पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने पिछले सप्ताह आदेश जारी कर गिलगित बाल्टिस्तान की स्थानीय परिषद के अधिकारों में कटौती कर दी। इस आदेश को लेकर स्थानीय लोगों में आक्रोश फैल गया है और जगह-जगह प्रदर्शन भी शुरू हो गए हैं। भारत सरकार ने भी इस फैसले पर अपना क़डा विरोध जताया है। विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान उप उच्चायुक्त सैयद हैदर शाह को तलब कर पाकिस्तान सरकार से कहा है कि गिलगित बाल्टिस्तान का इलाका जम्मू-कश्मीर का अभिन्न अंग है और उस इलाके की यथास्थिति में किसी प्रकार का बदलाव संभव नहीं है। इसके साथ ही भारत की ओर से पाकिस्तान से कहा गया है कि वह गिलगित-बाल्टिस्तान को तुरंत खाली कर दे। भारत के क़डे विरोध के चलते पाकिस्तान की स्थिति असहज हो गई है। गिलगित-बाल्टिस्तान की परिषद स्थानीय मामलों में फैसले लेती थी और यह शायद चीन को असहज लगता होगा, क्योंकि चीन और पाकिस्तान का ५० अरब डालर का आर्थिक गलियारा इसी इलाके से गुजरता है। चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत इस क्षेत्र की भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति को बदलने की फिराक में है। इस हिस्से पर पाकिस्तान ने वर्ष १९४७में आक्रमण कर कब्जा कर लिया था और यह भारत के हाथ से निकल गया था। यह मामला तब से संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में विवादित समझा जाता है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान को इस इलाके में नई स्थिति पैदा करने का कानूनी अधिकार नहीं है। पाकिस्तान सरकार के स्थिति बदलने के आदेश की मंशा यह रही होगी कि इसे पाकिस्तान का पांचवां प्रांत बना दिया जाए्। सालों तक पाकिस्तान की तरफ से ऐसा अवांछित कदम नहीं उठाया गया और अब उठाया गया है तो इसमें चीन का दबाव हो सकता है। दरअसल, गिलगित-बाल्टिस्तान का दर्जा स्पष्ट न होने को लेकर चीन की अपनी चिंताएं हैं। स्थानीय लोग चीन-पाक आर्थिक गलियारे का विरोध कर रहे हैं। चीन की अपनी चिंताएं हैं तो भारत की भी अपनी चिंताएं हैं। यह इलाका पाक अधिकृत कश्मीर से सटा है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान का खैबर पख्तूनखवा प्रांत, उत्तर में चीन और अफगानिस्तान और पूर्व में भारत है। इसकी भौगोलिक स्थिति की वजह से यह इलाका भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण और संवेदनशील है। भारत जम्मू-कश्मीर के किसी भी हिस्से को एक अलग पाकिस्तानी प्रांत बनाए जाने के खिलाफ है। अगर गिलगित बाल्टिस्तान पाक का पांचवां राज्य बन जाता है तो पाकिस्तान कानूनी तौर पर इस क्षेत्र पर अपना दावा पुख्ता कर सकता है और यहां चीनी सेना की मौजूदगी भी संभव हो सकती है। पाकिस्तान ने बलूचिस्तान की तरह ही इस क्षेत्र के संसाधनों का जमकर दोहन किया है और यहां मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन भी किया। अब नए सिरे से छि़डे आंदोलन से वहां के लोगों को उम्मीद है कि पाक के दमन के खिलाफ अन्तरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया जा सकेगा। भारत को सबसे पहले गिलगित के लोगों की उम्मीदों को समझना चाहिए और उनकी आवाज में आवाज मिलानी चाहिए। उनकी आवाज को वैश्विक स्तर पर उठाकर वहां पाकिस्तान के दमन को रोका जाना चाहिए। दुनिया को पता चलना चाहिए कि पाकिस्तान क्या-क्या कर रहा है।
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