भारत मित्रता निभाना जानता है तो आंख में आंख डालकर देखना और उचित जवाब देना भी जानता है: मोदी

भारत मित्रता निभाना जानता है तो आंख में आंख डालकर देखना और उचित जवाब देना भी जानता है: मोदी

भारत मित्रता निभाना जानता है तो आंख में आंख डालकर देखना और उचित जवाब देना भी जानता है: मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

‘मन की बात’ कार्यक्रम में चीन को प्रधानमंत्री की दो टूक, देशवासियों से मिलकर आगे बढ़ने का आह्वान

नई दिल्ली/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा कि भारत मित्रता निभाना जानता है तो आंख में आंख डालकर देखना और उचित जवाब देना भी जानता है। उन्होंने गलवान घाटी के वीरों को नमन करते हुए देशवासियों से आह्वान किया कि वे कोरोना महामारी में सावधानी बरतें। उन्होंने महामारी से उपजी निराशा के बीच हौसला बढ़ाते हुए कहा कि हम सब मिलकर आगे बढ़ेंगे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘मन की बात’ कार्यक्रम ने 2020 में अपना आधा सफ़र अब पूरा कर लिया है .. इन दिनों मैं देख रहा हूं, लगातार लोगों में एक विषय पर चर्चा हो रही है कि आखिर यह साल कब बीतेगा। कोई किसी को फोन भी कर रहा है, तो बातचीत इसी विषय से शुरू हो रही है कि यह साल जल्दी क्यों नहीं बीत रहा है। कोई लिख रहा है, दोस्तों से बात कर रहा है कि यह साल अच्छा नहीं है, 2020 शुभ नहीं है। बस, लोग यही चाहते हैं कि किसी भी तरह से यह साल जल्द-से-जल्द बीत जाए।

प्रधानमंत्री ने कहा, कभी-कभी मैं सोचता हूं कि ऐसा क्यों हो रहा है? हो सकता है ऐसी बातचीत के कुछ कारण भी हों। छह-सात महीना पहले ये हम कहां जानते थे कि कोरोना जैसा संकट आएगा और इसके खिलाफ़ ये लड़ाई इतनी लंबी चलेगी। ये संकट तो बना ही हुआ है, ऊपर से, देश में नित नई चुनौतियां सामने आती जा रही हैं। अभी कुछ दिन पहले, देश के पूर्वी छोर पर साइक्लोन अम्फान आया तो पश्चिमी छोर पर निसर्ग आया। कितने ही राज्यों में हमारे किसान भाई–बहन टिड्डी दल के हमले से परेशान हैं, और कुछ नहीं तो देश के कई हिस्सों में छोटे-छोटे भूकंप रुकने का ही नाम नहीं ले रहे, और इन सबके बीच हमारे कुछ पड़ोसियों द्वारा जो हो रहा है, देश उन चुनौतियों से भी निपट रहा है। वाकई, एक-साथ इतनी आपदाएं, इस स्तर की आपदाएं, बहुत कम ही देखने-सुनने को मिलती हैं। हालत तो यह हो गई है कि कोई छोटी-छोटी घटना भी हो रही है, तो लोग उन्हें भी इन चुनौतियों के साथ जोड़कर देख रहे हैं।

संकटों से और भी भव्य होकर सामने आया भारत
प्रधानमंत्री ने कहा कि मुश्किलें आती हैं, संकट आते हैं, लेकिन सवाल यही है कि क्या इन आपदाओं की वजह से हमें साल 2020 को ख़राब मान लेना चाहिए? क्या पहले के छह महीने जैसे बीते, उसकी वजह से ये मान लेना कि पूरा साल ही ऐसा है, क्या ये सोचना सही है? जी नहीं, बिल्कुल नहीं। एक साल में एक चुनौती आए या पचास चुनौतियां आएं, नंबर कम-ज्यादा होने से वो साल ख़राब नहीं हो जाता। भारत का इतिहास ही आपदाओं और चुनौतियों पर जीत हासिल कर और ज्यादा निखरकर निकलने का रहा है। सैकड़ों वर्षों तक अलग-अलग आक्रांताओं ने भारत पर हमला किया, उसे संकटों में डाला, लोगों को लगता था कि भारत की संरचना ही नष्ट हो जाएगी, भारत की संस्कृति ही समाप्त हो जाएगी, लेकिन इन संकटों से भारत और भी भव्य होकर सामने आया।

