यह निवेश देगा हमेशा फायदा
देश में डिजिटल अरेस्ट की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं
कानून में डिजिटल अरेस्ट जैसा कोई प्रावधान नहीं है
भारत में ऑनलाइन धोखाधड़ी की घटनाओं में फर्जी न्यायिक आदेशों का इस्तेमाल होना चिंता का विषय है। इस संबंध में उच्चतम न्यायालय की यह टिप्पणी अत्यंत प्रासंगिक है कि ऐसे अपराध न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास की नींव पर कुठाराघात हैं। हाल में 'डिजिटल अरेस्ट' की जितनी भी घटनाएं हुई हैं, उनमें उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, सीबीआई, सीआईडी, ईडी और अन्य जांच एजेंसियों के नाम पर लोगों को डराया और धमकाया गया था। आम तौर पर जब लोगों के पास कोई ऐसा दस्तावेज पहुंचता है, जिस पर न्यायालय या किसी भी जांच एजेंसी का नाम लिखा होता है तो वे घबरा जाते हैं। साइबर अपराधियों ने इतने शातिर ढंग से यह पैंतरा चला है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 'मन की बात' कार्यक्रम में लोगों से अपील की थी कि वे ऐसे झांसे में न आएं। उसके बाद डिजिटल अरेस्ट के मामले कुछ कम सामने आए थे, लेकिन अब एक बार फिर अपराधियों ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है। हाल में सामने आए कुछ चर्चित मामलों पर नजर डालें तो हैरानी होती है। मुंबई में एक 72 वर्षीय कारोबारी को नकली ईडी और सीबीआई अधिकारी बनकर डिजिटल अरेस्ट किया गया। फिर उससे 58 करोड़ रुपए ठग लिए! इन बुजुर्ग के पास जीवन का लंबा अनुभव है, लेकिन यह नहीं जानते थे कि कानून में डिजिटल अरेस्ट जैसा कोई प्रावधान नहीं है। आंध्र प्रदेश के एक विधायक भी साइबर ठगों के जाल में फंस गए। वे 1.07 करोड़ रुपए गंवा बैठे। विधायक से तो इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि उन्हें पुलिस, कानूनी दस्तावेजों और न्यायिक प्रक्रिया के बारे में जानकारी होगी।
इसी साल सितंबर में कर्नाटक के एक भाजपा सांसद की पत्नी का मामला सुर्खियों में रहा था, जिन्हें साइबर अपराधियों ने डिजिटल अरेस्ट कर 14 लाख रुपए ठग लिए थे। इससे पहले, डॉक्टरों, शिक्षकों, वकीलों, वैज्ञानिकों, बैंकरों, निवेशकों के साथ साइबर ठगी के मामले चर्चा में रहे थे। जब इतने उच्च शिक्षित, साधन-संपन्न लोग साइबर ठगों के जाल में फंस जाते हैं तो आम आदमी कितना सुरक्षित है? हालांकि सरकार और बैंकों की ओर से कई बार लोगों को सावधान किया गया है। इसके बावजूद वे शिकार हो रहे हैं। आखिर क्यों? इसकी बड़ी वजह यह है कि अब भी कई लोग ऐसे हैं, जिन्हें डिजिटल अरेस्ट जैसे साइबर अपराधों की कोई जानकारी नहीं है। वे अपने कामकाज में व्यस्त रहते हैं। मोबाइल फोन पर मनपसंद सामग्री देखते हैं, लेकिन अखबार पढ़ने के लिए समय नहीं निकालते। सोशल मीडिया पर जानकारी का इतना प्रवाह होता है कि किसी व्यक्ति के लिए सबकुछ पढ़ना, देखना और सुनना संभव नहीं है। अखबार के सीमित पृष्ठों में उपयोगी जानकारी तुरंत मिल जाती है। अगर ये लोग अपने ज्ञान में वृद्धि के लिए रोजाना 5 रुपए भी खर्च करते तो करोड़ों के नुकसान से बच जाते। साइबर अपराधियों ने इस कमी का फायदा उठाया है। जिन लोगों ने समय रहते इससे संबंधित खबरें पढ़ ली थीं, वे सुरक्षित रहे। कुछ लोगों ने तो साइबर अपराधियों को फोन पर यह कहते हुए आड़े हाथों लिया था कि 'हम अखबार में आपके बारे में पढ़ चुके हैं, इसलिए यहां आपकी दाल नहीं गलने वाली है।' वहीं, जो लोग देश-दुनिया के बदलते हालात की जानकारी नहीं रखते थे, वे फोन पर फर्जी धमकी से डर गए और साइबर अपराधियों के 'निर्देशों' का पालन करते हुए अपनी पूरी जमा-पूंजी उन्हें सौंप बैठे। साइबर अपराधों से सरकार, पुलिस और संबंधित जांच एजेंसियां तो लड़ ही रही हैं, नागरिकों को भी सावधान रहना होगा। अपने ज्ञान में वृद्धि के लिए रोजाना अखबार पढ़ने की आदत डालें। यह एक ऐसा सुरक्षित निवेश है, जो हमेशा फायदा देगा।

