अब गठबंधन के साथी कांग्रेस की कर रहे हैं फजीहत!
कश्मीर में नेशनल कान्फ्रेंस और जम्मू में भाजपा को अधिक सीटें मिली हैं
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मनोज कुमार अग्रवाल
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चुनावों के दौरान भाजपा को सत्ता विरोधी लहर के अलावा कांग्रेस व अन्य दलों द्वारा बेरोजगारी और किसान आंदोलन आदि को लेकर आरोपों का सामना करना पड़ा| दूसरी ओर भाजपा ने कांग्रेस के शासनकाल में भ्रष्टाचार, भूमि स्कैंडलों और सरकारी नौकरियों में पक्षपात आदि का मुद्दा उठाया| कांग्रेस में हाल ही के लोकसभा चुनावों में अच्छे प्रदर्शन के चलते अति आत्मविश्वास, मुख्यमंत्री को लेकर कलह, कुमारी शैलजा की नाराजगी के प्रति हाईकमान की उदासीनता और ’आप’ तथा अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ चुनावी गठबंधन न होना कांग्रेस पार्टी के पिछड़ जाने का कारण भी रहा| हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद इंडिया ब्लॉक के सहयोगी अब खुलकर कांग्रेस के विरोध में आ गए हैं| हरियाणा में मंगलवार को चुनाव में मिली हार के बाद जहां कई सहयोगी दलों ने कांग्रेस पर निशाना साधा तो वहीं कांग्रेस को अगले ही दिन दो बड़े झटके भी लगे| पहले तो आम आदमी पार्टी ने साफ कर दिया कि वो दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनाव में अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे और किसी से गठबंधन नहीं करेंगे| वहीं, सपा ने भी यूपी उपचुनाव को लेकर उन सीटों पर भी अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया जिसपर कांग्रेस दावा कर रही थी| हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद आदमी पार्टी ने दिल्ली चुनाव के लिए बड़ा ऐलान किया है| आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने कहा,’हम दिल्ली (विधानसभा) चुनाव अकेले लड़ेंगे| एक तरफ ओवर कॉन्फिडेंट कांग्रेस है तो दूसरी तरफ अहंकारी भाजपा है| हमने पिछले १० सालों में दिल्ली में जो किया है, उसके आधार पर हम चुनाव लड़ेंगे|
उधर, शिवसेना ने सामना में लिखा कि हरियाणा की हार से महाराष्ट्र कांग्रेस को भी सीख लेने की जरूरत है. शिवसेना ने कहा कि कांग्रेस ने हरियाणा में आप या अन्य दलों से गठबंधन नहीं किया, जिसके चलते उसे हार का सामना करना पड़ा. जबकि जम्मू-कश्मीर में गठबंधन का फायदा दिखा| शिवसेना ने बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस को पता है कि जीत को हार में कैसे बदलना है| शिवसेना ने कहा कि हरियाणा की हार कांग्रेस के ओवर कॉन्फिडेंस और राज्य नेतृत्व के अहंकार का नतीजा है| हुड्डा ने नॉन जाट वोटर्स को साथ नहीं लिया, जिसका खामियाजा भुगतना पड़ा|
जहां तक जम्मू-कश्मीर का संबंध है, कश्मीर में नेशनल कान्फ्रेंस और जम्मू में भाजपा को अधिक सीटें मिली हैं| कश्मीर में नेशनल कान्फ्रेंस (४२) तथा सहयोगी कांग्रेस (६) को ४८ सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिला है| अतीत में कांग्रेस पार्टी का जम्मू क्षेत्र में मजबूत आधार रहा है परन्तु इस बार उसका आधार खिसक गया और वह जम्मू क्षेत्र में एक ही सीट जीत पाई| सबसे बड़ा झटका पी.डी.पी. को लगा है जिसे ३ सीटें ही मिली हैं|
जम्मू-कश्मीर के चुनावों में भाजपा को बड़े करिश्मे की उम्मीद थी परन्तु उसे २९ सीटों पर संतोष करना पड़ा| भाजपा नेताओं का अनुमान था कि कुल ३५ के लगभग सीटें आने पर वे ५ नामांकित सीटों और निर्दलीयों के सहयोग से सरकार बनाने में सफल हो जाएंगे परन्तु ऐसा नहीं हो रहा|सरकार बनाने की कोशिश में पहाड़ी भाषी समुदाय को पिछड़ी जनजाति का दर्जा देने, धारा ३७० हटाने और जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की समाप्ति तथा पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के विरुद्ध चलाए गए ’आल आउट’ अभियान तथा मुसलमान उम्मीदवारों को टिकट देने का भी इसे कोई विशेष लाभ नहीं मिला| अलबत्ता जम्मू-कश्मीर में ’आप’ को एक सफलता अवश्य मिली है जहां उसका एक उम्मीदवार चुनाव जीत गया है| नेकां-कांग्रेस गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलने पर सरकार बनाने की राह आसान हो गई है और नैशनल कान्फ्रेंस अध्यक्ष डा. फारूक अब्दुल्ला ने उमर अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा भी कर दी है| पीडीपी सुप्रीमो महबूबा मुफ्ती ने कांग्रेस और नैशनल कांफ्रैंस की जीत पर कहा है कि केंद्र को जम्मू-कश्मीर के निर्णायक फैसले से सबक लेना चाहिए और नेकां-कांग्रेस सरकार के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए| यदि वे ऐसा करते हैं तो यह विनाशकारी होगा| मैं जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी स्थिर सरकार को वोट देने के लिए बधाई देती हूं|
नेकां सुप्रीमो फारूक अब्दुल्ला ने भी बड़ा दिल दिखाते हुए कहा है कि, गठबंधन सरकार में पीडीपी को भी शामिल किया जाएगा| बहरहाल, अब जबकि भाजपा द्वारा हरियाणा में और नेकां कांग्रेस गठबंधन द्वारा जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने की कवायद शुरू होने जा रही है, ये चुनाव एक सबक हैं, सभी राजनीतिक दलों के लिए कि एकता में ही बल है और फूट का नतीजा हमेशा हानि में ही निकलता है| उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में २०१४ में अंतिम बार विधानसभा चुनाव हुए थे जिनमें पीडीपी ने सर्वाधिक २८ सीटें जीती थीं तथा २५ सीटें जीतने वाली भाजपा से गठबंधन करके सरकार बनाई थी जो दोनों पार्टियों के बीच नीतिगत मतभेदों के कारण कायम न रह सकी| २०१८ में महबूबा के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र के बाद से ही जम्मू-कश्मीर का प्रशासन बिना चुनी हुई सरकार के उप-राज्यपाल द्वारा ही चलाया जा रहा था| अंत में एक बात और बता दें कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी के जलेबी पर बांटे ज्ञान ने भी हरियाणा में कांग्रेस की लुटिया डुबो दी लोगों को अहसास हो गया कि राहुल गांधी लोकजीवन से बहुत दूर है और उन्हें जमीनी चीजों की कोई जानकारी नहीं है| अब जबकि राज्य में नेकां और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने जा रही है, आशा करनी चाहिए कि दोनों पार्टियां मिलकर बेहतर ढंग से राज्य का प्रशासन चलाकर इसे खुशहाली ओर ले जाएंगी|