देशवासियों की शक्ति पर पूरा ​भरोसा
प्रधानमंत्री ने कहा, हमारे यहां कहा जाता है – सृजन शास्वत है, सृजन निरंतर है। मुझे एक गीत की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं:

यह कल-कल छल-छल बहती, क्या कहती गंगा धारा?
युग-युग से बहता आता, यह पुण्य प्रवाह हमारा।

उसी गीत में, आगे आता है –

क्या उसको रोक सकेंगे, मिटनेवाले मिट जाएं,
कंकड़-पत्थर की हस्ती, क्या बाधा बनकर आए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में भी जहां एक तरफ़ बड़े-बड़े संकट आते गए, वहीं सभी बाधाओं को दूर करते हुए अनेक सृजन भी हुए। नए साहित्य रचे गए, नए अनुसंधान हुए, नए सिद्धांत गढ़े गए यानी संकट के दौरान भी, हर क्षेत्र में सृजन की प्रक्रिया जारी रही और हमारी संस्कृति पुष्पित-पल्लवित होती रही, देश आगे बढ़ता ही रहा। भारत ने हमेशा संकटों को सफलता की सीढ़ियों में परिवर्तित किया है। इसी भावना के साथ हमें आज भी इन सारे संकटों के बीच आगे बढ़ते ही रहना है। आप भी इसी विचार से आगे बढ़ेंगे, 130 करोड़ देशवासी आगे बढ़ेंगे, तो यही साल देश के लिए नए कीर्तिमान बनाने वाला साल साबित होगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी साल में देश नए लक्ष्य प्राप्त करेगा, नई उड़ान भरेगा, नई ऊंचाइयों को छुएगा। मुझे पूरा विश्वास, 130 करोड़ देशवासियों की शक्ति पर है, आप सब पर है, इस देश की महान परंपरा पर है।

मां भारती के गौरव पर आंच नहीं आने देंगे
प्रधानमंत्री ने कहा कि संकट चाहे जितना भी बड़ा हो, भारत के संस्कार, निस्वार्थ भाव से सेवा की प्रेरणा देते हैं। भारत ने जिस तरह मुश्किल समय में दुनिया की मदद की, उसने आज शांति और विकास में भारत की भूमिका को और मज़बूत किया है। दुनिया ने इस दौरान भारत की विश्व बंधुत्व की भावना को भी महसूस किया है, और इसके साथ ही दुनिया ने अपनी संप्रभुता और सीमाओं की रक्षा करने के लिए भारत की ताकत और भारत के कमिटमेंट को भी देखा है। लद्दाख में भारत की भूमि पर आंख उठाकर देखने वालों को करारा जवाब मिला है। भारत मित्रता निभाना जानता है, तो आंख-में-आंख डालकर देखना और उचित जवाब देना भी जानता है। हमारे वीर सैनिकों ने दिखा दिया है कि वे कभी भी मां भारती के गौरव पर आंच नहीं आने देंगे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि लद्दाख में हमारे जो वीर जवान शहीद हुए हैं, उनके शौर्य को पूरा देश नमन कर रहा है, श्रद्धांजलि दे रहा है। पूरा देश उनका कृतज्ञ है, उनके सामने नत-मस्तक है। इन साथियों के परिवारों की तरह ही, हर भारतीय इन्हें खोने का दर्द भी अनुभव कर रहा है। अपने वीर-सपूतों के बलिदान पर उनके परिजनों में गर्व की जो भावना है, देश के लिए जो ज़ज्बा है – यही तो देश की ताकत है। आपने देखा होगा, जिनके बेटे शहीद हुए, वो माता-पिता अपने दूसरे बेटों को भी, घर के दूसरे बच्चों को भी, सेना में भेजने की बात कर रहे हैं।

