जिनकी संस्कृति सुरक्षित, उनका ही धर्म और समाज जिंदा रहता है: आचार्यश्री विमलसागरसूरी
नमि-बुद्धि-वीर वाटिका के पंडाल में धर्मसभा हुई

'आधुनिक समाज अपनी संस्कृति और महान संस्काराें काे भूलता जा रहा है'
चिकमगलूर/दक्षिण भारत। यहां नमिनाथ जैन मंदिर के पास नमि-बुद्धि-वीर वाटिका के पंडाल में गुरुवार काे विशाल धर्मसभा काे संबाेधित करते हुए आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि अपनी संस्कृति और परंपराओं की रक्षा पूरी निष्ठाभावना से की जानी चाहिए। जिनकी संस्कृति सुरक्षित रहती है, सिर्फ उनका ही धर्म और समाज जिंदा रहता है।
उन्होंने कहा कि चीन, इजरायल, जर्मनी, जापान और खाड़ी के देशाें काे अपनी संस्कृति पर बहुत नाज है। वे अपने परिधान, खानपान, भाषा, संस्कार और रीति-रिवाजाें काे सदियाें से बरकरार रखे हुए हैं।उन्होंने कहा कि भारत का आधुनिक समाज अपनी संस्कृति और महान संस्काराें काे भूलते जा रहा हैं। मानाे न मानाे, पर यह सच है कि सांस्कृतिक पतन कत्लखानाें से भी अधिक खतरनाक है। पशु कभी अपनी कत्ल के लिये कताराें में खड़े नहीं हाेते। भारत का आधुनिक मनुष्य ताे अपनी कत्ल के लिये कताराें में खड़ा है।
जैनाचार्य ने कहा कि भारत की नई पीढ़ियां अपनी राष्ट्रभाषा और स्थानीय मातृभाषा भूलती जा रही हैं। स्वयं के रीतिरिवाजाें में उनकी रुचि नहीं हैं। उनके परिधान, खानपान, संस्कार, सब बदलते जा रहे हैं। वे अंग्रेजाें की गुलाम बनकर फैशन के नाम पर फटे हुए, बेहूदे और कम कपड़े पहनती जा रही हैं। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक विदेशी व्यंजन खाने के शाैक बढ़ते जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्यवर्धक भारतीय भाेजन भुलाया जा रहा है। वे शराब, हुक्का, गुटखा, धूम्रपान, ड्रग, क्लब संस्कृति, ऑनलाइन गेमिंग जैसी बुराइयाें में बर्बादी के कगार पर पहुंच गई हैं। इनके कारण डिप्रेशन, अपराध और आत्महत्याओं की घटनाओं में निरंतर बढ़ाेतरी हाे रही है। यह सब भारतीय राष्ट्र और उसके समाज के लिये अत्यंत घातक व चिंताजनक विषय है।
उन्होंने कहा कि लाेग पशु-पक्षियाें और पर्यावरण के संरक्षण की बातें करते हैं और यहां ताे भारतीय समाज का भविष्य ही दांव पर लगा है। जब हमारी नई पीढियां जवानी से पहले ही बर्बाद हाे जाएगी ताे पशु-पक्षियाें और पर्यावरण काे बचाने का औचित्य भी क्या बचेगा?
गुरुवार काे नूतन माह के उपलक्ष्य में नमिनाथ जिनालय में श्रीसंघ ने सामूहिक चैत्यवंदना की। संगीतमय मंत्रजाप का आयाेजन हुआ। रात्रिकालीन ज्ञानसत्र में गणि पद्मविमलसागरजी ने शास्त्राें की बाताें के रहस्याें का विस्तार से प्रकाशन किया।
About The Author
Related Posts
Latest News
