महागठबंधन की तीन कमजोर कड़ियां
महागठबंधन की तीन कमजोर कड़ियां
राहुल गांधी, मायावती, अखिलेश, ममता बनर्जी सहित विपक्ष के तमाम नेता मोदी के विजयरथ को रोकना चाहते हैं, पर आम जनता का यह सवाल बरकरार है कि मोदी को हटाने के बाद आप महंगाई, आतंकवाद, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार पर लगाम कैसे लगाएंगे।
नई दिल्ली। लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिए हर पार्टी जुट गई है। अपने कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाया जा रहा है, वहीं ‘महागठबंधन’ की संभावनाओं पर भी विचार किया जा रहा है। भाजपा अपने प्रमुख चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चुनावों में उतरेगी, जबकि महागठबंधन अभी तय नहीं कर पाया है कि वह कब बनेगा, उसका प्रमुख चेहरा कौन होगा। इन सबके बीच मतदाता बदलते माहौल को टीवी, अखबार, सोशल मीडिया पर गौर से देख रहा है। अगर विश्लेषकों की मानें तो विपक्ष की 3 बड़ी कमियां उस पर भारी पड़ सकती हैं, जिसका सीधा-सा मतलब है कि ये राजग को फायदा पहुंचा सकती हैं। जानिए, इनके बारे में।
1. आगामी लोकसभा चुनाव के बारे में अधिक संभावना इस बात की है कि वह व्यक्ति केंद्रित होगा। विपक्ष हर समस्या के मूल में मोदी को बता रहा है। वह मोदी को हटाने के लिए मुहिम चला रहा है, लेकिन इस बात का जिक्र नहीं कर रहा कि वह उन्हें हटाने के बाद हालात को बेहतर कैसे बनाएगा। राहुल गांधी, मायावती, अखिलेश, ममता बनर्जी सहित विपक्ष के तमाम नेता मोदी के विजयरथ को रोकना चाहते हैं, पर आम जनता का यह सवाल बरकरार है कि मोदी को हटाने के बाद आप महंगाई, आतंकवाद, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार पर लगाम कैसे लगाएंगे। कुल मिलाकर महागठबंधन से आम जनता की जरूरतें तो गायब दिखाई देती हैं।2. महागठबंधन बनाने के लिए दलों का गठजोड़ होना जरूरी है, पर सवाल यहां भी है कि क्या अब तक एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरकर लड़ते रहे राजनेता एक मंच पर आ पाएंगे। क्या ममता बनर्जी को यह स्वीकार होगा कि वे वामपंथ को अपना हिस्सा दे दें? क्या मायावती अखिलेश के लिए खुशी-खुशी अपनी सीटों की कुर्बानी देने के लिए तैयार होंगी? क्या स्वयं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कह चुके राहुल गांधी क्षेत्रीय पार्टियों की शर्तें मानने के लिए सहर्ष तैयार हो जाएंगे? यह इस महागठबंधन के सामने एक बड़ी चुनौती होगी।
3. अगर किसी तरह महागठबंधन बन गया, तो प्रश्न उपस्थित होगा— उसका नेता कौन होगा, नेता भी ऐसा जो सर्वमान्य हो? एक फॉर्मूला यह अपनाया जा सकता है कि चुनावों से पहले सीटों का बंटवारा कर लें। चुनाव नतीजों के बाद जिसकी ज्यादा सीटें आएंगी, उसी पार्टी से प्रधानमंत्री बनाया जाए। यह कल्पना जितनी आसान है, यथार्थ उतना ही कठिन है, क्योंकि उस स्थिति में हर दल ज्यादा से ज्यादा सत्ता में भागीदारी चाहेगा। मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए विवाद होंगे। इन सबके अलावा यह प्रश्न भी विचारणीय है कि ऐसा गठबंधन कितने दिन आगे बढ़ पाएगा। अत: विपक्ष को अपनी उपलब्धियों और ठोस योजनाओं के साथ जनता के बीच जाना चाहिए। अन्यथा महागठबंधन की ये कमियां उन पर भारी पड़ सकती हैं।