कानों में गूंज रहे शहीद के पिता के शब्द
प्रधानमंत्री ने कहा, बिहार के रहने वाले शहीद कुंदन कुमार के पिताजी के शब्द तो कानों में गूंज रहे हैं। वे कह रहे थे, अपने पोतों को भी देश की रक्षा के लिए सेना में भेजूंगा। यही हौसला हर शहीद के परिवार का है। वास्तव में इन परिजनों का त्याग पूजनीय है। भारत माता की रक्षा के जिस संकल्प से हमारे जवानों ने बलिदान दिया है, उसी संकल्प को हमें भी जीवन का ध्येय बनाना है, हर देशवासी को बनाना है। हमारा हर प्रयास इसी दिशा में होना चाहिए, जिससे सीमाओं की रक्षा के लिए देश की ताकत बढ़े, देश और अधिक सक्षम बने, देश आत्मनिर्भर बने – यही हमारे शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी।

लोकल के लिए वोकल
प्रधानमंत्री ने कहा, मुझे असम से रजनीजी ने लिखा है, उन्होंने पूर्वी लद्दाख में जो कुछ हुआ, वो देखने के बाद एक प्रण लिया है कि वे लोकल उत्पाद ही खरीदेंगे। इतना ही नहीं, लोकल के लिए वोकल भी होंगी। ऐसे संदेश मुझे देश के हर कोने से आ रहे हैं। बहुत से लोग मुझे पत्र लिखकर बता रहे हैं कि वो इस ओर बढ़ चले हैं। इसी तरह, तमिलनाडु के मदुरै से मोहन रामामूर्तिजी ने लिखा है कि वे भारत को डिफेंस के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनते हुए देखना चाहते हैं।

डिफेंस सेक्टर में आगे बढ़ने के प्रयास
प्रधानमंत्री ने कहा, आज़ादी से पहले हमारा देश डिफेंस सेक्टर में दुनिया के कई देशों से आगे था। हमारे यहां अनेक ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियां होती थीं। उस समय कई देश, जो हमसे बहुत पीछे थे, वो आज हमसे आगे हैं। आज़ादी के बाद डिफेंस सेक्टर में हमें जो प्रयास करने चाहिए थे, हमें अपने पुराने अनुभवों का जो लाभ उठाना चाहिए था, हम उसका लाभ नहीं उठा पाए। लेकिन, आज डिफेंस सेक्टर, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत आगे बढ़ने का निरंतर प्रयास कर रहा है, भारत आत्मनिर्भरता की तरफ कदम बढ़ा रहा है।

हर जगह देशसेवा का बहुत स्कोप
प्रधानमंत्री ने कहा कि कोई भी मिशन जन-भागीदारी के बिना पूरा नहीं हो सकता, सफल नहीं हो सकता, इसीलिए आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक नागरिक के तौर पर हम सबका संकल्प, समर्पण और सहयोग बहुत जरूरी है, अनिवार्य है। आप लोकल खरीदेंगे, लोकल के लिए वोकल होंगे, तो समझिए आप देश को मजबूत करने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। यह भी एक तरह से देश की सेवा ही है। आप किसी भी प्रोफेशन में हों, हर जगह देशसेवा का बहुत स्कोप होता ही है। देश की आवश्यकता को समझते हुए, जो भी कार्य करते हैं, वो देश की सेवा ही होती है। आपकी यही सेवा देश को कहीं-न-कहीं मजबूत भी करती है, और हमें यह भी याद रखना है- हमारा देश जितना मजबूत होगा, दुनिया में शांति की संभावनाएं भी उतनी ही मजबूत होंगी। हमारे यहां कहा जाता है –

इशारों में चीन पर निशाना
विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्ति: परेषां परिपीडनाय।
खलस्य साधो: विपरीतम् एतत्, ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।।

अर्थात्, अगर स्वभाव से दुष्ट है, तो विद्या का प्रयोग व्यक्ति विवाद में, धन का प्रयोग घमंड में, और ताकत का प्रयोग दूसरों को तकलीफ देने में करता है। लेकिन, सज्जन की विद्या, ज्ञान के लिए, धन मदद के लिए और ताकत, रक्षा करने के लिए इस्तेमाल होती है। भारत ने अपनी ताकत हमेशा इसी भावना के साथ इस्तेमाल की है। भारत का संकल्प है- भारत के स्वाभिमान और संप्रभुता की रक्षा। भारत का लक्ष्य है– आत्मनिर्भर भारत। भारत की परंपरा है– भरोसा, मित्रता। भारत का भाव है– बंधुता, हम इन्हीं आदर्शों के साथ आगे बढ़ते रहेंगे।

