बसवराज बोम्मई: कर्नाटक की राजनीति के अगले लिंगायत सिपहसालार

बसवराज बोम्मई: कर्नाटक की राजनीति के अगले लिंगायत सिपहसालार

बसवराज बोम्मई: कर्नाटक की राजनीति के अगले लिंगायत सिपहसालार

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई। फोटो स्रोत: फेसबुक पेज।

नई दिल्ली/बेंगलूरु/भाषा। कर्नाटक में एक बार फिर सत्ता की बिसात के मोहरे बदल गए। किसी दक्षिणी राज्य में पहली बार भगवा लहराने वाले कुशल राजनीतिज्ञ बीएस येडियुरप्पा को यह मलाल तो रहेगा कि वह चौथी बार भी मुख्यमंत्री के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए, लेकिन उन्हें इस बात का सुकून भी होगा कि राज्य में उनके सबसे करीबी और मजबूत सहयोगी बसवराज बोम्मई को उनका उत्तराधिकारी बनाने से बाजी अभी उनके हाथ में ही है और इस फैसले से पार्टी ने भी अपनी राजनीतिक जमीन खिसकने से बचा ली।

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कुछ समय पहले ही अपने मुख्यमंत्री बनने की अटकलों को खारिज कर चुके बोम्मई कर्नाटक की जनता के लिए एक हमदर्द और मेहरबान चेहरे के तौर पर जाने जाते हैं। राज्य में उनकी पहचान एक सुलझे हुए, शांत और ठंडे दिमाग वाले नेता की है। एक समय भाजपा को छोड़कर कर्नाटक जनता पक्ष नाम से नई पार्टी बनाकर भाजपा के लिए चुनौती बने येडियुरप्पा को 2013 में वही पार्टी में वापस लौटा लाने में सफल रहे थे। मृदुभाषी बोम्मई विपक्षी दल के नेताओं तक भी अपनी बात आसानी से पहुंचा पाते हैं।

अपनी बहुत सी विशेषताओं के कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का रास्ता हमवार करने से पहले बसवराज बोम्मई येडियुरप्पा सरकार में गृह मंत्रालय सहित कई महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। खेती और सिंचाई से जुड़े मामलों की गहरी समझ होने के नाते उन्हें राज्य की सिंचाई योजनाओं की सफलता का श्रेय दिया जाता है। उन्हें कर्नाटक के हावेरी जिले के शिगगांव में पहली शत प्रतिशत पाइप सिंचाई परियोजना के कार्यान्वयन के लिए भी जाना जाता है। यह देश में अपनी तरह की पहली सिंचाई परियोजना है।

बसवराज बोम्मई कर्नाटक के 11वें मुख्यमंत्री और जनता परिवार के दिग्गज नेता एसआर बोम्मई के पुत्र हैं तथा पिछले तीन दशक से भी अधिक समय में उन्होंने राज्य की सियासत में अपना कद बढ़ाया है। 28 जनवरी 1960 को जन्मे बसवराज बोम्मई की मां का नाम गंगम्मा है और उन्होंने केएलई टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से मकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद पुणे में तीन साल तक टाटा मोटर्स में काम किया।

बोम्मई का मानवीय पक्ष भी राज्य की जनता में उनकी छवि गढ़ता रहा। अपने पालतू कुत्ते की मौत पर सोशल मीडिया पर फूट-फूटकर रोते नजर आए बोम्मई कोविड की दूसरी लहर के दौरान कर्नाटक के लोगों के साथ पूरी मजबूती के साथ खड़े रहे। उन्होंने हावेरी जिले के शिगगांव स्थित अपने घर को कोविड देखभाल केन्द्र में बदल दिया, जहां 50 कोविड मरीजों के इलाज की व्यवस्था की गई थी। इस दौरान उन्होंने डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ के अलावा मरीजों के लिए ऑक्सीजन सांद्रकों की भी व्यवस्था की।

येडियुरप्पा की तरह बोम्मई भी राज्य की राजनीति की दिशा तय करने वाले सदर लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। राज्य के 17 प्रतिशत मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले इस समुदाय ने कई बार चुनावी समीकरण बदले हैं। बहरहाल बोम्मई के लिए मुख्यमंत्री के तौर पर सत्ता की बिसात पर टिके रहना बहुत चुनौतीपूर्ण होने वाला है क्योंकि इस बार बिसात पर वह अकेले राजा नहीं होंगे। इतिहास गवाह है कि अपने प्रशंसकों में ‘राजा हुली’ (राजा शेर) कहे जाने वाले येडियुरप्पा कब कहां किस खाने में जा बैठेंगे, कहना मुश्किल है।

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