सुवर्ण जाति के गरीब छात्रों को आरक्षण का लाभ देने पर हो विचार

सुवर्ण जाति के गरीब छात्रों को आरक्षण का लाभ देने पर हो विचार

चेन्नई। मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को एक ऐसा सुझाव दिया है जिसे अगर राज्य सरकार द्वारा मान लिया जाता है तो यह सिर्फ तमिलनाडु नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों में रहने वाले गरीब वर्ग के सर्वण जाति के छात्र-छात्राओं के लिए वरदान होगा जो प्रतिभा होने के बावजूद आरक्षण के कारण सरकारी नौकरियों में स्थान नहीं बना पा रहे हैं। मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार से कहा है कि वह सवर्ण जाति के ऐसे छात्र छात्राओं को आरक्षण देने पर विचार करे जो आर्थिक रुप से कमजोर पृष्ठभूमि से आते हैं। न्यायाधीश एन किरुबाकरण ने आरक्षण से संबंधित एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि तथाकथित ऊंची जातियों के गरीब वर्ग के लोगों को दरकिनार किया जा रहा है। इसके बावजूद ऐसे लोग इस डर से अपनी आवाज नहीं उठा रहे हैं कि यदि वह आवाज उठाते हैं तो सामाजिक समानता के नाम पर उनकी आवाज को दबाने की कोशिश की जाएगी। उन्होंने कहा कि सामाजिक समानता समाज के सभी वर्ग के लोगों के लिए होनी चाहिए। न्यायाधीश ने कहा कि ऊंची जाति के गरीब वर्ग के लोगों को आरक्षण देने के मुद्दे को दूसरे वर्ग के लोगों को मिल रहे आरक्षण के विरोध की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। न्यायालय इस बात से वाकिफ है कि सभी समुदायों और जातियों में गरीब लोग हैं। ऐसे लोगों को शैक्षणिक,आर्थिक और सामाजिक तौर पर आगे बढाने के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि एक गरीब आदमी केवल गरीब आदमी ही होता है चाहे वह किसी ऊंची जाति का हो या किसी पिछ़डे समुदाय का। ऐसे गरीब लोगों के लिए मदद का हाथ बढाने की आवश्यकता है। इनकी न सिर्फ आर्थिक मदद की जानी चाहिए बल्कि रोजगार और शिक्षा में आरक्षण देने पर भी विचार किया जाना चाहिए।न्यायालय ने राज्य के एक मेडिकल कॉलेज में अन्य जाति श्रेणी के विद्यार्थियों के लिए आवंटित १४ सीटों को पिछ़डी जाति और अल्पसंख्यक पिछ़डी जाति के विद्यार्थियों को दिए जाने के कॉलेज प्रशासन के निर्णय को चुनौती देते हुए दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बातें कहीं। उन्होंने कहा कि सरकार को आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग से आने वाले सर्वण जाति के विद्यार्थियों को राज्य के कॉलेजों में दाखिला देने के दौरान आरक्षण का लाभ देने के बारे में विचार करना चाहिए।

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