लॉकडाउन से भी ज्यादा सतर्कता अनलॉक में बरतें
प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना के संकट काल में देश लॉकडाउन से बाहर निकल आया है। अब हम अनलॉक के दौर में हैं। अनलॉक के इस समय में दो बातों पर बहुत फोकस करना है – कोरोना को हराना और अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना, उसे ताकत देना। साथियो, लॉकडाउन से ज्यादा सतर्कता हमें अनलॉक के दौरान बरतनी है। आपकी सतर्कता ही आपको कोरोना से बचाएगी। इस बात को हमेशा याद रखिए कि अगर आप मास्क नहीं पहनते हैं, दो गज की दूरी का पालन नहीं करते हैं, या फिर दूसरी जरूरी सावधानियां नहीं बरतते हैं, तो आप अपने साथ-साथ दूसरों को भी जोखिम में डाल रहे हैं। खासतौर पर, घर के बच्चों और बुजुर्गों को, इसीलिए, सभी देशवासियों से मेरा निवेदन है और यह निवेदन मैं बार-बार करता हूं और मेरा निवेदन है कि आप लापरवाही मत बरतिए, अपना भी ख्याल रखिए, और दूसरों का भी।

‘लॉकडाउन’ में जकड़े सेक्टर को आजादी
प्रधानमंत्री ने कहा, अनलॉक के दौर में बहुत सी ऐसी चीजें भी अनलॉक हो रही हैं, जिनमें भारत दशकों से बंधा हुआ था। वर्षों से हमारा माइनिंग सेक्टर लॉकडाउन में था। वाणिज्यिक नीलामी को मंजूरी देने के एक निर्णय ने स्थिति को पूरी तरह से बदल दिया है। कुछ ही दिन पहले स्पेस सेक्टर में ऐतिहासिक सुधार किए गए। उन सुधारों के जरिए वर्षों से लॉकडाउन में जकड़े इस सेक्टर को आजादी मिली। इससे आत्मनिर्भर भारत के अभियान को न केवल गति मिलेगी, बल्कि देश टेक्नोलॉजी में भी उन्नत बनेगा। अपने कृषि क्षेत्र को देखें, तो इस सेक्टर में भी बहुत सारी चीजें दशकों से लॉकडाउन में फंसी थीं। इस सेक्टर को भी अब अनलॉक कर दिया गया है। इससे जहां एक तरफ किसानों को अपनी फसल कहीं पर भी, किसी को भी, बेचने की आजादी मिली है, वहीं दूसरी तरफ, उन्हें अधिक ऋण मिलना भी सुनिश्चित हुआ है। ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जहां हमारा देश इन सब संकटों के बीच, ऐतिहासिक निर्णय लेकर विकास के नए रास्ते खोल रहा है।

ग्रामीणों के जज्बे और सूझबूझ की तारीफ
प्रधानमंत्री ने कहा, हर महीने हम ऐसी ख़बरें पढ़ते और देखते हैं, जो हमें भावुक कर देती हैं। यह हमें इस बात का स्मरण कराती हैं कि कैसे हर भारतीय एक-दूसरे की मदद के लिए तत्पर है, वह जो कुछ भी कर सकता है, उसे करने में जुटा है।

