युद्ध से क्या मिला?

जिन उद्देश्यों के साथ धावा बोला था, उनकी प्राप्ति नहीं हो सकी

युद्ध से क्या मिला?

रूस को भी भारी नुकसान हुआ है

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का यह बयान चौंकाता है कि दोनों देश साझा त्रासदी का सामना कर रहे हैं। पुतिन का बयान इस लिहाज से भी ज्यादा अहम है, क्योंकि एक ओर तो यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित कर पश्चिमी देशों से नजदीकियां बढ़ाकर सहयोग लेने के रास्ते खोल रहे हैं, वहीं पुतिन अपने स्वर में नरमी लाते हुए यह संकेत दे रहे हैं कि वे युद्ध खत्म करना चाहते हैं। वे इसके लिए कूटनीतिक समाधान पर जोर देते दिख रहे हैं। 

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निस्संदेह इस युद्ध में पुतिन ने शक्ति प्रदर्शन कर यूक्रेन की ईंट से ईंट बजा दी, लेकिन उन्होंने जिन उद्देश्यों के साथ धावा बोला था, उनकी प्राप्ति नहीं हो सकी। रूस को भी भारी नुकसान हुआ है। उसके हजारों सैनिकों की जान चली गई। अरबों रूबल युद्ध की आग में फूंक दिए, लेकिन जीत के निशान दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं। इस युद्ध ने आपूर्ति शृंखला बाधित की है। कई देशों में खाद्यान्न संकट पैदा कर दिया। गैस की किल्लत से कीमतों में इजाफा हुआ है। इन सबका असर आम आदमी की जेब पर हुआ है। अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक हो चुकी हैं तो उनके नुकसान भी वैश्विक होंगे। यही इस युद्ध ने दुनिया को दिया है। 

भारत के हजारों छात्र, जो मेडिकल की पढ़ाई करने यूक्रेन गए थे, उन्हें युद्ध के कारण बीच में आना पड़ा। उनकी पढ़ाई बाधित हुई। अगर युद्ध न होता तो ये छात्र अपनी पढ़ाई पूरी कर रोगियों की सेवा कर रहे होते। इस युद्ध ने चौतरफा नुकसान ही किया है। अगर पुतिन इसे लंबा खींच लें और आखिरकार कीव फतह कर लें तो भी यह हार होगी, मानवता की हार। तब तक हजारों लोग और मारे जाएंगे। इनमें दोनों ओर के सैनिक तो होंगे ही, आम नागरिक भी होंगे।

पुतिन इतना अवश्य समझ चुके होंगे कि यूक्रेन में सैन्य उद्देश्यों की प्राप्ति उतनी आसान बिल्कुल नहीं है, जैसा कि वे इस साल फरवरी में हमले से पहले सोच रहे थे। अब समय आ गया है कि दोनों देशों के राष्ट्रपति तुरंत युद्ध बंद करने की घोषणा करें और आपसी वार्ता से ही समाधान निकालें। रूस-यूक्रेन ने युद्ध में जो संसाधन गंवाए हैं, उनकी भरपाई में कई साल लग जाएंगे, लेकिन दोनों ही तरफ जिन नागरिकों ने अपनों को गंवाया, उनकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी, उनका दु:ख जीवनभर रहेगा। 

तीन सौ से ज्यादा दिनों के बावजूद निर्णायक विजय से दूर रूस ने अपने हताहत सैनिकों की वास्तविक संख्या नहीं बताई है। हालांकि यूक्रेन का रक्षा मंत्रालय यह आंकड़ा एक लाख से ज्यादा बताता है। अगर इसे अपुष्ट माना जाए तो भी यह कहना गलत नहीं होगा कि हजारों सैनिक अवश्य इस युद्ध की भेंट चढ़ चुके हैं। विशेषज्ञ तो यह आशंका जाहिर कर चुके हैं कि अगर पुतिन इसी तरह अपनी जिद पर अड़े रहे तो वे बहुत बड़ी संख्या में अपने सैनिकों को मौत के मुंह में धकेल सकते हैं। यह एक बड़ी त्रासदी है, जिसके असल आंकड़े रूस ने सार्वजनिक कर दिए तो पुतिन अपने घर में ही घिर जाएंगे। 

अब रूसी जनता भी पूछ रही है कि इस युद्ध से उनके देश को क्या मिला? सच है, इस युद्ध से किसी को कुछ नहीं मिला, सिवाय धमाकों, खंडहरों, लाशों और आंसुओं के। पुतिन नाकामी का बोझ नहीं उठाना चाहते। वे चाहते हैं कि उन्हें रूस के इतिहास में महान देशभक्त और विजेता के तौर पर याद किया जाए। इसके लिए उन्हें पीछे हटना कबूल नहीं है। चूंकि इससे उनकी छवि को धक्का लगेगा और वे एक नाकाम शासक के तौर पर याद किए जाएंगे। 

पुतिन अमेरिका समेत पश्चिमी देशों से चिढ़ते हैं। ऐसे में भारत ही वह देश है, जिसके अमेरिका, रूस, यूक्रेन और पश्चिमी देशों के साथ मित्रवत संबंध हैं। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि यह युग युद्ध का नहीं है। अगर वे इस युद्ध को रुकवाने में भूमिका निभाएं तो यह भारतीय विदेश नीति और मानवता की विजय होगी।

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