संपादकीय: हिंदुओं का नरसंहार
संपादकीय: हिंदुओं का नरसंहार
पाकिस्तान में फिर अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाया गया। पांच लोगों की बेरहमी से हत्या हो गई, लेकिन हर कहीं सन्नाटा है, सिर्फ सन्नाटा। न पाकिस्तान में कोई आवाज उठी और न भारत में। भारत में तो खैर ऐसे विषय उठाने पर सांप्रदायिक घोषित होने का खतरा होता है। लिहाजा हमारे ‘बुद्धिजीवी’ वर्ग के लिए यह घटना किसी घटना की गिनती में नहीं आती। इससे उन्हें न तो कोई मेडल मिलता है, न अंतरराष्ट्रीय जगत से कोई पुरस्कार। फिर कौन जोखिम मोल ले?
रहीम यार खान की यह घटना एक बार फिर इस आरोप पर सच की मुहर लगाती है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का षड्यंत्रपूर्वक नरसंहार किया जा रहा है, जिनमें हिंदू सबसे ऊपर हैं। इस शांत, सहिष्णु समाज से किसी को क्या खतरा हो सकता है? ये वहां अपने नागरिक अधिकारों के लिए तो छोड़िए, मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाने से पहले भी सौ बार सोचते हैं। ऐसे में रामचंद्र और उनके परिवार की चाकू, कुल्हाड़ी से हमला कर निर्मम हत्या किया जाना अत्यंत निंदनीय है।जैसा कि हम पहले भी उल्लेख करते आए हैं, भारत में सीएए इसीलिए जरूरी है। अब हमें किसी प्रकार के तर्क देकर सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। पाकिस्तान स्वयं प्रतिदिन ऐसे प्रमाण दे रहा है, जिससे सिद्ध हो जाता है कि भारत में सीएए क्यों लाया गया और इसकी प्रासंगिकता कितनी महत्वपूर्ण है? यह पहली घटना नहीं है जब हिंदुओं पर ऐसा हमला हुआ है। सिंध में आए दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं।
जब पाकिस्तान सरकार, फौज, आतंकवादी मिलकर भी भारत के खिलाफ कुछ खास नहीं कर पाते तो उनका गुस्सा वहां रहने वाले हिंदुओं पर फूटता है और यह खूनी प्यास उनका खून पीकर भी नहीं बुझती। यह कोरा आरोप नहीं है। अगर पाकिस्तान के मीडिया में आए आंकड़ों की ही जांच कर लें तो यह संख्या हजारों पर जाती है। विचारणीय यह भी है ये आंकड़े तो वे हैं जो मीडिया में आ गए। निश्चित रूप से असल आंकड़ा इससे कई गुना ज्यादा और भयानक होगा।
जब भारत के विभिन्न शहरों में ये हिंदू शरणार्थी झोपड़ियों, तंबुओं में रहते हुए किसी तरह दिन काटते हैं तो उनके मन में उम्मीद जरूर होती है कि यह हिंदुस्तान हमारे पूर्वजों का देश है। आज नहीं तो कल, हमें अपना ही लिया जाएगा। पर देश ने उन लोगों का रवैया भी देखा जिन्होंने सीएए विरोध के नाम पर अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करने या मोदी के लिए घृणा फैलाने के लिए इसे ‘अच्छे अवसर’ के तौर पर लपकते हुए यह दुष्प्रचार किया कि इससे भारतीयों की नागरिकता चली जाएगी। धन्य है इनका विवेक!
पाक में हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक इसलिए उत्पीड़ित हैं क्योंकि पाकिस्तान को भारतविरोध के नाम पर एक शिकार चाहिए। उसकी प्रवृत्ति में सुधार आना संभव नहीं है। उसे तो कट्टरपंथी हांक रहे हैं। भारत आकर भी इनकी समस्याएं कम नहीं होतीं। चूंकि यहां परंपरागत राजनीति में ये किसी के वोटबैंक नहीं हैं। फिर ये जाएं तो कहां जाएं? सिंध में रहने वाले हिंदू किस तरह डर के साए में जीते हैं। जब किसी की बेटी अगवा कर ली जाती है तो पंचायत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक, कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। हर साल ऐसे एक हजार से ज्यादा मामले सामने आते हैं जब किसी अल्पसंख्यक बच्ची को जबरन इस्लाम कबूल करा दिया जाता है।
जो लोग अपनी जायदादें छोड़कर खाली हाथ भारत आए, वे बार-बार कह चुके हैं कि पाकिस्तान में हिंदू कितना भी धनवान, शिक्षित क्यों न हो, उसका कोई सम्मान नहीं है। उसके साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जाता। उसकी कोई सुरक्षा नहीं है। उसका कोई भविष्य नहीं है। आखिर भारत में विपक्षी दल इनकी पीड़ा क्यों नहीं समझते? यही वह समय है जब उन्हें खुलकर इन उत्पीड़ित लोगों के पक्ष में खड़ा होना चाहिए। यह एक रुका हुआ है फैसला है। ऐसा वादा जो स्वयं महात्मा गांधी ने किया था। क्या वे तभी मानेंगे जब पाकिस्तान 100 प्रतिशत अल्पसंख्यकों का खात्मा कर चुका होगा? इन उत्पीड़ित, शोषित लोगों की राह रोकने वालों को इतिहास माफ नहीं कर पाएगा।