अरुणाचल प्रदेश की एक ऐसी ही प्रेरक कहानी मुझे मीडिया में पढ़ने को मिली। यहां सियांग जिले के मिरेम गांव ने वो अनोखा कार्य कर दिखाया, जो समूचे भारत के लिए एक मिसाल बन गया है। इस गांव के कई लोग बाहर रहकर नौकरी करते हैं। गांव वालों ने देखा कि कोरोना महामारी के समय ये सभी अपने गांव की ओर लौट रहे हैं। ऐसे में गांव वालों ने पहले से ही गांव के बाहर क्वारंटीन का इंतजाम करने का फैसला किया। उन्होंने आपस में मिलकर, गांव से कुछ ही दूरी पर 14 अस्थायी झोपड़ियां बना दीं और यह तय किया कि जब गांव वाले लौटकर आएंगे तो उन्हें इन्हीं झोपड़ियों में कुछ दिन क्वारंटीन में रखा जाएगा। उन झोपड़ियों में शौचालय, बिजली-पानी समेत दैनिक जरूरत की हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराई गई। जाहिर है, मिरेम गांव के लोगों के इस सामूहिक प्रयास और जागरूकता ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया।

प्रधानमंत्री ने कहा, साथियो, हमारे यहां कहा जाता है –

स्वभावं न जहाति एव, साधु: आपद्रतोपी सन।
कर्पूर: पावक स्पृष्ट: सौरभं लभतेतराम।।

अर्थात्, जैसे कपूर आग में तपने पर भी अपनी सुगंध नहीं छोड़ता, वैसे ही अच्छे लोग आपदा में भी अपने गुण, अपना स्वभाव नहीं छोड़ते। आज, हमारे देश की जो श्रमशक्ति है, जो श्रमिक साथी हैं, वे भी इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। आप देखिए, इन दिनों हमारे प्रवासी श्रमिकों की ऐसी कितनी ही कहानियां आ रही हैं जो पूरे देश को प्रेरणा दे रही हैं। यूपी के बाराबंकी में गांव लौटकर आए मजदूरों ने कल्याणी नदी का प्राकृतिक स्वरूप लौटाने के लिए काम शुरू कर दिया। नदी का उद्धार होता देख, आस-पास के किसान, आस-पास के लोग भी उत्साहित हैं। गांव में आने के बाद क्वारंटीन सेंटर में रहते हुए, आइसोलेशन सेंटर में रहते हुए हमारे श्रमिक साथियों ने जिस तरह अपने कौशल का इस्तेमाल करते हुए अपने आस-पास की स्थितियों को बदला है, वो अद्भुत है। लेकिन साथियो, ऐसे कितने ही किस्से-कहानियां देश के लाखों गांव के हैं, जो हम तक नहीं पहुंच पाए हैं।

जैसा हमारे देश का स्वाभाव है, मुझे विश्वास है कि आपके गांव में भी, आपके आस-पास भी, ऐसी अनेक घटनाएं हुईं होंगी। अगर, आपके ध्यान में ऐसी बात आई है, तो आप ऐसी प्रेरक घटना को मुझे जरूर लिखिए। संकट के इस समय में ये सकारात्मक घटनाएं, ये कहानियां औरों को भी प्रेरणा देंगी।

इम्युनिटी बढ़ाने वाली चीजों का संबंध भारत से
प्रधानमंत्री ने कहा, कोरोना वायरस ने निश्चित रूप से हमारे जीवन जीने के तरीकों में बदलाव ला दिया है। मैं लंदन से प्रकाशित फाइनेंशियल टाइम्स में एक बहुत ही दिलचस्प लेख पढ़ रहा था। इसमें लिखा था कि कोरोना काल के दौरान अदरक, हल्दी समेत दूसरे मसालों की मांग, एशिया के आलावा, अमेरिका तक में भी बढ़ गई है। पूरी दुनिया का ध्यान इस समय अपनी इम्युनिटी बढ़ाने पर है, और इम्युनिटी बढ़ाने वाली इन चीजों का संबंध हमारे देश से है। हमें इनकी खासियत विश्व के लोगों को ऐसी सहज और सरल भाषा में बतानी चाहिए, जिससे वे आसानी से समझ सकें और हम एक ज्यादा स्वस्थ ग्रह बनाने में अपना योगदान दे सकें।

