धधकता लावा

चीन ने सख्त लॉकडाउन लगाया, लेकिन लोगों को कोई उम्मीद नहीं दिखाई

धधकता लावा

चीनी लोगों के सीने में विद्रोह का लावा धधक रहा है, जिसका देर-सबेर फूटना तय है

आखिर वही हुआ, जो ऐसे हालात में होता है। चीन के कई शहरों में जनता सड़कों पर उतर आई है। हमने 26 नवंबर, 2022 के अंक में 'चीन में जनाक्रोश' शीर्षक से संपादकीय में जिन बातों का जिक्र किया था, हालात बिल्कुल उसी दिशा में जा रहे हैं। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का अपने देश के नागरिकों के जीवन और मानवीय संवेदनाओं से कोई लेना-देना नहीं है। उसे तो सिर्फ सत्ता चाहिए, हर हाल में चाहिए। 

चीन ने सख्त लॉकडाउन लगाया, लेकिन लोगों को कोई उम्मीद नहीं दिखाई। सख्त लॉकडाउन भारत में भी लगाया गया था और उससे बहुत लोगों का जीवन प्रभावित हुआ, लेकिन यहां एक उम्मीद थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कभी दीप प्रज्वलित कराते तो कभी चिकित्साकर्मियों के सम्मान में ताली बजवाते। 

हम जानते हैं कि कोरोना महामारी का खात्मा ताली और दीए से नहीं, बल्कि वैक्सीन और सावधानी से होगा, लेकिन इनसे नागरिकों में उम्मीद जगती है कि आने वाला कल बेहतर होगा। उम्मीद में बड़ी ताकत है। इसके दम पर इन्सान मुश्किल से मुश्किल वक्त काट लेता है। चीन सरकार लाख उपायों के बावजूद कोरोना का प्रसार रोक पाने में सक्षम नहीं हो रही है। उसकी वैक्सीन नाकारा साबित हो रही है। 

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग खुद को लोगों के भाग्य-विधाता के तौर पर पेश करना चाहते हैं। उन्होंने बिना किसी तैयारी के कई शहरों में ऐसा लॉकडाउन लगाया कि लोग इधर से उधर नहीं हो सकते।

रही-सही कसर उरूमकी शहर में एक अपार्टमेंट में लगी आग ने पूरी कर दी, जिसमें दर्जनभर लोग जलकर मर गए। घरों में कैद लोगों के लिए चीनी सरकार का फैसला अभिशाप सिद्ध हो रहा है। वहां भूखे मरने की नौबत आ गई है। रोजगार खत्म हो रहे हैं। चीन में प्रॉपर्टी बाजार में भारी निवेश हुआ था, जो धीरे-धीरे डूब रहा है। अपार्टमेंट खाली पड़े हैं। बैंकों का ब्याज बढ़ता जा रहा है। बिल्डर दिवालिए हो रहे हैं। इस स्थिति में लोगों का आक्रोशित होना स्वाभाविक है। 

हालात ऐसे हो गए हैं कि शंघाई, बीजिंग और वुहान में लोगों के हुजूम तख्ती लेकर सड़कों पर निकल आए हैं। वे राष्ट्रगान गा रहे हैं। निस्संदेह वे अपने देश से प्रेम करते हैं, लेकिन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के खात्मे के नारे साबित कर रहे हैं कि अब जनता इन बंदिशों से आजिज आ चुकी है। तरह-तरह की पाबंदियां, ऊपर से सख्त लॉकडाउन ... यह सब जनता को आंदोलित कर रहा है। 

शंघाई में जिस तरह लोग निडर होकर प्रदर्शन कर रहे हैं, वह अंतरराष्ट्रीय मीडिया को चौंकाता है, क्योंकि चीन से ऐसी तस्वीरें आना अस्वाभाविक है। वास्तव में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में पूरा तंत्र एक सड़े हुए सेब की तरह है, जो अंदर से पूरी तरह बेकार हो चुका है, लेकिन उसके ऊपर पेंट कर दुनिया के सामने यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि चीन में बहुत अनुशासन, समृद्धि और समन्वय है। असल में चीनी लोगों के सीने में विद्रोह का लावा धधक रहा है, जिसका देर-सबेर फूटना तय है।

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