हम सब एक हैं, एक रहेंगे

विभाजन के बीज किसने बोए थे?

हम सब एक हैं, एक रहेंगे

किसने भारत मां को विभाजन के गहरे घाव दिए थे?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने राष्ट्रीय एकता के संबंध में बहुत गहरी बात कही है। अगर समस्त देशवासी यह समझ जाएं तो कोई विवाद और फसाद पैदा ही न हो। अब तो वैज्ञानिक प्रणालियों से सिद्ध हो चुका है कि अविभाजित भारत के सभी लोगों के पूर्वज एक थे। हमारा खून एक है। नाम, पहनावा, भाषा और पूजन-पद्धति बदल लेने से पूर्वज नहीं बदल जाते। मोहन भागवत आज जो बात कह रहे हैं, वह कभी स्वामी विवेकानंद ने कही थी - 'हम सब ऋषियों की संतानें हैं।' तो समस्या कहां पैदा हुई? विभाजन के बीज किसने बोए थे? नफरत के पौधों को खाद-पानी देकर किसने सींचा और किसने भारत मां को विभाजन के गहरे घाव दिए थे? विदेशी आक्रांता तो यहां आए ही इसलिए थे, ताकि लूट-मार कर सकें, लोगों को बांट सकें। वे भारत में तीर्थयात्रा कर पुण्य कमाने नहीं आए थे। उनके इरादे स्पष्ट थे। हमारे पूर्वजों से कहीं-न-कहीं यह गलती हुई कि वे समय रहते उनके इरादों को भांप नहीं पाए थे। अगर वे देश-दुनिया में होने वाले बदलावों पर नजर रखते और विदेशी आक्रांताओं को उस समय ही कुचल देते तो आज हिंदुस्तान का नक्शा कुछ और होता। सोचिए, करोड़ों की आबादी वाले देश में मुट्ठीभर अंग्रेज कैसे अपनी जड़ें जमा सके और कैसे सदियों तक राज कर सके? हमारे पूर्वज वीरता में किसी से कम नहीं थे, बल्कि औरों से बढ़कर ही थे। बस, कमी यह रही कि विदेशी आक्रांता किसी-न-किसी बहाने से भाई को भाई से लड़ाते रहे, उन्हें एक-दूसरे से अलग करने के पांसे फेंकते रहे। उन्होंने ऐसे बिंदु तलाशे, जो कालांतर में विभाजन के बीज बने। उनके लिए जमीन तो वे पहले ही तैयार कर चुके थे।

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सवाल है- इतिहास के उस कालखंड से क्या सीखा जाए? उसका पहला सबक यही है कि किसी भी कीमत पर राष्ट्रीय एकता की डोर कमजोर न हो। हमें भाषावाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता से ऊपर उठना होगा। ध्यान रखें, भाषा, जाति, क्षेत्र, धर्म आदि अपनेआप में कोई समस्या नहीं हैं। समस्या तब पैदा होती है, जब लोग इनके आधार पर खुद को सर्वश्रेष्ठ मानने लगते हैं और दूसरों को कमतर समझते हैं। अगर भारत में विविधता देखने निकलेंगे तो 'कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर बानी' - कहावत साकार होती पाएंगे। जिस देश में भाषा, धर्म, खानपान, पर्व, पहनावा, परंपरा, मौसम और सभी मामलों में इतनी ज्यादा विविधता होती है, वहां नागरिकों की जिम्मेदारियां भी ज्यादा होती हैं। हमें इस विविधता को अपने देश की ताकत बनानी चाहिए। किसी को यह मौका नहीं देना चाहिए कि वह चिंगारी भड़काए और दूर खड़ा तमाशा देखे। पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति के एक कथित सलाहकार ने रूसी तेल आयात को लेकर हिंदू समाज की एक जाति के बारे में ओछी टिप्पणी की थी। उसकी मंशा देशवासियों में फूट डालने की थी। आश्चर्य की बात है कि भारत में कुछ लोग तुरंत ही उसकी हां में हां मिलाने लगे थे! सुदूर विदेश में कोई शातिर व्यक्ति हमारे भाइयों के बारे में अनर्गल टिप्पणी कर दे और यहां कुछ लोग उसकी ताल पर थिरकने लग जाएं तो उन्होंने इतिहास से क्या सीखा? यह वही फॉर्मूला है, जिसे अंग्रेजों ने यहां बार-बार आजमाया था, इसके जरिए लोगों को बार-बार उकसाया था। नतीजा क्या निकला था? इतिहास से कुछ तो सीखें। आपकी संपत्ति, उपलब्धि, प्रसिद्धि तब तक ही हैं, जब तक देश एकजुट है, सुरक्षित है। 'हम सब एक हैं, एक रहेंगे' - इसी भावना के साथ देश को एकजुट रखना है।

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