पाक से दोबारा बातचीत क्यों ?

पाक से दोबारा बातचीत क्यों ?

इसे भारत सरकार के आशावाद की मिसाल ही कहा जाएगा कि उसने अनौपचारिक स्तर पर फिर पाकिस्तान से बातचीत शुरू की है। पिछले दिनों राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल की पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नसीर खान जांजुआ से दो बार फोन पर बातचीत हुई। सूचना यह सामने आई है कि डोवाल ने पठानकोट हमले के दोषियों के ठिकाने जांजुआ को बताए लेकिन जांजुआ ने उन सबूतों को मानने से इनकार कर दिया। साफ है, बात जहां की तहां है। जिन वजहों से भारत ने बातचीत तो़डी थी, वह बरकरार हैं। इस बीच पाकिस्तान में आतंकवादी हाफिज सईद को रिहा कर दिया गया है। सईद अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में शामिल है। अमेरिका ने सईद को दोबारा गिरफ्तार ना करने पर बुरे नतीजों की चेतावनी दी है लेकिन ऐसी धमकियों से पाकिस्तान पर कोई फर्क प़डता है, ऐसा नहीं लगता। बल्कि विश्लेषकों ने यहां तक कहा है कि हाफिज सईद की रिहाई पाकिस्तान पर अमेरिकी प्रभाव की सीमा को जाहिर करता है। संभवतः इसके कारण खुद अमेरिका की दोहरी नीतियों में है। अमेरिका ने लश्करए-तैयबा (जिसके बदले हुए रूप जमात-उद-दाव का हाफिज प्रमुख है) को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों की सूची में रखा हुआ है लेकिन पिछले दिनों अमेरिकी कांग्रेस ने एक बिल पास किया, जिसमें प्रावधान किया गया कि पाकिस्तान को हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ अमेरिकी बलों की कार्रवाई में सहयोग करना होगा। इसके पहले पाकिस्तान को ७० करो़ड डॉलर की सैन्य सहायता मिलेगी। बिल में हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तान की सराहना की गई है।सवाल है कि इस बिल में लश्कर का नाम क्यों नहीं जो़डा गया? क्या इससे यह संदेश नहीं जाता कि अमेरिका को सिर्फ उसी आतंकवाद की चिंता है, जिससे उसके हित प्रभावित होते हों? क्या यह अमेरिका के संदर्भ में भारतीय कूटनीति की सीमा को जाहिर करता है? ये तमाम ऐसे गंभीर प्रश्न हैं, जिन पर भारतीय विदेश मंत्रालय से स्पष्टीकरण की अपेक्षा है। मुद्दा है कि वर्तमान सरकार की पाकिस्तान नीति का उद्देश्य क्या है? क्या वह कोई ऐसा निर्णायक बदलाव लाने में सक्षम है, जिससे पाकिस्तान भारत केंद्रित आतंकवाद को पनाह देना छो़ड दे? ऐसी क्षमता का सार्वजनिक प्रदर्शन अगर भारत नहीं कर पाता है, तो फिर बातचीत से बात कहीं नहीं पहुंचेगी। यह सवाल बार-बार पूछा जाएगा कि जब गुपचुप बात करनी ही है तो आखिर वार्ता तो़डी ही क्यों गई थी? समस्या पाकिस्तान का भारत विरोधी नजरिया का भी है। दोबारा बातचीत शुरू होने को कुछ पाकिस्तानी अधिकारियों ने इस रूप में पेश करने की कोशिश की जैसे भारत झुक गया हो। भारत सरकार को ऐसी धारणाओं को अविलंब ध्वस्त कर देना चाहिए।

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