'परमात्मा की आज्ञा का पालन करना ही मानव जीवन का सच्चा धर्म है'
मुनिश्री ने कहा कि शरीर हमारा सिर्फ श्मशान तक ही साथ दे पाएगा

धर्म की दूसरी परिभाषा जयणा (अहिंसा) का पालन करना है
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के जिनकुशलसूरी जैन दादावाड़ी ट्रस्ट बसवनगुड़ी में विराजित मुनिश्री मुक्तिप्रभसागरजी, गणिवर्यश्री मनीषप्रभसागरजी ने अपने प्रवचन में कहा कि शरीर हमारा सहयाेगी है, जाे हमें माेक्ष तक पहुंचा सकता है। शरीर के साथ मन जुड़ा हुआ है जाे हमें नरक में भी ले जा सकता है और उत्तम गति में भी पहुंचा सकता है।
मुनिश्री ने कहा कि शरीर हमारा सिर्फ श्मशान तक ही साथ दे पाएगा। मन काे हमें आत्मा से जाेड़ना है। धर्म की सच्ची परिभाषा के संदर्भ में परमात्मा की आज्ञा ही धर्म है। हमारा आचरण, व्यवहार और क्रिया परमात्मा की आज्ञा के अनुरूप हाेना चाहिए।धर्म की दूसरी परिभाषा जयणा (अहिंसा) का पालन करना है। जयणापूर्वक बनाया हुआ आहार ही हमें ग्रहण करना चाहिए। हम जैसा अन्न ग्रहण करेंगे, वैसा ही हमारा मन हाेगा। शरीर में रही हुई बीमारियां हमें यही बताती हैं कि शरीर अलग है और हमारी आत्मा अलग है, हमें अपने आत्म भावाें में ही रमण करना है।
उन्हाेंने कहा कि शरीर के प्रति हमारी आसक्ति कम हाेगी ताे हमारा आत्मबल पुष्ट हाेगा और मन में वैराग्य पैदा हाेगा। हमारी सम्पत्ति भी हमारे घर तक ही साथ चलेगी। हमारी आत्मा के साथ हमारी साधना ही चलेगी। परिवार और रिश्तेदार भी हमारे साथ सिर्फ श्मशान तक ही चलेंगे।
एक आत्मा ही है जाे कल भी हमारी थी, आज भी हमारी है और माेक्ष प्राप्ति तक हमारी ही रहेगी और वही हमारे साथ चलेगी। हमें स्व और पर का भेद करना चाहिए। हमने अभी तक स्व काे पर माना है और पर काे स्व माना है, लेकिन जिस दिन स्व और पर का भेद मिटेगा, उसी दिन हमें आत्मा का सच्चा सुख महसूस हाेगा।