असंभव कुछ भी नहीं, इसे ध्येय मानलें : कृष्ण गोपाल तिवारी

असंभव कुछ भी नहीं, इसे ध्येय मानलें : कृष्ण गोपाल तिवारी

  • ब्लाइंड आईएएस को काम के प्रति सतर्क रहना और शाकाहारी व्यंजनों में समोसा है सबसे अधिक पसंद

कोई भी काम असंभव नहीं है। मेरी न तो आंखे थी और न ही मेरी आर्थिक स्थिति कुछ ठीक। यहीं नहीं कोई गाइड करने वाला भी नहीं, ना ही ठीक से कोचिंग मिली। फिर भी हमारे देश के नौजवानों-युवा पीढ़ी के नाम यही संदेश है कि अपने काम के प्रति सतर्क रह। दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है इसे ध्येय मानकर आगे बढें। यह कहना है मध्यप्रदेश कैडर के वर्ष 2008 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के युवा “ब्लाइंड’ अधिकारी कृष्ण गोपाल तिवारी का। बचपन में सरकारी स्कूल में पढ़े, बारहवीं तक उनकी आंखों की रोशनी सामान्य थी। मगर धीरे-धीरे रोशनी कम होती गई। कुल मिलाकर स्कूली अध्ययन के दौरान ही उनकी आंखों के आगे से शत-प्रतिशत अंधियारा छा गया था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और यूपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद पूरी दक्षता के साथ प्रशासनिक कामकाज निपटाते आ रहे है। वे बताते हैं कि यदि किसी कॉलेज में प्रोफेसर हो जाते तो आईएएस अधिकारी नहीं बन पाते।

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जोश, जज्बे और जुनून से अपनी जिंदगी की जंग जितने वाले तिवारी का 16 मई, 2008 को आईएएस में चयन हुआ और ठीक छह माह बाद ही 17 नवंबर को उन्हें नियुक्ति मिल गई। प्रातः छह बजे उठकर, दैनिक दिनचर्या के कार्यों से निवृत्त होकर 9 बजे तक अपने कार्यालय पहुंचने वाले आईएएस तिवारी भोपाल में गैस राहत के संचालक पद पर कार्यरत है। उन्होंने बताया कि वे अपने कार्यालय इसलिए जल्दी जाते हैं, ताकि वे अपने स्टाफ के लिए पहले से ही काम तैयार रख सकें। चूंकि दूसरों की तुलना में उन्हें अधिक मेहनत करनी होती है साथ ही सतर्क भी ज्यादा रहना पड़ता है।

खानपान में पूर्णतया शाकाहारी तिवारी को दाल-चावल, रोटी-सब्जी के अलावा समोसा सबसे अधिक अच्छा लगता है। स्वामी विवेकानंद की जीवनी को गहराई से अध्ययन करने वाले तिवारी को “द सीक्रेट’ पुस्तक अच्छी लगी। उन्हें फिल्म देखने का शौक तो नहीं लेकिन संदेशप्रद “थ्री इडियट’ को अपनी पसंदीदा फिल्म बताते हैं। कविताएं लिखने के शौकीन रहे तिवारी अब समय नहीं मिल पाने के कारण यह कार्य नहीं कर पातेे हैं। एक प्रश्न के उत्तर में कृष्णगोपाल तिवारी ने कहा कि काम की अधिकता की वजह से परिवार को भी सफर करना पड़ता है, लेकिन पारिवारिक सहयोग से ही आज वे विपरीत परिस्थितियों के बावजूद इस मुकाम तक पहुंचे हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि किसी ऐसे व्यक्ति का काम करने पर बेहद खुशी होती है जिसका काम नहीं हो रहा होता है। उस व्यक्ति की खुशी के अहसास से ही सर्वाधिक रिलेक्स होता हूं। एक अन्य सवाल के जवाब में इस होनहार ब्लाइंड युवा अधिकारी ने कहा कि उन्होंने आज तक कभी अपने आप को असहज महसूस ही होने नहीं दिया। क्योंकि बचपन में उन्हें अनेक बार अपमानित होना पड़ा था। वे मानते हैं कि यदि मैं बेरोजगार होता तो आज कितना अपमानित हो रहा होता। उन्होंने यह भी बताया कि मैंने आंखें नहीं होने के बावजूद चोर पकड़े और अवैध वाहनों की धरपकड़ की है।

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