क्षेत्रीय असंतुलन की धमक

क्षेत्रीय असंतुलन की धमक

हिंद महासागर में मालदीव भारत का महत्वपूर्ण सुरक्षा सहयोगी रहा है। हाल की घटनाओं ने स्थिति में एक रणनीतिक परिवर्तन का अंदेशा पैदा कर दिया है। मालदीव ने हिंद महासागर में होने वाले बहुराष्ट्रीय समुद्री युद्धाभ्यास में शामिल होने से इंकार किया है। मालदीव ने इस कदम के जो तार्किक आधार दिए हैं उससे भारत के सुरक्षा प्रबंधकों को सतर्क हो जाना चाहिए। उन्होंने मालदीव के कदम से जु़डी आसमान में लिखी भविष्यवाणी को प़ढ लिया होगा। मालदीव के इस कदम से निकलने वाला संदेश काफी असहज करने वाला है। वैसे यदि मालदीव ने हिंद महासागर में होने जा रहे युद्धाभ्यास को लेकर चीन द्वारा दर्ज कराई गई क़डी आपत्ति से कोई संकेत लेकर इसमें शामिल ना होने का अपना निर्णय लिया होगा तो इससे हिंद महासागर में शक्ति संतुलन में गंभीर परिवर्तन नजर आएगा। भारत मालदीव का इकलौता सुरक्षा साझीदार रहा है। युद्धपोत ल़डाकू विमान आदि से लेकर मालदीव के सुरक्षाकर्मियों को प्रशिक्षण देने और वहां का निगरानी तंत्र दुरुस्त करने तक सारे कार्य भारत के हवाले रहे हैं्। अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की पूरी इबारत लिखने का काम करने के एवज में मालदीव से इतनी तो अपेक्षा की ही जा सकती है कि वह भारत की महत्वाकांक्षी क्षेत्रीय गतिविधि में अपनी उपस्थिति अनिवार्य रूप से दर्ज कराए।मालदीव की अनुपस्थिति प़डोसियों के प्रति भारत के वर्तमान रुख में गंभीर कमी दर्शाएगी। यहां भी हालात कुछ वैसे ही रहे जैसे कि नेपाल के साथ थे। भारत ने मालदीव पर अपनी मजबूत पक़ड बनाए रखने के लिए प्रयास तब किया जब वह ब़डे सैन्य व आर्थिक सामर्थ्य वाले क्षेत्रीय महाशक्ति के पाले में जाने की कोशिश कर रहा था। मोदी सरकार को इस समय जरूरत है कि वह अपने संवेदनशील प़डोसियों के साथ सक्रियता के साथ संवाद करे, एक ऐसा राजनीतिक अस्त्र जिसकी मोदी सरकार ने अक्सर तुनकमिजाज प़डोसियों के साथ व्यवहार में उपेक्षा की है। यद्यपि चीन ज्यादा संसाधन युक्त रहा है, फिर भी यह भारत और श्रीलंका ही हैं, जो मालदीव की सामाजिक आर्थिक स्थिरता और आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहे हैं। भारत को खुद को इन सारे प्रयासों के बीच में रखने और समय के साथ अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मामले का समाधान करने की कोशिश करने की सख्त जरूरत है। चीन भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में जुटा हुआ है। अनुभव बताते हैं कि प़डोसियों के साथ भारत की रणनीतिक प्रभुता लगातार चुनौती के दायरे में है।

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