संपादकीय: लापरवाही का संक्रमण

संपादकीय: लापरवाही का संक्रमण

संपादकीय: लापरवाही का संक्रमण

प्रतीकात्मक चित्र। स्रोत: PixaBay

दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। राहत की बात यह है कि भारत सहित कुछ देशों के वैज्ञानिकों ने इसकी वैक्सीन बना ली है। नियमानुसार वैक्सीन लगाई जा रही है। इस बीच कोरोना संक्रमण के मामलों में उछाल ने एक बार फिर चिंता की लकीरें गहरी कर दी हैं। पिछले साल इन्हीं दिनों देशभर में आशंका का माहौल ​था। कैसी बीमारी है, क्या होगा, कैसे बचाव करेंगे …?

अब सालभर में सबको मालूम हो गया है कि यह वायरस कैसे फैलता है और बचाव के उपाय क्या हैं। इसके बावजूद ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों के व्यवहार में पहले जैसी जागरूकता नहीं रही। सालभर पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ्यू और फिर लॉकडाउन की घोषणा की थी, तो लोगों में कोरोना महामारी से लड़ने, उसे परास्त करने की गंभीरता दिखाई देती थी। हर कोई मास्क पहने नजर आने लगा था, स्वच्छता और सोशल डिस्टेंसिंग हमारे जीवन का हिस्सा बन गए थे। अब ये बातें ओझल होती जा रही हैं।

लापरवाही का आलम यह है कि बहुत सारे लोग बाजारों में भी बिना मास्क घूमते हैं और घर आकर हाथ तक नहीं धोते। यह लापरवाही कोरोना संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी के रूप में दिखाई दे रही है। महामारी के कारण हम सबने लॉकडाउन का दौर देखा। अस्पतालों में बेड के लिए मारामारी, अपनों से बिछड़ना, स्वास्थ्य की गंभीर तकलीफों का सामना किया।

बहुत लोग कोरोना के कारण साल 2021 का सूर्योदय नहीं देख पाए। उद्योग-धंधे ठप पड़े, रोजगार जाता रहा, नौकरियां छिन गईं, किसी तरह जमा-पूंजी और उधारी से गुजारा किया। हम यह तो उम्मीद करते हैं कि वह समय कभी वापस नहीं आए, लेकिन वैसी गंभीरता अपनाने के लिए तैयार नहीं होते जो अब अनिवार्य रूप से होनी चाहिए।

युद्धनीति का एक नियम होता है कि जब शत्रु पर बढ़त मिल जाए तो हथियार एक ओर रखकर खुशी मनाने में व्यस्त नहीं होना चाहिए। यही वो समय होता है जब सैनिक से लेकर सेनापति तक सभी को और ज्यादा होशियारी से काम लेना चाहिए। इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं जब शुरुआती बढ़त मिलने और जीत सामने देखकर सैनिक खुशियां मनाने लगे; वे थोड़े-से लापरवाह हुए कि शत्रु ने दूसरा आक्रमण कर चौंका दिया। यह सरप्राइज अटैक होता है, जिसके बाद मजबूत से मजबूत सेना का संभल पाना बहुत मुश्किल होता है।

आज हमारे पास इस महामारी से लड़ने का एक साल का अनुभव है, वैक्सीन है, अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रही है और लाखों की तादाद में लोग कोरोना को परास्त कर स्वस्थ हो चुके हैं। इन सबके बीच कई लोगों को यह भी लगता है​ कि कोरोना तो पुराना हो गया, अब यह कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता! अथवा मुझे थोड़े ना कोरोना होगा, यह उन्हें होता है जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है! कोरोना कहीं नहीं गया है। यह पुराना होकर कमजोर नहीं हुआ है। यह उतना ही खतरनाक है जितना पहले था। इसलिए किसी भी ग़लतफ़हमी में पड़कर लापरवाही बरतने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

अर्थव्यवस्था बहुत मुश्किल से पटरी पर आ रही है। अभी तक पुराने घाटे की भरपाई नहीं हो सकी है। अगर लापरवाही जारी रही तो क्या हालात हो सकते हैं, इस पर सबको विचार करना चाहिए। सरकार अपने स्तर पर कोरोना महामारी से लड़ रही है। इसमें कई खामियां हो सकती हैं। कोई व्यवस्था सौ फीसद सुरक्षित नहीं होती। इसलिए यह सोचना कि महामारी से लड़ना सिर्फ सरकार का काम है; उचित नहीं है।

कोरोना से लड़ाई किसी व्यक्ति विशेष या सरकार की लड़ाई नहीं है। यह पूरी मानवता की लड़ाई है। अगर जनता सहयोग नहीं करेगी तो कोई सरकार इसे नहीं जीत सकेगी। इस मामले में एक व्यक्ति की लापरवाही पूरे समाज एवं देश पर भारी पड़ सकती है। इसलिए अगर हम महामारी पर विजय पाकर भविष्य में सामान्य जीवन जीना चाहते हैं, तो प्रत्येक को स्वच्छता, मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और जरूरी सावधानियों का पालन करना ही होगा।

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