उप्र चुनाव: पहले चरण में भाजपा के सामने अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती
इन 58 सीटों पर पिछली बार समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को दो-दो सीट तथा राष्ट्रीय लोकदल को एक सीट पर जीत मिली थी
लखनऊ/भाषा। उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए हो रहे चुनावों में ‘एक बार फिर तीन सौ पार’ का नारा दे रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए चुनावों का पहला चरण काफी चुनौतीपूर्ण होने जा रहा है। दस फरवरी को पहले चरण के तहत 58 सीटों पर मतदान होना है और 2017 के चुनाव में भाजपा ने इनमें से 53 सीटों पर जीत हासिल की थी।
सात चरणों में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण में शामली, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, हापुड़, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, बुलंदशहर, मथुरा, आगरा और अलीगढ़ जिले की 58 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा। 14 जनवरी, शुक्रवार को पहले चरण की अधिसूचना जारी होगी जिसके बाद उम्मीदवारों का नामांकन शुरू हो जाएगा।सत्तारूढ़ पार्टी के सामने इस अंचल में अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने की बड़ी चुनौती है। इन 58 सीटों पर पिछली बार समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को दो-दो सीट तथा राष्ट्रीय लोकदल को एक सीट पर जीत मिली थी।
प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 403 सीटों में से सहयोगियों समेत 325 सीटों पर जीत मिली थी जबकि सपा को 47, बसपा को 19 और कांग्रेस को सात सीटें मिली थी। भाजपा की सहयोगी अपना दल (एस) को नौ और सुभासपा को चार सीटों पर जीत मिली थी।
पहले चरण का यह इलाका तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलित किसानों के प्रभाव वाला इलाका माना जाता है। यहां चुनाव में किसानों के अलावा कैराना से एक समुदाय का कथित पलायन, गन्ना और भगवान कृष्ण के मुद्दे पर जोर आजमाइश के आसार नजर आ रहे हैं।
सपा, कांग्रेस और बसपा समेत सभी विपक्षी दलों ने यहां किसानों के मुद्दों का प्राथमिकता दी है। सत्तारूढ़ भाजपा का दावा है कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की सरकार ने गन्ना बहुल इस इलाके के किसानों के बकाया भुगतान के साथ ही कैराना से पलायन समाप्त करने और नोएडा में प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा समेत क्षेत्र के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए हैं।
इलाके में हुए हाल के आंदोलनों पर नजर डालें तो मुजफ़फरनगर में पिछले वर्ष सितंबर के पहले हफ्ते में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की एक बड़ी महापंचायत हुई और इसमें भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने किसानों के उत्पीड़न के अलावा दंगा कराने का आरोप लगाया था।
गौरतलब है कि 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस गढ़ में सपा के लिए चुनौतियां खड़ी हो गई थीं और 2014 के लोकसभा चुनाव, 2017 के विधानसभा चुनाव तथा 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को इसका लाभ मिला। मुख्यमंत्री से लेकर भाजपा के शीर्ष नेता दावा करते हैं कि 2017 में भाजपा की सरकार बनने के बाद उत्तर प्रदेश में एक भी दंगा नहीं हुआ।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार राजीव रंजन सिंह ने बातचीत में कहा, ‘इस बार का चुनाव जुबानी जंग में बहुत रोचक होगा, क्योंकि कोविड महामारी की वजह से रैलियों, जनसभाओं की अनुमति नहीं मिलेगी तो सोशल मीडिया पर लोग इस तरह के नारों और बयान का उपयोग करेंगे जिससे हलचल पैदा हो।’
पहले चरण के चुनाव के लिए अधिसूचना जारी होने से पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार के श्रम एवं सेवायोजन मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा सरकार पर दलितों, पिछड़ों, युवाओं, किसानों, बेरोजगारों और वंचितों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। मौर्य के इस्तीफ़े के एक दिन बाद ही वन मंत्री दारा सिंह चौहान ने भी इस्तीफ़ा दे दिया। इससे उत्साहित सपा का दावा है कि पहले चरण में ही सपा की साइकिल सत्ता की मंजिल की ओर तेजी से बढ़ेगी।
सपा के मुख्य प्रवक्ता और पूर्व मंत्री राजेंद्र चौधरी ने आरोप लगाया, 'भाजपा सरकार ने किसानों की बात सुने बिना काले कृषि कानून थोप दिये और एक साल बाद उन्हें वापस लिया। लेकिन सात सौ से अधिक किसानों की जान चली गई। इसका हिसाब किसान भाजपा सरकार से लेंगे। इस बार सपा को ऐतिहासिक समर्थन और सीटें मिलेंगी।'
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विकास की उपलब्धियां गिनाने के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अक्सर अपनी सभाओं में यह भी दावा करते हैं कि उन्होंने कैराना को माफिया से मुक्त कराया और पलायन करने वाले परिवार वापस अपने घरों में लौटे हैं। मुख्यमंत्री गन्ना किसानों के भुगतान को भी सरकार की उपलब्धियों में गिनाते हैं। भाजपा ने सपा की सरकार में इसी अंचल के शामली जिले के कैराना से पलायन के मुद्दे को हवा दी थी और भाजपा के दिवंगत सांसद हुकुम सिंह ने इसे लोकसभा में भी उठाया था।
पश्चिम के इसी अंचल में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा है। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने पिछले वर्ष दिसंबर के शुरू में ट्वीट किया था 'अयोध्या काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है ---मथुरा की तैयारी है।' इसके बाद सपा समेत सभी राजनीतिक दलों ने हिंदुत्व के एजेंडे पर भाजपा पर ध्रुवीकरण का आरोप लगाया था।
बाद में अखिलेश यादव ने इसे एक नया मोड़ देने की कोशिश की और कहा कि भगवान श्रीकृष्ण हर रोज उनके सपने में आते हैं और कहते हैं कि 2022 में समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी। यादव के इस बयान के बाद भाजपा नेताओं ने उन पर जमकर पलटवार किया।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव ने बातचीत में कहा, 'पश्चिमी उत्तर प्रदेश गन्ना किसानों का बड़ा बेल्ट है जिनके लिए योगी सरकार ने एक लाख 55 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया है, वह ऐतिहासिक है। कभी कैराना में माफिया का राज था और वहां के लोग आतंक के साये में पलायन कर रहे थे। आज कैराना माफिया से मुक्त है, पलायन कर रहे लोग लौट आए हैं। ये कई बड़े कारण हैं जो भाजपा की बड़ी जीत की वजह बनेंगे।'
राज्य सरकार के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफा देने पर उन्होंने कहा कि कई बार जब किसी निहित स्वार्थ के चलते लोग फैसले लेते हैं तो प्राय: सतही और हल्के आरोप लगाते हैं और जनता इसको भली भांति समझती है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के साथ खुद को संबद्व करने वाली पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) का भी अच्छा प्रभाव है। रालोद का पिछली बार किसी से समझौता नहीं था। इस बार सपा ने रालोद के अलावा पश्चिमी उप्र में सक्रिय केशव देव मौर्य की अगुवाई वाले महान दल से गठबंधन किया है।
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