काठ की हांडी

निस्संदेह हर धर्म, उसकी पवित्र किताबों और उसके प्रतीकों का सम्मान करना चाहिए

काठ की हांडी

'कश्मीर राग' अलापते-अलापते पाक का बंटाधार हो गया

पाकिस्तान ने भारत की जेल में बंद अलगाववादी यासीन मलिक की पत्नी मुशाल हुसैन मलिक को मुल्क के नवनियुक्त कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवारुल-हक काकड़ की विशेष सलाहकार नियुक्त कर यह साबित कर दिया कि उसने अतीत से कोई सबक नहीं लिया है। 'कश्मीर राग' अलापते-अलापते पाक का बंटाधार हो गया, लेकिन फिर भी वह किसी न किसी बहाने अलगाववाद को हवा देने में जुटा है। 

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मुशाल हुसैन को विशेष सलाहकार बनाकर पाक यह दिखाना चाहता है कि वह कश्मीरियों का बड़ा हिमायती है, लेकिन जिस पीओके पर उसने अवैध कब्जा कर रखा है, वहां हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। मुशाल हुसैन कहने को तो विशेष सलाहकार है, लेकिन सलाह के नाम पर उसके पास क्या है? यही कि आतंकवाद की आग कैसे भड़काई जाए? एक ओर तो पाक भारत को बातचीत की पेशकश करता है, दूसरी ओर अलगाववादियों को बड़े ओहदे देकर अपने दुष्ट इरादे भी जाहिर करता है। काठ की हांडी बहुत चढ़ चुकी, अब यह नहीं चढ़ेगी। 

अगर मुशाल हुसैन पाकिस्तान को सलाह देना ही चाहती है तो यह दे कि वह दहशतगर्दी के अड्डे बंद करे, जो खूंखार आतंकवादी पाल रखे हैं, उन्हें सख्त सजा दे, जो भारतीय कानून के मुजरिम हैं, उन्हें तुरंत सौंपे और शांति से रहना सीखे। इसके साथ ही यह सलाह भी दे कि हाल में जिन अल्पसंख्यक ईसाइयों पर हमले किए गए हैं, उनके आंसू पोंछे। मानवाधिकारों को लेकर भारत को उपदेश देने वाला पाकिस्तान यह क्यों नहीं देखता कि उसके यहां अल्पसंख्यकों को किस तरह बेरहमी से सताया जा रहा है? 

निस्संदेह हर धर्म, उसकी पवित्र किताबों और उसके प्रतीकों का सम्मान करना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति ग़लत मंशा से ऐसा कृत्य करता है, जिससे लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचे तो जायज तरीका यही है कि उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत जुटाए जाएं और उसे कानून के हवाले कर दिया जाए। फिर उसे जो भी सजा मिले, कानून से ही मिले। भीड़ द्वारा मारपीट, आगजनी, तोड़फोड़ की घटनाएं न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध हैं।

आश्चर्य की बात है कि पाकिस्तानी सरकार, फौज और आईएसआई को यह सब दिखाई नहीं देता। उन्हें इसकी कोई फिक्र नहीं है। अगर फिक्र है तो जम्मू-कश्मीर की! उस जम्मू-कश्मीर की, जहां भारतीय संविधान द्वारा सबको बराबर अधिकार मिल रहे हैं, जो आतंकवाद और अलगाववाद को पीछे छोड़कर अब शांति और प्रगति की दिशा में आगे बढ़ता जा रहा है। 

आज पाकिस्तान की स्थिति क्या है? आसान शब्दों में कहें तो बम धमाके, गोलीबारी, नफरत, तानाशाही, भयंकर महंगाई, बाहर से दिखावा, लेकिन अंदर घोर नैतिक पतन, हर कहीं दनदनाते आतंकवादियों के झुंड और आईएमएफ के सामने हाथ फैलाए प्रधानमंत्री ... इस पर भी यह ख़ुशफ़हमी कि हम दुनिया के बेहतरीन लोग हैं, लिहाजा सबको हमसे शिक्षा लेनी चाहिए। निस्संदेह पाकिस्तान से भी शिक्षा ली जा सकती है, लेकिन सिर्फ़ इस बात की कि अपना देश कैसे नहीं चलाना चाहिए! 

आज वहां हालात जिस दिशा में जा रहे हैं, उससे बहुत संभव है कि यह पड़ोसी देश कुछ वर्षों बाद खंडित हो जाए। यूं तो पाक में फौज और आईएसआई का कड़ा नियंत्रण है। सरकार नाम मात्र की है। असल शासक सेना प्रमुख है, जो किसी भी तरह से तमाम सूबों को जोड़कर रखता है, लेकिन किसी को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि सैनिकों और हथियारों के बूते देश को हमेशा संगठित रखा जा सकता है। 

सोवियत संघ इसका बेहतरीन उदाहरण है, जो ताकतवर फौज और हथियारों का निर्माता होने के बावजूद कई टुकड़ों में बंट गया। आज पाक के हालात कमोबेश वैसे ही हैं। सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी थी। उसकी मुद्रा का भारी अवमूल्यन हो गया था। पाक का खजाना भी खाली है और खुले बाजार में उसका रुपया डॉलर के मुकाबले 300 का आंकड़ा पार कर चुका है। लोगों का पाकिस्तानी रुपए से विश्वास खत्म हो रहा है। 

वहीं, फौजी खर्च बढ़ता जा रहा है। आतंकवाद बेकाबू हो गया है। अल्पसंख्यकों पर जुल्म की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। अगर ऐसे में अंदर से विद्रोह की आग धधक उठी तो उसे न जनरल आसिम मुनीर रोक पाएंगे, न अनवारुल-हक काकड़ और न ही कोई 'विशेष सलाहकार'!

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