
इनफ़ोसिस विवाद
इनफ़ोसिस विवाद
पिछले कुछ महीनों से इंफोसिस के संस्थापकों और कंपनी के बोर्ड के बीच में लगातार रसाकस्सी जारी थी। इसी बीच पिछले हफ्ते जिस अंदा़ज में इं़फोसिस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने अपना पद छो़डने का फैसला लिया उससे उनके और संस्थापक नारायण मूर्ति के बीच का तनाव उजागर हो गया है। हालांकि ऐसी ब़डी कम्पनियों में संस्थापकों और बाद में आने वाले प्रबंधकों-निदेशकों के बीच तनातनी के कई उदाहरण मिल जाएंगे, लेकिन इंफोसिस विवाद कुछ अलग ही है। इं़फोसिस भारत की दूसरी सबसे ब़डी आइटी कंपनी है और इंफोसिस को भारत में सूचना प्रौद्योगिकी की प्रगति के एक प्रतीक के तौर पर देखा जाता रहा है। यह एक तरह से स्टार्ट अप की भी एक मिसाल है, क्योंकि इसे कुछ सॉफ्टवेयर इंजीनियरों ने ही अपनी बचत के सहारे इसे शुरु किया था। इसलिए इंफोसिस की सफलता की कहानी दूसरी कंपनियों के मुकाबले ज्यादा लुभावनी और रोमांचक रही है, और इसके सह संस्थापक रहे नारायणमूर्ति व नंदन नीलेकणि युवा उद्यमियों के लिए प्रेरणा-स्रोत रहे हैं। इंफोसिस को कॉरपोरेट प्रशासन तथा पारदर्शिता के प्रतिमान के तौर पर भी देखा जाता रहा है। इंफोसिस के पहले गैर-संस्थापक मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और प्रबंध निदेशक विशाल सिक्का कंपनी के निदेशक मंडल के समर्थन के बावजूद इस्तीफा दे दिया। विशाल सिक्का फिलहाल कंपनी के कार्यकारी उपाध्यक्ष के पद पर बने रहेंगे। विशाल सिक्का और नारायण मूर्ति के बीच करीब साल भर से तनातनी चल रही थी। करीब दो साल पहले इजराइल की ऑटोमेशन टेक्नोलॉजी कंपनी पनाया को खरीदे जाने के औचित्य और उसके लिए चुकाई गई कीमत पर मूर्ति ने सवाल उठाए थे। उनका यह भी आरोप था कि कंपनी के कामकाज और निर्णय प्रक्रिया में मानकों का पालन नहीं हो रहा है। इन सब बातों को लेकर उनके और सिक्का के बीच साल-डे़ढ साल से कटुता का दौर चल रहा था, लेकिन मीडिया में आए नारायण मूर्ति के एक ई-मेल ने टकराव को चरम पर पहुंचा दिया। भारत की शीर्ष कम्पनियों में शुमार इं़फोसिस का यह विवाद लम्बे अरसे तक विशेषज्ञों की चर्चा का विषय बना रहेगा। इस विवाद से कंपनी की छवि भी धूमिल हुई है। कंपनी का भविष्य भी कठिनाइयोें भरा ऩजर आ रहा है क्योंकि जिस तरह से निदेशक मंडल ने सिक्का का समर्थन किया है उससे ऐसा नहीं लगता कि निकट भविष्य में नारायण मूर्ति और निदेशक मंडल के बीच भी समन्वय बन सकेगा। संस्थापक यह कभी नहीं चाहेंगे कि उनकी मेहनत से ऊंचाइयों पर पहुँचने वाली कंपनी पर किसी भी तरह की आंच आए और निदेशक मंडल के साथ मिलकर संस्थापक कंपनी को एक नई दिशा दिखाने में सफल हो सकते हैं।
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