कैसे लगाएं डॉलर को लगाम?
तेल की खपत बढ़ने से आयात बिल की रकम बढ़ती है

आम आदमी जब चीजें खरीदता है और वे उसे महंगी मिलती हैं
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए में आ रही गिरावट को रोकने के लिए ठोस उपाय करने होंगे। जब डॉलर मजबूत होता है और रुपए में गिरावट आती है तो महंगाई बढ़ने का अंदेशा होता है, क्योंकि देश की जरूरतों का बड़ा हिस्सा आयात से पूरा किया जाता है, जिसके भुगतान की मुख्य मुद्रा डॉलर है। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों के बाद आर्थिक सुधारों का वातावरण बन रहा है, जिससे निवेशक उसका रुख कर रहे हैं। रुपए में गिरावट के कारण सरकार की आलोचना हो रही है, पहले भी होती थी। अर्थशास्त्र के आंकड़ों से जुड़े विश्लेषण को समझ पाना हर किसी के लिए आसान नहीं है। खासकर आम आदमी जब चीजें खरीदता है और वे उसे महंगी मिलती हैं तो इसके लिए सरकारों को जिम्मेदार ठहराता है। बात काफी हद तक ठीक भी है, लेकिन जब तक आयात पर ज्यादा निर्भरता रहेगी, डॉलर को लगाम लगाना संभव नहीं है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि सरकार क्या करे और जनता क्या करे? रुपए में आ रही इस गिरावट को रोकने के लिए कुछ लंबी रणनीति बनानी होगी। अगर सरकार और जनता, दोनों इस पर काम करें तो न केवल रुपया मजबूत होगा, बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था भी बड़ी हो जाएगी। सबसे पहले उन तरीकों को गंभीरता से लागू करें, जिनमें डॉलर खर्च न हों या कम से कम खर्च हों। विदेश में सैर-सपाटे के बजाय अपने देश में पर्यटन को बढ़ावा दें। अत्यधिक महंगी और विलासित से संबंधित चीजों, जिनका आम आदमी की जरूरतों से खास सरोकार नहीं है, पर ज्यादा कर लगाया जाए। विदेशी चॉकलेट, मोबाइल फोन, साबुन, कपड़े, परफ्यूम, पेय पदार्थ, जूते, बेल्ट, पर्स आदि के बजाय स्वदेशी उत्पादों के उपभोग को बढ़ावा दिया जाए।
तेल की खपत बढ़ने से आयात बिल की रकम बढ़ती है। हमें इसके अन्य विकल्पों की ओर जाना होगा। इथेनॉल मिश्रण, हरित हाइड्रोजन से चलने वाले वाहनों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं को बेहतर बनाना होगा। हर रसोईघर में सौर ऊर्जा चालित चूल्हे को पहुंचाना सुनिश्चित करना होगा। विदेशी मुद्रा भंडार भरा रहे, इसके लिए जरूरी है कि अपने उद्योगों को विकसित किया जाए। भारत के पास मजबूत युवाशक्ति है। अगर इसे रोजगार का उचित प्रशिक्षण मिल जाए तो देश में बहुत बड़ा बदलाव आ जाए। इसके लिए सरकारों को थोड़ी-सी इच्छाशक्ति दिखानी होगी। हर क्षेत्र में ऐसे कई विकल्प हैं, जहां युवाशक्ति को सही दिशा दिखाकर नियुक्त कर दिया जाए तो कुछ ही वर्षों में रोजगार का परिदृश्य बदल सकता है। इसके लिए सरकारों को ऐसी नीतियां बनानी होंगी, जिनसे व्यवसाय करना आसान हो जाए। जो व्यक्ति व्यवसाय करना चाहता है, उसके सभी काम एक ऑनलाइन फॉर्म से होने चाहिएं। अभी कई जगह स्थिति यह है कि बिजली, पानी जैसी जरूरी सुविधाएं लेने के लिए लोगों को रिश्वत देनी पड़ती है। अगर बार-बार दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ेंगे तो कितने नौजवान व्यवसाय करना चाहेंगे? सरकार शिक्षा और स्वरोजगार की राह में आने वाले विभिन्न अवरोधकों को हटा दे तो रुपया मजबूत होने लगेगा। लोगों को यह सोच बदलनी होगी कि जो चीज विदेशी है, वही सबसे अच्छी है। इसमें कोई शक नहीं कि कई विदेशी चीजें अच्छी हैं, लेकिन उनका गुणगान करते रहने से तो काम नहीं चलेगा। हम अपनी चीजों को उनसे बेहतर क्यों नहीं बनाते? समस्या कहां है? इसे एक उदाहरण से समझिए। एक पार्टी में 100 लोग अपने-अपने समूह बनाकर विभिन्न विषयों पर बातचीत कर रहे हैं। 'रुपए में गिरावट', 'किसानों की हालत', 'बढ़ती बेरोजगारी' जैसे मुद्दे छाए हुए हैं। आयोजक महोदय कहते हैं कि हम पिछले महीने ही सपरिवार स्विट्जरलैंड घूमने गए थे, वहां खूब मस्ती की, जमकर शॉपिंग की। इस पार्टी में सजावट के फूल विदेश से आए हैं। जो विदेशी पेय पदार्थ मेहमानों को पेश किया गया है, वह भी बहुत महंगा है। एक सज्जन कहते हैं कि वे रिटायरमेंट के बाद बड़ा घर बनवाएंगे, जिसमें टाइल्स से लेकर फर्नीचर तक, सबकुछ 'बाहर' से आएगा। एक माता अपने सुपुत्र की शिकायत कुछ इस तरह करती हैं, 'यह तो कार के बगैर चलता ही नहीं है। इसे नींबू पानी, गन्ने का रस और दूध बिल्कुल पसंद नहीं हैं। कुछ दिन पहले मेरी मम्मी मूंगफली, गोंद के लड्डू और हाथ से बुना स्वेटर लेकर आई तो बोला, 'मुझे ये ओल्ड फैशन की चीजें अच्छी नहीं लगतीं। मेरे पास एक ही लाइफ है, इसलिए मैं तो सबकुछ ब्रांडेंड लेता हूं।' हां, उस नौजवान को भी गिरते रुपए, किसानों की हालत और बेरोजगारी को लेकर बहुत चिंता है। साथ ही, शिकायत है कि सरकार की कोशिशों का असर नहीं हो रहा है।