हमारी अंतरात्मा अनंत सुखों की खान है: आचार्य चन्द्रयशसूरी

हमारी अंतरात्मा अनंत सुखों की खान है: आचार्य चन्द्रयशसूरी

क्रोध, मोह, माया, लोभ, ईर्ष्या आदि कषायों से मुक्त होकर हमारी आत्मा सद्‌चित्त आनंद का दर्शन कर सकती है


बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के सिद्धाचल स्थूलभद्र धाम तीर्थ स्थल पर विराजित आचार्यश्री चन्द्रयशसूरीश्वरजी ने अपने प्रवचन में कहा कि बाह्य उत्सव में आनंद के स्रोत बाहरी होता है। अंतर के उत्सव में आनंद का स्रोत आंतरिक होता है और आनंद की अनुभूति भी आंतरिक ही होती है। 

हमारी अंतरात्मा अनंत सुखों की खान है। यह आत्मा परब्रह्म स्वरुप है। आत्मा ज्योतिर्मय है। शक्ति का पुंज है। इन सारी बातोख का अहसास स्वयं आनंद का उत्सव बन सकता है। बाह्य जगत का आनंद क्षणिक होता है जबकि अंतर उत्सव से प्राप्त आनंद आत्मा से जुड़ जाता है और शाश्र्वत बन जाता है। 

क्रोध, मोह, माया, लोभ, ईर्ष्या आदि कषायों से मुक्त होकर हमारी आत्मा सद्‌चित्त आनंद का दर्शन कर सकती है। राग-द्वेष रहित पवित्र स्वरुप का यह दर्शन शाश्र्वत आनंद की अनुभूति कराता है। आत्मानंद को प्रथम रस कहा गया है। 

इस प्रथम रस का पान और आत्मा को भगवत स्वरुप बनाने का कार्य हमें करना है। इस आत्मा के निज स्वरुप का दर्शन करके आत्मानंद में मस्त होकर, प्रभु के दरबार में हमें जाना है। 

वहॉं जाकर कृपालु वीतरागी परमात्मा के साथ हमें संवाद करना है। प्रभु के साथ सत्य संवेदना करनी है। जिस तरह बालक मॉं का हाथ पकड़कर निश्र्चित हो जाता है और निर्भय होकर चलता है उसी तरह हमें भी चाहिए की परमात्मा का शरण पाकर हम भी निश्चिंत हो जाए और भवसागर से पार उतरने के लिए आगे बढ़े। परम तत्व परमात्मा का आलंबन पाकर हमारी अन्तर ज्योति के साथ परमात्मा स्वरुप का दर्शन करे।

देश-दुनिया के समाचार FaceBook पर पढ़ने के लिए हमारा पेज Like कीजिए, Telagram चैनल से जुड़िए

Google News
Tags:

About The Author

Post Comment

Comment List

Advertisement

Latest News