बेशर्म हंसी

बेशर्म हंसी

झारखंड के दुमका में अंकिता हत्याकांड के बाद लोगों में राज्य सरकार के प्रति आक्रोश है


देशभर में अपराधी बेलगाम होते जा रहे हैं। खासतौर से महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को देखकर लगता है कि ऐसे तत्त्वों में कानून का खौफ रहा ही नहीं। झारखंड के दुमका में अंकिता हत्याकांड के बाद लोगों में राज्य सरकार के प्रति आक्रोश है। बारहवीं कक्षा की इस होनहार छात्रा पर पेट्रोल छिड़कर ज़िंदा जलाने के आरोपी शाहरुख की जो तस्वीरें सोशल मीडिया में आईं, उससे साफ होता है कि उसे अपने किए का कोई पछतावा नहीं है।

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यह ‘बेशर्म हंसी’ न केवल सर्वसमाज, बल्कि सरकार और न्यायपालिका का उपहास भी है। यह युवक इतना बड़ा अपराध करने के बाद पुलिस की गिरफ्त में ‘हंस’ रहा है और इस प्रकार चल रहा है, जैसे कोई सेलेब्रिटी हो! झारखंड सरकार को जवाब देना होगा कि उसके शासन में यह क्या हो रहा है? एक बेटी को ज़िंदा जलाने वाला पुलिस की पकड़ में आने के बावजूद इतनी निर्लज्जता से कैसे हंस सकता है? क्या उसे यह आभास है कि कालांतर में दबाव डालने के लिए उसकी हिमायत में भी कोई खड़ा हो जाएगा, लिहाजा डरने की कोई बात नहीं है?

अंकिता की मां का पहले ही कैंसर के कारण निधन हो चुका है। वह खुद तो पढ़ रही थी, साथ में ट्यूशन पढ़ाकर घर खर्च में पिता को सहयोग कर रही थी। वह बड़ी होकर पुलिस अफसर बनना चाहती थी। शाहरुख ने न केवल उसके शरीर की हत्या की, बल्कि उसके सपने का भी खून कर दिया। अंकिता का परिवार इस शोक से टूट गया है।

अब तक तो यही कहा जाता था कि सड़कें और सार्वजनिक स्थान महिलाओं के लिए असुरक्षित होते जा रहे हैं, लेकिन झारखंड में तो बेटियां घरों में सुरक्षित नहीं हैं। वहशी दरिंदे ने इस बच्ची को उसके घर के अंदर ज़िंदा जलाकर मारा। अपराधियों, मनचलों के बेखौफ और बेकाबू होने का इससे बड़ा उदाहरण और कहां मिलेगा? शाहरुख अंकिता पर दोस्ती करने के लिए दबाव डाल रहा था, जिससे उसने इन्कार कर दिया। इससे वह धमकियों पर उतर आया। उसने अंकिता को ज़िंदा जलाने के लिए अल-सुबह चार बजे का समय चुना, ताकि बच्ची को कहीं से कोई मदद न मिले और उसका देहांत हो जाए।

शाहरुख अपने मंसूबों में कामयाब हुआ, लेकिन यह अंकिता के अलावा सरकार और समाज की हार है, जो मनचलों, अपराधियों के मन में खौफ पैदा नहीं कर पाए। ऐसे अपराध होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन अपराधी इस वजह से ‘हंसने’ का दुस्साहस कर पाता है, क्योंकि उसे पता है कि सजा मिलने में वर्षों लग जाएंगे। तब तक कोई दाव-पेंच लग ही जाएगा। ऐसे खूंखार लोग समाज के लिए खतरनाक हैं। इन्हें मृत्युदंड मिलना चाहिए और उचित समय पर मिलना चाहिए, ताकि अगली बार कोई ऐसा करने की जुर्रत न कर सके।

बेटियों को उच्च शिक्षा के साथ आत्मरक्षा सिखानी होगी। उन्हें बताना होगा कि आप सरस्वती, लक्ष्मी हैं तो काली और दुर्गा भी हैं। अगर कोई मनचला, सिरफिरा और अपराधी तत्त्व परेशान कर रहा है तो परिवार के सामने खुलकर अपनी बात कहें। ऐसे मामलों में परिजन अपनी बेटियों को ही दोषी ठहराने के बजाय अपराधियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराएं। सरकारें पुलिस तंत्र में सुधार करें और ऐसी व्यवस्था करें कि बेटियां अपनी बात निर्भय होकर कह सकें। पुलिस टालमटोल की प्रवृत्ति छोड़े और अपराधियों पर शिकंजा कसे, ताकि फिर कोई ‘अंकिता’ किसी दरिंदे की शिकार न बने।

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