सबकी ज़िम्मेदारी

आखिर क्या वजह है कि धरती के तापमान में बढ़ोतरी हो रही है?

सबकी ज़िम्मेदारी

क्या जलवायु परिवर्तन को लेकर जो आशंकाएं जताई जा रही थीं, वे सत्य होने जा रही हैं?

इस साल भारत के कई स्थानों पर फरवरी में ही मार्च जैसी गर्मी महसूस होने लगी थी। आमतौर पर फरवरी के आखिरी और मार्च के पहले हफ्ते में हल्की गर्मी होती है, लेकिन इस बार तो सूर्यदेव सुबह नौ बजे से ही वातावरण को खूब तपा रहे हैं। राजस्थान के गांवों में लोग फरवरी-मार्च तक सुबह गोंद के लड्डू खाते हैं, जो ठंडक की वजह से काफी सख्त होते हैं, लेकिन इस बार ये भी नरम पड़ गए। 

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आखिर क्या वजह है कि धरती के तापमान में बढ़ोतरी हो रही है? क्या जलवायु परिवर्तन को लेकर जो आशंकाएं जताई जा रही थीं, वे सत्य होने जा रही हैं? अब समय आ गया है कि सरकारें और नागरिक इन सवालों पर गंभीरता से विचार करें, अन्यथा बहुत देर हो जाएगी। तापमान में इस असामान्य बढ़ोतरी के मद्देनजर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी परामर्श जारी कर दिया कि लू के खिलाफ सुरक्षा के लिए क्या करना चाहिए। 

पिछले साल दिसंबर में केरल के कोल्लम शहर का मुनरोतुरुत्तु द्वीप चर्चा में रहा था। यूं तो यह द्वीप खुशनुमा नजारों, पर्यटक नौकाओं और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है, जहां काफी लोग सुकून की तलाश में आते हैं, लेकिन अब चौंकाने वाली बात यह है कि इसे सैकड़ों की तादाद में स्थानीय लोग छोड़कर जा चुके हैं। यहां उच्च ज्वार और घरों में खारे पानी के रिसाव, जलभराव जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं, जिसके कारण कई परिवार विस्थापन कर चुके हैं। 

एक समय था, जब यहां नारियल के पेड़ों से खूब उपज होती थी, जिससे लोगों का गुजारा चल जाता था, लेकिन अब अत्यधिक खारे पानी के जमाव के कारण पेड़ों को नुकसान हो रहा है। स्थानीय लोग कहते हैं कि इस द्वीप समूह के निचले इलाकों के डूबने का गंभीर खतरा पिछले कई साल से मंडरा रहा है। यहां मकानों में पानी भर गया है और कई इमारतें धीरे-धीरे ‘डूब रही’ हैं। इस पर अध्ययन करने के बाद कुछ विशेषज्ञ इसे सुनामी के प्रभावों से जोड़कर देख रहे हैं तो कुछ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यह ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का असर है।

प्राय: ज्यादातर एशियाई देशों में पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता है। इनके लिए इतना कह दिया जाता है कि ये विकसित देशों की समस्याएं हैं ... हमारे यहां ऐसा कुछ नहीं होगा ... जो चलता आ रहा है, वैसा ही चलता रहेगा! यह सोच ठीक नहीं है। अगर हमारे यहां प्रदूषण फैलेगा, तापमान में असामान्य बढ़ोतरी होगी, ऋतुओं के समय में बदलाव आएगा तो उसका हम पर असर होना तय है। हो सकता है कि शुरुआत में ज्यादा असर न हो, लेकिन धीरे-धीरे इसमें तेजी आ सकती है। 

उत्तर भारत के जिन स्थानों पर हाल में तेजी से तापमान बढ़ा है, वहां किसान चिंतित हैं। उनका कहना है कि इससे फसल पर असर पड़ सकता है। उपज का दाना हल्का हो सकता है। कैनबरा में अनुसंधान निदेशक और न्यूनतम एएमआर मिशन लीड, सीएसआईआरओ ब्रैनवेन मॉर्गन ने जलवायु परिवर्तन के बारे में जो लिखा, उस पर सबको गौर करना चाहिए। 

उन्हीं के शब्दों में- 'अगली बार जब आपको एंटीबायोटिक्स लेने की आवश्यकता होगी, तो हो सकता है कि वे काम न करें। ऐसे में आपको एक अलग एंटीबायोटिक लेने की सलाह दी जाएगी, वो भी असर नहीं करेगी। शायद कुछ भी काम न आए। ऐसा तब होता है, जब बैक्टीरिया उन्हें मारने के लिए डिज़ाइन की गईं दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं, आधुनिक चिकित्सा को जोखिम में डाल देते हैं, और रोज़मर्रा के संक्रमणों को घातक बना देते हैं। जलवायु परिवर्तन इन सुपरबग्स के उद्भव और प्रसार को तेज कर रहा है, जो गर्म, गीली स्थितियों में पनपते हैं।' 

सितंबर 2021 में यूनिवर्सिटी ऑफ द सनशाइन कोस्ट के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग का शोध काफी चर्चा में रहा था, जिसके अनुसार 'आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण ऑस्ट्रेलिया में आलू और भी नरम हो सकते हैं, सेब सुखाना मुश्किल हो सकता है और मुनक्का की खेती खत्म हो सकती है।' 

विश्व की सभी सरकारों को चाहिए कि अब वे पर्यावरण से संबंधित इन समस्याओं को प्राथमिकता दें और इनके समाधान के लिए जरूरी कदम उठाते हुए जनता को जागरूक करें। धरती को बचाना सभी इन्सानों की ज़िम्मेदारी है।

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