अन्नाद्रमुक के मायने
अन्नाद्रमुक के मायने
मंगलवार को चेन्नई में अन्नाद्रमुक के शीर्ष नेताओं द्वारा आनन-फानन में बुलाई गई साधारण परिषद् की बैठक में ईके पलानीस्वामी और ओ पनीरसेल्वम के घटकों के सदस्यों ने एकता का प्रदर्शन करते हुए सर्वसम्मति से पार्टी की महासचिव वीके शशिकला को पार्टी से बाहर कर दिया। इसी के साथ ही पार्टी से निष्काषित शशिकला द्वारा लिए सभी फैसलों को भी रद्द कर दिया गया जिनमंे शशिकला द्वारा अपने भतीजे टीटीवी दिनाकरण को उपमहासचिव बनाने का फैसला भी शामिल है। साथ ही पार्टी द्वारा महासचिव के पद को ही हटा दिया गया और स्थायी रुप से यह पद तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयललिता के नाम कर दिया गया है। इस बैठक में दो नए पद भी बनाए जाने का निश्चय किया गया। संयोजक और संयुक्त संयोजक के रूप में महासचिव पद की ि़जम्मेदारियों को बाँट दिया गया है। पार्टी के लगभग सभी सदस्यों ने इस बैठक में भाग लिया और इस उपस्थिति से लग रहा है की टीटीवी दिनाकरण की राहें अब पहले से भी अधिक कठिन हो चुकी हैं।दिनाकरण को अब हर कदम पूरी तरह से जांच परख कर रखना होगा। जिन १४ विधायकों के समर्थन की बात दिनाकरण करते रहे हैं उन्हें अपना रुख बदलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। हालाँकि दिनाकरण मंगलवार के फैसले के विरोध में न्यायलय की चौखट में अर्जी लगा सकते हैं परंतु जब तक न्यायलय इस विषय पर कोई फैसला नहीं लेता तब तक दिनाकरण लाचार ही ऩजर आ रहे हैं। सितम्बर १४ को तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष दिनाकरण के समर्थक विधायकों से मुलाकात करने वाले हैं और उस बैठक के बाद ही इन विधायकों के असली रुख का पता चलेगा। हालाँकि इन विधायकों के समर्थन के बिना पलानीस्वामी के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने पर सवाल उठाना स्वाभाविक है परंतु सच यह भी है कि विधायक ऐसा फैसला लेने से सरकार में बने रहने के विकल्प को ही बेहतर मानेंगे। अन्नाद्रमुक अब अप्रत्यक्ष रूप से दो ऐसे घटकों का समूह बनता ऩजर आ रहा है जिनकी साथ रहने की मजबूरी है। दोनों को ही जयललिता की विरासत का फायदा चाहिए और दोनों ही घटकों के प्रमुख नेताओं को केंद्र सरकार में मंत्री बनाए जाने की भी उम्मीद है। इन्हें अब यह समझ आ चुका है कि साथ में रहकर जो फायदा है वह आपसी ल़डाई में नहीं है। अन्नाद्रमुक को अब केवल आखरी प़डाव सदन में अपने बहुमत प्राप्त करना रह गया है। विपक्ष अन्नाद्रमुक के समक्ष निकट भविष्य में बहुमत पेश करने की चुनौती रख सकता है। विश्वासमत जीतने के साथ ही अन्नाद्रमुक पुन: मजबूत हो जाएगा और राज्य में राजनीतिक स्थिरता लौट आएगी।