों की शारीरिक और मानसिक जरूरतों को भी मानने से इंकार कर देता है, अपने इतिहास को मानने से इंकार कर देता है। सो, बच्चों के यौन शोषण को लेकर कोई बात नहीं हो सकती और जब ऐसा शोषण करने वाले लोग अपने जुर्म को दबा-छुपाकर ऐसी हरकतों को जारी रख पाते हैं, तो उनमें से कुछ लोग बलात्कारी होते हैं्। छोटे बच्चों से बलात्कार, और उसके साथ-साथ उनसे दिल दहला देने वाली हिंसा, रातों-रात पैदा होने वाली नीयत नहीं है। यह धीरे-धीरे मौका पाकर, ब़ढकर इस हद तक पहुंचने वाली हिंसा और विकृति है। अगर समाज जल्द इस पर रोक नहीं लगा सकता, तो इसका ब़ढते जाना तय है। बच्चों को सेक्स अपराधों से बचाना इसलिए जरूरी है कि यह हिफाजत उनका बुनियादी हक है। ऐसे जख्म जिंदगी के आखिर तक भर नहीं पाते। इससे देश के भविष्य में बच्चों का उतना योगदान नहीं हो पाता जितना कि इन जख्मों के बिना हो सकता था। यानी एक बच्चे को तबाह करने से उस समाज का भविष्य भी तबाह होता है। भारतीय समाज को पुलिस और सरकार का मुंह देखने के बजाय अपने बच्चों की हिफाजत खुद करने की सारी कोशिशें करनी चाहिए्। सारी सावधानी पहले खुद बरत लेनी चाहिए और उसके बाद जाकर सरकार से, पुलिस से कोई उम्मीद जायज मानी जा सकती है। जब परिवार के पहचान के लोग घर के भीतर बलात्कार करें, तो इस हिंसा के शिकार बच्चों को बचाने के लिए पुलिस पहले तो पहुंच ही नहीं सकती। बाद में भी पुलिस का दखल तभी हो सकता है जब इन बच्चों की बातों पर भरोसा करके घर वाले पुलिस तक पहुंचें्। इसलिए हर घर को, हर मोहल्ले और इमारत को, हर स्कूल और टीम को अपने बच्चों की हिफाजत के बारे में पहले खुद सोचना होगा। बच्चों को समझदार बनाना होगा। बच्चों को स्कूलों में सावाधानी के लायक शारीरिक शिक्षा देनी होगी। बहरहाल, सरकार और पुलिस को भी अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए सतर्क रहना होगा। लुभावने नारे लगाकर राजनीति और सामाजिक आंदोलन के लोग टीवी कैमरों पर जगह तो पा सकते हैं, लेकिन इससे समाज के भीतर का खतरा कम नहीं होगा। सिर्फ पुलिस को हर मर्ज की दवा मान लेना, और हर हादसे पर पुलिस को सजा दिलवा देने की जिद करना, असल मर्ज को अनदेखा करना होगा।

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