जयललिता की उंगलियों के निशान की जांच पर लगी रोक
जयललिता की उंगलियों के निशान की जांच पर लगी रोक
चेन्नई। मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पी वेलमुरुगन ने द्रवि़ड मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के एक कार्यकर्ता द्वारा अखिल भारतीय अन्ना द्रवि़ड मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) के एक प्रत्याशी के नामांकन पर्चा पर पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की उंगलियों के निशान की जांच करवाने का अनुरोध करते हुए दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए बेंगलूरु के परपन्ना अग्रहारम जेल के अधिकारियों और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के अधिकारियों को पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के बायोमेट्रिक निशानों को उपलब्ध करवाने का निर्देश दिया था। जयललिता आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में परपन्ना अग्रहारम जेल में बंद थीं और इसी दौरान जेल प्रशासन द्वारा उनकी उंगलियों के निशान लिए गए थे। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय पर जयललिता की उंगलियों के निशान की जांच करने पर रोक लगा दी है।द्रमुक के प्रत्याशी पी सर्वणन ने मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर कर थिरुपाराकुंड्रम विधानसभा उपचुनाव के लिए अन्नाद्रमुक प्रत्याशी एके बोस के नामांकन पर्चा पर जयललिता के बाएं हाथ की उंगलियों के निशान की प्रमाणिकता पर प्रश्न उठाए थे। सर्वणन ने याचिका में कहा था कि जिस समय पूर्व मुख्यमंत्री की उंगलियों के निशान नामांकन पर्चे पर लिए गए थे उस समय वह अस्पताल में भर्ती थीं और बेहोश थीं। मद्रास उच्च न्यायालय के निर्देश पर परपन्ना अग्रहारम जेल के जेलर मोहन कुमार मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुए थे और उन्होंने जयललिता के जेल में रहने के दौरान बायोमेट्रिक स्कैनर से लिए गए जयललिता की उंगलियों के निशान के नमूने सौंपे थे।मद्रास उच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई जारी रहने के दौरान ही अन्नाद्रमुक के प्रत्याशी एके बोस ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर यह अनुरोध किया कि मद्रास उच्च न्यायालय को पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की उंगलियों के निशान की जांच करने से रोका जाए क्योंकि मद्रास उच्च न्यायालय उनकी निजता में दखल नहीं दे सकता। भारत के संविधान के अनुसार सभी नागरिक को उसके जीवित रहने और उसके मरने के बाद भी निजता का अधिकार प्राप्त है।एके बोस की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश एएम खानविलकर और न्यायाधीश डीवाई चंद्रचू़ड की सदस्यता वाली पीठ ने इस पर रोक लगा दी। उल्लेखनीय है कि इस मामले में यूआईडीएआई के उप महानिदेशक वाईएलपी राव भी मद्रास उच्च न्यायालय में उपस्थित हुए थे और उन्होंने न्यायालय को बताया था कि प्राधिकरण आधार कानून के अनुसार किसी भी नागरिक के बायोमेट्रिक निशान उपलब्ध नहीं करवा सकता। आधार कानून के अनुसार प्राधिकरण के पास उपलब्ध नाम, जन्म, लिंग और जन्म स्थान की जानकारी ही आवश्यकता प़डने पर साझा की जा सकती है।