छात्र क्यों कर रहे हैं खुदकुशी?

छात्र क्यों कर रहे हैं खुदकुशी?

भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या कर रहा है। समस्या तेजी से ब़ढ रही है लेकिन उनकी मदद के लिए प्रशिक्षित लोगों की कमी है। १३० करो़ड की आबादी वाले देश में सिर्फ ५००० मनोचिकित्सक हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि हर ५५ मिनट में एक छात्र अपनी जान दे देता है। वर्ष २०१४ से तीन साल में २६ हजार से ज्यादा छात्र अपनी जिंदगी खत्म कर चुके हैं। अकेले वर्ष २०१६ में लगभग सा़ढे नौ हजार छात्रों ने आत्महत्या कर ली। इस मामले में देश के सबसे समृद्ध प्रातों में शामिल महाराष्ट्र पहले नंबर पर है। वर्ष २०१६ के दौरान वहां १३५० छात्रों ने आत्महत्या कर ली। दूसरे और तीसरे स्थानों पर क्रमश: पश्चिम बंगाल (११४७) और तमिलनाडु (९८१) का स्थान है। खासकर बंगाल में तो बीते एक साल के दौरान ऐसे मामले तेजी से ब़ढकर दोगुने हो गए हैं। वर्ष २०१५ में इस सूची में बंगाल चौथे स्थान पर था। तमिलनाडु, मध्यप्रदेश व छत्तीसग़ढ राज्यों में ऐसे मामले तेजी से ब़ढे हैं। हाल में मुंबई समेत कई अन्य शहरों में छात्रों की ओर से सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आत्महत्या के सजीव वीडियो के प्रसारण के भी कई मामले सामने आए थे। वर्ष २०१६ में एक ऑनलाइन काउंसलिंग सेवा ’’योर दोस्त’’ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि करियर की पसंद जबरन थोपने, फेल होने का डर और मानसिक अवसाद से जु़डा सामाजिक कलंक अक्सर छात्रों को आत्मघाती बनने के लिए उकसाता है। आखिर छात्रों की आत्महत्या के मामले तेजी से ब़ढने की वजह क्या है? विशेषज्ञों का कहना है कि प़ढाई के लगातार ब़ढते दबाव और प्रतिद्वंद्विता की वजह से ज्यादातार छात्र मानसिक अवसाद से गुजरने लगते हैं्। इनमें से कई छात्र आत्महत्या की आसान राह चुन लेते हैं्। एक चौथाई छात्रों के मामले में परीक्षा में नाकामी प्रमुख वजह थी। इसके अलावा प्रेम में नाकामी, उच्च-शिक्षा के मामले में आर्थिक समस्या, बेहतर रिजल्ट के बावजूद प्लेसमेंट नहीं मिलना और विभिन्न क्षेत्रों में लगातार घटती नौकरियां भी छात्रों की आत्महत्या की प्रमुख वजह के तौर पर सामने आई हैं्। घरवालों का दबाव और उनकी उम्मीदों का बोझ भी छात्रों की परेशानी की वजह बन रहा है। सही सलाह या मार्गदर्शन नहीं मिलने से छात्र मानसिक अवसाद में आ जाते हैं। विशेषज्ञों की आम राय है कि उम्मीदों का भारी दबाव छात्रों के लिए एक गंभीर समस्या बन कर उभरा है। इसके बावजूद आंक़डों से यह साफ नहीं है कि किस स्तर के छात्र ज्यादा मानसिक अवसाद से गुजर रहे हैं्। इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए घरों से ही पहल करनी होगी। अभिभावकों को अपने बच्चों पर उम्मीदों का भारी बोझ लादने से बचना होगा। माता-पिता अपने जीवन में जो नहीं कर सके, उसे अपनी संतान के जरिए पूरा करने का सपना देखने लगते हैं। यह बच्चों पर अनावश्यक दबाव ब़ढाता है।

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