आइए, धरती बचाएं

आइए, धरती बचाएं

हाल में किया गया यह शोध चिंता बढ़ाने वाला है कि जलवायु परिवर्तन के खतरे से दुनियाभर में पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के लिए स्थिति और अधिक खतरनाक बनने का जोखिम है


कुछ साल पहले तक जलवायु परिवर्तन को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जाता था, लेकिन हाल में वैश्विक स्तर पर जो घटनाएं सामने आई हैं, उनके आधार पर कहा जा सकता है कि मामला कहीं ज्यादा गंभीर है, जिसका हल सबको ढूंढ़ना ही होगा। अन्यथा धरती पर हम सबके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा सकते हैं। पिछले करीब सौ सालों में प्रकृति का जो अतिदोहन हुआ है, उसका असर अब साफ दिखाई दे रहा है। बारिश के मौसम में बदलाव आ रहा है। खेती में उपज प्रभावित हो रही है। 

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इस साल पाकिस्तान में तो बाढ़ ने इतना कहर बरपाया कि लाखों परिवार सड़क पर आ गए। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दूरगामी होते हैं। इसकी एक शृंखला होती है, जिसकी ओर भी सरकारों को ध्यान देना चाहिए। विशेषज्ञ कहते रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन से पर्वतीय क्षेत्रों को लेकर जोखिम में बढ़ोतरी होगी। हिमस्खलन होगा, जिससे बाढ़ आएगी, उपजाऊ जमीन कम होगी। आज कई जगह यह देखा जा रहा है। 

हाल में किया गया यह शोध चिंता बढ़ाने वाला है कि जलवायु परिवर्तन के खतरे से दुनियाभर में पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के लिए स्थिति और अधिक खतरनाक बनने का जोखिम है। अगर ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप पर्वतीय ग्लेशियर पिघलेंगे तो उसका प्रभाव सिर्फ पहाड़ों तक सीमित नहीं रहेगा। आखिर बर्फ के पिघलने से वह पानी कहां जाएगा? जाहिर-सी बात है कि वह मैदानी इलाकों की ओर जाएगा, जहां रहने वाले लोग इससे प्रभावित होंगे।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस तो इस बदलाव का 'दुनिया के नरक की ओर बढ़ने' के तौर पर उल्लेख कर चुके हैं। हालांकि अगर इसे 'नरक' के बजाय 'खतरे की घंटी' ही मान लिया जाए तो हम धरती को बेहतर जगह बनाने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं, बशर्ते इरादों में गंभीरता हो। लेकिन यह होगा कैसे? जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए सबसे पहले तो पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करना होगा, जबकि हर साल दुनिया के अत्यधिक धनाढ्य लोगों का एक वर्ग बहुत ज्यादा मात्रा में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कर रहा है। इससे धरती का तापमान बढ़ रहा है। कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ रहा है। भारी मुनाफा कमाने और सब पर छा जाने की होड़ ने धरती को बहुत घाव दिए हैं। 

आज महानगरों से लेकर कई शहरों में यह स्थिति है कि अगर कोई व्यक्ति बाइक पर सफेद कपड़े पहनकर बाजारों और उन इलाकों का चक्कर लगाकर आए, जहां वाहनों की आवाजाही ज्यादा होती है, तो कुछ ही घंटों में कपड़ों पर कालिमा साफ नज़र आने लगेगी। जब यह प्रदूषण फेफड़ों में जाता होगा तो उनका क्या हाल करता होगा? 

इसलिए जरूरी है कि दुनिया अपनी जीवनशैली में बदलाव करे। सौर ऊर्जा और इलेक्ट्रिकल वाहनों को प्राथमिकता देने के साथ उन तकनीकों पर काम करे, जिससे पर्यावरण शुद्ध एवं निर्मल हो। हमें याद रखना होगा कि (अभी) हमारे पास रहने के लिए धरती एकमात्र ग्रह है। अगर यह रहने लायक नहीं रहेगा तो अगली मंजिल क्या होगी? इसके लिए जरूरी है कि हर देश की सरकार और हर नागरिक धरती बचाने के अभियान में अपनी भूमिका निभाए। आइए, धरती बचाएं।

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