किस मोड़ पर 'आप'?

अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल को 'चेतावनी' दी थी

किस मोड़ पर 'आप'?

अगर केजरीवाल को लंबे अरसे तक राहत न मिली तो पार्टी के सामने नेतृत्व का संकट खड़ा हो सकता है

व्यवस्था परिवर्तन, भ्रष्टाचार से मुक्ति और पारदर्शी शासन का वादा कर दिल्ली की सत्ता में आई आम आदमी पार्टी (आप) कभी इस मोड़ पर पहुंच जाएगी, यह किसी ने सोचा नहीं होगा। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ईमानदारी के बड़े-बड़े दावे करने के बावजूद जिस तरह कानून के शिकंजे में आए हैं, उससे निश्चित रूप से कई लोगों की आशाएं धूमिल हुई हैं। इस पूरे प्रकरण से उनके 'गुरु' अन्ना हजारे को भी निराशा हुई है, जिन्होंने कभी केजरीवाल को मंच दिया था। बाद में उन्होंने उनसे ही रास्ते अलग करते हुए सियासी अखाड़े में छलांग लगा दी और अपने कई पूर्व सहयोगियों को भी किनारे कर दिया था। केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को सुशासन के सपने दिखाए थे। कांग्रेस के साथ कभी न जाने की कसमें खाई थीं। कभी मंच पर खड़े होकर कागज लहराते हुए नेताओं को कोसते थे। बाद में वे कांग्रेस के पाले में भी गए और उन नेताओं के साथ हंसते-मुस्कुराते हुए गठबंधन में सहयोगी भी बन गए! रहा सुशासन, तो उस पर कई सवाल खड़े किए जा सकते हैं। सुशासन की स्थापना के लिए होना तो यह चाहिए था कि शराब की बिक्री-खरीद पर पूर्णत: पाबंदी लगा देते। इससे उनके शब्दों का वजन बढ़ता। नशाखोरी रोकने के लिए कड़ा संदेश जाता। कई परिवारों का कल्याण होता, लेकिन शराब की बिक्री बदस्तूर जारी रही। बल्कि कोरोना काल में तो शराब की दुकानों के आगे लंबी-लंबी कतारें देखी गई थीं। शराब की बिक्री शुरू होते ही परिवारों में कलह-क्लेश की खबरें फिर से आनी शुरू हो गई थीं। यह भी एक कड़वी हकीकत है कि शराब ने कई गृहिणियों और बच्चों के जीवन से खुशियां छीन लीं। बेहतर होता कि केजरीवाल पहली बार मुख्यमंत्री बनते ही यह घोषणा करते कि 'हम राष्ट्रीय राजधानी में शराब की एक बूंद भी नहीं बिकने देंगे। इसके लिए जितनी बड़ी कुर्बानी देनी होगी, हम देंगे।'

Dakshin Bharat at Google News
अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल को 'चेतावनी' दी थी। इसके लिए उन्हें दो बार पत्र भी लिखा था। अपने 'गुरु' की इतनी बड़ी नसीहत की उन्होंने क्यों अनदेखी की? अगर केजरीवाल शराबबंदी की घोषणा करते तो इसे आम जनता का समर्थन मिलता। खासतौर से महिलाएं तो इस फैसले का बहुत स्वागत करतीं। लेकिन हुआ इसका उल्टा। उनके शासन में ऐसी आबकारी नीति आई, जिसमें 'ईमानदारी' के दावे डूबते प्रतीत हुए। उनके 'साथी' मनीष सिसोदिया को जेल जाना पड़ा। केजरीवाल को ईडी की ओर से बार-बार समन मिल रहे थे, लेकिन वे कोई-न-कोई 'कारण' बताकर पेश होने से बचते रहे। अगर समन में खामी थी, तो भी केजरीवाल को पेश होने से बचने के बजाय सवालों का सामना करना चाहिए था। जब वे ईमानदारी से काम कर रहे हैं और कहीं कोई घपला-घोटाला नहीं हुआ है तो ईडी के सामने पेश होने से परहेज क्यों किया? इसी से कई लोगों के मन में संदेह पैदा होने लगा था कि कहीं 'गड़बड़' जरूर है, चूंकि केजरीवाल के लिए तो अपनी सरकार की ईमानदारी पर मोहर लगवाने का यह सबसे सुनहरा मौका था! उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और अन्ना आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहे एन संतोष हेगड़े भी केजरीवाल से पूरी तरह निराश हैं। एक बड़े आंदोलन से निकले नाम, जिससे लोगों को बहुत आशाएं थीं, पर इतने गंभीर आरोप लगने से उनके पूर्व सहयोगियों व प्रशंसकों का निराशा महसूस करना स्वाभाविक है। 'आप' की ओर से केजरीवाल को न्यायालय से राहत दिलाने को लेकर कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन अभी तो इसके आसार नजर नहीं आ रहे। अगर उन्हें लंबे अरसे तक राहत न मिली तो पार्टी के सामने नेतृत्व का संकट खड़ा हो सकता है। लोकसभा चुनाव भी निकट हैं।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download

Latest News

आईटीआई लि. के पंजीकृत एवं निगमित कार्यालय को 'उत्‍कृष्‍ट राजभाषा कार्यान्‍वयन पुरस्‍कार' मिला आईटीआई लि. के पंजीकृत एवं निगमित कार्यालय को 'उत्‍कृष्‍ट राजभाषा कार्यान्‍वयन पुरस्‍कार' मिला
आईटीआई लि. के अध्‍यक्ष ने संस्‍थान के कार्मिकों को बधाई दी
सत्ता बंटवारे को लेकर शिवकुमार के साथ कोई समझौता नहीं हुआ था: सिद्दरामय्या
कौन है यह रूसी सुंदरी, जिसने जीता मिसेज प्लैनेट यूनिवर्स 2024 का खिताब?
'अभी भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है' - उच्च न्यायालय ने सिद्धू के दावे के खिलाफ याचिका खारिज की
महाराष्ट्र भाजपा विधायक दल के नेता चुने गए देवेंद्र फडणवीस
'घर जाने का समय': क्या विक्रांत मैसी ने 'पब्लिसिटी स्टंट' के लिए दांव चला?
बांग्लादेश: कैसे होगी शांति स्थापित?