किस दम पर मोदी को चुनौती दे रहे हैं सिद्दरामैया?

किस दम पर मोदी को चुनौती दे रहे हैं सिद्दरामैया?

बेंगलूरु/दक्षिण भारतएक राजनेता की सफलता इस पर निर्भर करती है कि अपने राजनीतिक करियर के दौरान आने वाले मौकों को वह कैसे भुनाते हैं्। राजनीतिक विकास को मापने वाला यह वह पुराना पैमाना है जो मुख्यमंत्री सिद्दरामैया को एक ब़डा नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कर्नाटक में ब़डी चुनौती बनाता है। वर्ष १९८३ का वक्त था जब सिद्दरामैया जनता पार्टी के दफ्तर के बाहर विधानसभा चुनाव के लिए टिकट का इंतजार कर रहे थे। तब उनके राजनीतिक गुरु थे अब्दुल नजीर साब, जिन्हें बाद में पेय जल की उपलब्धता और पंचायती राज व्यवस्था को लागू कराने की वजह से प्रसिद्धि मिली। तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष एचडी देवेगौ़डा ने यह सुनिश्चित किया कि सिद्दरामैया को टिकट ना मिले। अपने शिष्य सिद्दरामैया की तरह ही समाजवादी पृष्ठभूमि से आने वाले ऩजीर साब ने उन्हें सलाह दी कि वह निर्दलीय चुनाव ल़ड्ें। उनकी सलाह पर सिद्दरामैया निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ल़डे और जीतने के बाद रामकृष्ण हेग़डे के नेतृत्व में कर्नाटक की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का उन्होंने समर्थन किया।हेग़डे ने राज्य की प्रशासनिक भाषा के रूप में कन्ऩड को इस्तेमाल करने के लिए गठित समिति की अध्यक्षता सिद्दरामैया को सौंप दी। वर्ष १९८५ के बाद हेग़डे ने सिद्दरामैया को अपने मंत्रालय में शामिल किया और फिर पुराने मैसूरु क्षेत्र में अपना जनाधार ब़ढाने के लिए देवेगौ़डा ने भी उन्हें अपना लिया। सिद्दरामैया की पहचान एक दक्षिणपंथी के रूप में थी। वह कुरुबा (चरवाहा) जाति के हैं जिनके जमीनी स्तर पर प्रभावशाली वोक्कालिगा समुदाय से अच्छे ताल्लु़कात हैं। देवेगौ़डा भी इसी समुदाय से हैं। सिद्दरामैया किसानों के लिए प्रतिबद्ध वकील और स्पष्ट बोलने वाले व्यक्ति रहे हैं।् फ्द्बद्वय् त्र्र्‍सिद्दरामैया के दोस्त से विरोधी बने पूर्व सांसद एएच विश्वनाथ बताते हैं, ’’ये मौका मिलने से ही वह नेता बने। उन्होंने हेग़डे के नेतृत्व में एक जूनियर मंत्री के रूप में काम किया। इसके बाद जेएच पटेल की कैबिनेट में मंत्री रहे और फिर देवेगौ़डा के वित्त मंत्री बने। उनका यह स्वाभाविक उत्थान था।’’ ’’आंक़डों की समझ’’ के कारण सिद्दरामैया से वित्त विभाग के कई अनुभवी अधिकारियों को बहुत अचंभा होता था। बोलने के उनके असहज अंदाज से कई अधिकारियों को घबराहट होती थी क्योंकि वह मुश्किल मुद्दों पर महत्वपूर्ण सवाल उठाते थे। सिद्दरामैया के वित्त मंत्री बनने के बाद के शुरुआती दिनों में उनके साथ काम करने वाले एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर कहा, शुरू में उनके साथ काम करना बहुत मुश्किल था, लेकिन बाद में हमें एहसास हुआ कि उनका दिल सा़फ था और ची़जों को लेकर वह बिल्कुल स्पष्ट थे। बाद के दिनों में नौकरशाही के भीतर उनकी एक प्रतिष्ठा बन गई थी। कांग्रेस के नेताओं को सिद्दरामैया के साथ अपना पहला अनुभव तब मिला जब देवेगौ़डा ने उन्हें वर्ष २००४ में कांग्रेस-जनता दल (एस) की गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री बनाया। तत्कालीन दिवंगत मुख्यमंत्री धरम सिंह ने कहा था, वह एक अच्छे व्यक्ति हैं और मुझे नहीं पता था कि वह आंक़डों में इतने कुशल हैं्। जब देवेगौ़डा के बेटे एचडी कुमारस्वामी ने गठबंधन सरकार को गिरा दिया और भाजपा के साथ एक और गठबंधन सरकार बनाने के लिए हाथ मिलाया तो सिद्दरामैया को लगा कि जब तक वह देवेगौ़डा परिवार के साथ रहेंगे, तब तक मुख्यमंत्री बनने में कामयाब नहीं हो सकेंगे। वह भाजपा के साथ जु़डने को लेकर खुश नहीं थे।द्भह्र द्धढ्ढणक्कय् ्यफ्सद्यय्द्बस्द्भय् ·र्ैंय् ·र्ैंख्रये वह पल था जब ७० के दशक में दिवंगत देवराज अर्स के करीबी सहयोगी और अनुभवी राजनेता आरएल जालप्पा के संरक्षण में कर्नाटक के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव लाने के लिए एक पुरानी अवधारणा को पुनर्जीवित करने का विचार आया। यह अर्स ही थे जिन्होंने अब तक सत्ता में साझेदारी कर रही समाज की दो उच्च जातियों वोक्कालिगा और लिंगायतों के बीच ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यकों की जगह बनाई और कर्नाटक के राजनीतिक इतिहास से सदा के लिए जु़ड गए्। वहीं, जालप्पा ने ’’अहिंदा’’ बनाया, जो अल्पसंख्यकों, ओबीसी और दलितों की कन्ऩड भाषा का एक संक्षिप्त रूप है। इस मंच पर जालप्पा और सिद्दरामैया ने एक साथ काम किया और इसने कांग्रेस में सिद्दरामैया का कद ब़ढा दिया क्योंकि उन्होंने जनता दल (एस) की कुरुबा जाति के वोट को कांग्रेस के वोट में तब्दील करने के साथ ही ओबीसी और दलित वोटों को और मजबूत किया। मुख्यमंत्री बनने के बाद सिद्दरामैया ने अपनी सामाजिक-आर्थिक सुधार योजनाओं से बेहद व्यापक सामाजिक बदलाव किया। उन्होंने गरीबों की सबसे बुनियादी समस्या भोजन पर काम किया। उनकी अन्न-भाग्य योजना (सात किलो चावल), क्षीर-भाग्य (स्कूल जाने वाले सभी छात्रों के लिए १५० ग्राम दूध) और इंदिरा कैंटीन ने उन्हें गरीबों का समर्थन दिलाया। वहीं, पिछले पांच सालों के दौरान उन्होंने अपने सभी बजट में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कुछ नया जो़डा है, जैसे कि स्नातक होने तक मु़फ्त शिक्षा, कॉलेज छात्रों के लिए लैपटॉप, पंचायतों में महिलाओं का होना अनिवार्य और गर्भवती होने के बाद से १६ महीने तक महिलाओं के लिए पौष्टिक भोजन आदि।लेकिन, भाजपा मानती है कि सिद्दरामैया केवल एक क्षेत्रीय नेता बन कर रह गए हैं क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस कम़जोर हो गई हैं

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