कन्नौज के इत्र की सुगंध में सपा हुई हवा, 21 साल बाद फिर खिला कमल
कन्नौज के इत्र की सुगंध में सपा हुई हवा, 21 साल बाद फिर खिला कमल
लखनऊ/भाषा। कन्नौज का इत्र अपनी खुशबू के लिए देश-दुनिया में विख्यात है और राजनीति की बात हो तो देश के सियासी मानचित्र पर बरसों से समाजवादियों को अपनी महक से सराबोर करती आई यहां की माटी पर 21 बरस के बाद एक बार फिर कमल खिला है।
चार दशक से अधिक समय से कन्नौज की राजनीति की नब्ज समझने वाले प्रभाकर पाठक ने ‘भाषा’ से बातचीत में कहा, आजादी के बाद देश की सियासत कांग्रेस के हाथ में रही लेकिन कन्नौज अपवाद था। समाजवाद के प्रखर पुरुष डॉ. राम मनोहर लोहिया ने समाजवाद के बीज कन्नौज में बोए। उन्होंने 1963 में लोकसभा चुनाव जीता। तब कन्नौज फर्रूखाबाद लोकसभा सीट का हिस्सा था और 1967 में जब पहली बार कन्नौज लोकसभा सीट बनी तो लोहिया ने आम चुनाव में कन्नौज से ही दोबारा चुनाव जीत कर कांग्रेस को तगड़ा झटका दिया।कांग्रेस की स्थानीय नेता उषा दुबे ने बताया, कन्नौज में लोहिया का बोया हुआ समाजवाद का बीज पल्लवित होकर वृक्ष बना और समाजवादियों के लिए बरसों बरस फलदायक भी रहा लेकिन इस बार भाजपा ने बाजी मार ली। हालांकि भाजपा किसान मोर्चा के नेता सुनील कुमार का कहना है कि समाजवादियों ने यहां जातिवाद का जहर बोया था, जिसका खामियाजा इस बार उन्हें भुगतना पड़ा और जनता ने विकास को वोट दिया।
2014 में हारे भाजपा के प्रत्याशी सुब्रत पाठक ने इस बार अखिलेश की पत्नी और सपा प्रत्याशी डिम्पल यादव को लगभग 12 हजार मतों से पराजित किया। शास्त्री कहते हैं कि कन्नौज में कमल पहले भी खिला है लेकिन 1998 के बाद यहां सपा का बोलबाला रहा। 1998 के चुनाव में कन्नौज से सपा प्रमुख मुलायम सिंह जीते। बाद में उन्होंने यह सीट अपने बेटे अखिलेश को दे दी। अखिलेश ने 2012 में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने तक लगातार तीन बार इस संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व किया। फिर उनकी पत्नी डिम्पल कन्नौज से उपचुनाव में निर्विरोध जीत कर सांसद बनीं।
पाठक बताते हैं कि बिहार की तर्ज पर यहां पर भी ‘माई’ (एम यानी मुस्लिम और वाई यानी यादव) फार्मूला चलता रहा है लेकिन इस बार जाति—धर्म की दीवारें टूटीं तो परिणाम एकतरफा और चौंकाने वाले रहे।
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