राजनीती और वंशवाद
राजनीती और वंशवाद
हमारे देश की राजनीति में वंशवाद पर कई बार विवाद हो चुका है। कांग्रेस के शीर्ष नेता रहे जवाहरलाल नेहरू ने जब अपनी बेटी इंदिरा गांधी को अपना उत्तराधिकारी चुना था तो उन्होंने यह नहीं सोचा था भविष्य में उनके इस फैसले से देश की राजनीति पर प्रभाव प़डेगा। इंदिरा गाँधी एक शानदार नेता थीं और उनके अनेक फैसलों को आज भी लोगों के ़जहन में हैं। प्रधानमंत्री इंदिरा की हत्या के बाद कांग्रेस की कमान संभाली थी उनके पुत्र राजीव गाँधी ने। राजीव की कार्यशैली इंदिरा से विपरीत थी और उन्होंने ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में देश की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए अनेक फैसले लिए थे। राजीव गाँधी लम्बे समय तक राजनीति नहीं कर सके क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान श्रीपेरंबूर में भाग लेने पहुंचे राजीव गांधी पर लिट्टे के आतंकियों द्वारा किए गए आत्मघाती हमले में उनकी जान चली गई। राजीव के बाद कांग्रेस की कमान उनकी पत्नी सोनिया गाँधी को थमाई गयी। हालाँकि वह अभी भी सक्रिय हैं परंतु इंदिरा और राजीव के तर्ज पर वे राजनीति में कोई ठोस काम के लिए नहीं जानी जाती हैं। यह सच है कि उनके कार्यकाल में कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने दो बार अपना कार्यकाल पूरा किया। पिछले दिनों जब विदेश में एक संगोष्ठी को सम्बोधित करते समय राहुल गांधी ने वंशवाद के मुद्दे पर कहा है कि भारत तो ऐसे ही चलता है’’ और केवल उन्हें वंशवाद का प्रतिबिंब नहीं माना जाना चाहिए। कांग्रेस की मौजूदा स्थिति पर अगर गौर किया जाए तो राहुल गाँधी के नेतृत्व से अनेक नेता परेशान ऩजर आ रहे हैं। राहुल की कोई मजबूत रणनीति भी लोगों को ऩजर नहीं आ रही है। कांग्रेस ने कई बार कहा है कि जवाहर लाल नेहरू ने इस देश को वैज्ञानिक सोच दी और साथ ही अनेक आईआईटी एवं अन्य उच्च स्तरीय संस्थान भी दिए, पर वह यह नहीं बताती कि यदि सर्वाधिक समय तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस के शासन काल में गरीबी ब़ढी, भ्रष्टाचार फैला और वंशवाद कायम हुआ तो उसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाए। आज देश के चारों शीर्ष पदों पर बैठे नेताओं में से कोई भी परिवारवाद की उपज नहीं हैं। अधिकतर आम लोगों की सोच है कि देश बेहतर चलना चाहिए चाहे वंशवादी चलाएं या गैर वंशवादी, पर घटनाएं बताती हैं कि अपवादों को छो़डकर गैर वंशवादियों ने ही देश को बेहतर ढंग से चलाया है। इनमें से एक-दो विफलताएं तो खुद राहुल गांधी ने भी स्वीकारी हैं, पर विफलताएं तो अनगिनत हैं। राहुल गांधी अपने वंशवाद को जायज ठहराने के लिए अनेक उदाहरण दे रहे हैं। सबको पता है कि सोनिया गांधी ने दस साल तक परदे के पीछे से राज चलाया। यह राज इस तरह चला कि बीते लोकसभा में कांग्रेस को केवल ४४ सीटें ही मिल सकीं।