दुष्प्रचार का जवाब

निर्मला सीतारमण ने उचित ही कहा है कि ‘भारतीय मुस्लिम पाकिस्तानी मुस्लिमों से ज्यादा तरक्की कर रहे हैं'

दुष्प्रचार का जवाब

पाक में किसी व्यक्ति पर ईशनिंदा का आरोप लग जाता है तो उसे उन्मादी भीड़ ही मार देती है

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वॉशिंगटन डीसी में अमेरिकी थिंक टैंक पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स के कार्यक्रम में पश्चिमी देशों के दुष्प्रचार का करारा जवाब देकर प्रशंसनीय कार्य किया है। ये कथित थिंक टैंक उन संगठनों और सरकारों की कठपुतली हैं, जो भारत की छवि धूमिल करने में दिन-रात लगे रहते हैं। 

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निर्मला सीतारमण ने उचित ही कहा है कि ‘भारतीय मुस्लिम पाकिस्तानी मुस्लिमों से ज्यादा तरक्की कर रहे हैं।’ भारत के बारे में पाकिस्तान समर्थक ये ‘थिंक टैंक’ बहुत ग़लतफ़हमी फैला चुके हैं। इनके दुष्प्रचार के खंडन के लिए हमारी ओर से कोई ठोस प्रयास नहीं हुए। इसका फायदा पाकिस्तानी मीडिया उठाता है। 

आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है, लेकिन यह पूरी तरह सच है कि आज एक आम पाकिस्तानी की सोच है कि ‘भारत में अल्पसंख्यकों को धार्मिक आजादी नहीं है, उन्हें अपनी परंपराओं के अनुसार प्रार्थना नहीं करने दी जाती, जम्मू-कश्मीर में कई सालों से कर्फ्यू लगा हुआ है, भारत में शौचालय नहीं हैं ...!’ 

जबकि ये दावे पूरी तरह से ग़लत और निराधार हैं। भारत में हर व्यक्ति को पूरी-पूरी धार्मिक आज़ादी है। यहां सबको अपनी परंपरा के अनुसार प्रार्थना, धर्म-प्रचार आदि की पूरी आज़ादी है। जम्मू-कश्मीर में हालात बहुत बेहतर हैं और कर्फ्यू के ज़माने गुजर चुके हैं। भारत के घर-घर में शौचालय हैं, कई घरों में तो दो से ज्यादा हैं। 

पश्चिमी देशों के कुछ ‘थिंक टैंक’ कितने दोहरे मापदंड अपनाते हैं, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि वे पाकिस्तानी हिंदू, सिक्ख, ईसाई और पारसी समुदाय की पीड़ा व्यक्त करने के लिए एक शब्द नहीं लिख सकते। निस्संदेह यह उनका स्पष्ट पाखंड है। क्या ये ‘थिंक टैंक’ नहीं जानते कि पाक में अल्पसंख्यकों का षड्यंत्रपूर्वक जनसंहार किया जा रहा है?

एक पाकिस्तानी हिंदू, जिनके दादा बड़े सरकारी ओहदे पर थे, अब पाक से निकलकर अन्य देश में शरण लेने को मजबूर हैं। उनके डॉक्टर चाचा, जिन्होंने कई मरीजों का मुफ्त इलाज किया, को होली के दिन उनके ही ड्राइवर ने मौत के घाट उतार दिया। एक छोटी-सी बात को मजहबी रूप दे दिया। उस डॉक्टर का कसूर इतना था कि वह पाकिस्तानी हिंदू था। 

पाक में हिंदू, सिक्ख और ईसाई समुदाय के बच्चे जब स्कूल जाते हैं तो मां-बाप उन्हें खास नसीहत देते हैं कि किसी से भी अपनी आस्था को लेकर बात मत करना। किसी के साथ बहस मत करना। अगर कोई तुम्हारे देवी-देवता या आराध्य के बारे में ग़लत टिप्पणी करे तो बात को हंसकर टाल देना। उन बच्चों के सहपाठी जानबूझकर उनके धर्म का मज़ाक उड़ाते हैं, लेकिन वे जवाब में ऐसी कोई टिप्पणी नहीं कर सकते, क्योंकि वहां उन पर ईशनिंदा कानून के तहत मुकदमा दर्ज हो जाएगा, जिसकी सज़ा मौत है। 

प्रायः किसी व्यक्ति पर ईशनिंदा का आरोप लग जाता है तो उसे उन्मादी भीड़ ही मार देती है। दिसंबर 2021 में श्रीलंकाई नागरिक प्रियंथा कुमारा को तो भीड़ ने आग लगा दी थी। पाक में हिंदू महिलाएं सिंदूर, बिंदी जैसे सौभाग्य चिह्न धारण कर बाहर जाती हैं तो उन पर अश्लील टिप्पणियां की जाती हैं। कई जगह तो यह हालत है कि हिंदुओं को मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए सरकार से गुहार लगानी पड़ती है, क्योंकि स्थानीय लोग शव नहीं जलाने देते। 

भारत में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सेना प्रमुख, विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री समेत सभी उच्च पदों पर अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले लोग कार्य कर चुके हैं। देश उनकी उत्कृष्ट सेवाओं का सम्मान करता है, लेकिन पाक में इन पदों पर कार्य कर चुका कोई एक व्यक्ति ऐसा नहीं मिलेगा, जो अल्पसंख्यक समुदाय से हो। चूंकि वहां का कानून ही यह भेदभाव करता है। 

पाक में अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति कितना ही काबिल और देशप्रेमी क्यों न हो, वह राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, सेना प्रमुख, खुफिया एजेंसी का प्रमुख कभी नहीं बन सकता। कानून ने इस श्रेणी को पहले ही बाहर कर दिया है। फिर भी दुस्साहस देखिए कि पाक पश्चिम के उन अधकचरे ‘थिंक टैंकों’ को यह पट्टी पढ़ाने में कामयाब हो रहा है कि ‘भारत में बहुत जुल्म हो रहा है।’ 

भारत में कोई जुल्म नहीं हो रहा है। असल जुल्म पाकिस्तान में हो रहा है, वह भी कानून की शक्ल में! पाक के इस पाखंड की पोल खोलने के लिए भारत की ओर से बड़े स्तर पर प्रयास करने की बहुत ज़रूरत है।

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