प्रधानमंत्री ने कहा, कोरोना जैसा संकट नहीं आया होता तो शायद जीवन क्या है, जीवन क्यों है, जीवन कैसा है, हमें शायद यह याद ही नहीं आता। कई लोग इसी वजह से मानसिक तनावों में जीते रहे हैं। तो दूसरी ओर, लोगों ने मुझे ये भी शेयर किया है कि कैसे लॉकडाउन के दौरान खुशियों के छोटे-छोटे पहलू भी- उन्होंने जीवन में री-डिस्कवर किए हैं। कई लोगों ने मुझे पारम्परिक इन-डोर गेम्स खेलने और पूरे परिवार के साथ उसका आनंद लेने के अनुभव भेजे हैं।

पारंपरिक खेलों की समृद्ध विरासत
प्रधानमंत्री ने कहा, हमारे देश में पारंपरिक खेलों की बहुत समृद्ध विरासत रही है। जैसे, आपने एक खेल का नाम सुना होगा– पचीसी। यह खेल तमिलनाडु में ‘पल्लान्गुली’, कर्नाटक में ‘अलि गुलि मणे’ और आंध्र प्रदेश में ‘वामन गुंटलू’ के नाम से खेला जाता है। यह एक प्रकार का स्ट्रैटजी गेम है, जिसमें एक बोर्ड का उपयोग किया जाता है। इसमें कई खांचे होते हैं, जिनमें मौजूद गोली या बीज को खिलाड़ियों को पकड़ना होता है। कहा जाता है कि यह गेम दक्षिण भारत से दक्षिण-पूर्व एशिया और फिर दुनिया में फैला है।

प्रधानमंत्री ने कहा, आज हर बच्चा सांप-सीढ़ी के खेल के बारे में जानता है। लेकिन, क्या आपको पता है कि यह भी एक भारतीय पारंपरिक खेल का ही रूप है, जिसे मोक्ष पाटम या परमपदम कहा जाता है। हमारे यहां का एक और पारम्परिक गेम रहा है– गुट्टा। बड़े भी गुट्टे खेलते हैं और बच्चे भी – बस, एक ही साइज के पांच छोटे पत्थर उठाए और आप गुट्टे खेलने के लिए तैयार। एक पत्थर हवा में उछालिए और जब तक वो पत्थर हवा में हो, आपको जमीन में रखे बाकी पत्थर उठाने होते हैं। आमतौर पर हमारे यहां इनडोर खेलों में कोई बड़े साधनों की जरूरत नहीं होती है। कोई एक चॉक या पत्थर ले आता है, उससे जमीन पर ही कुछ लकीरें खींच देता और फिर खेल शुरू हो जाता है। जिन खेलों में डाइस की जरूरत पड़ती है, कौड़ियों से या इमली के बीज से भी काम चल जाता है।

प्रधानमंत्री ने कहा, मुझे मालूम है, आज जब मैं ये बात कर रहा हूं तो कितने ही लोग अपने बचपन में लौट गए होंगे, कितनों को ही अपने बचपन के दिन याद आ गए होंगे। मैं यही कहूंगा कि उन दिनों को आप भूले क्यों हैं? उन खेलों को आप भूले क्यों हैं? मेरा, घर के नाना-नानी, दादा-दादी, घर के बुजुर्गों से आग्रह है कि नयी पीढ़ी में ये खेल आप अगर ट्रांसफर नहीं करेंगे तो कौन करेगा! जब ऑनलाइन पढ़ाई की बात आ रही है, तो बैलेंस बनाने के लिए, ऑनलाइन खेल से मुक्ति पाने के लिए भी हमें ऐसा करना ही होगा। हमारी युवा पीढ़ी के लिए भी हमारे स्टार्टअप्स के लिए भी, यहां एक नया अवसर है, और मजबूत अवसर है। हम भारत के पारंपरिक इनडोर गेम्स को नए और आकर्षक रूप में प्रस्तुत करें। उनसे जुड़ी चीजों को जुटाने वाले, सप्लाई करने वाले स्टार्टअप्स बहुत पॉपुलर हो जाएंगे और हमें ये भी याद रखना है, हमारे भारतीय खेल भी तो लोकल हैं, और हम लोकल के लिए वोकल होने का प्रण पहले ही ले चुके हैं।

बच्चे करें बुजुर्गों के इंटरव्यू!
मेरे बाल-सखा मित्रों, हर घर के बच्चों से, मेरे नन्हे साथियों से भी, आज मैं एक विशेष आग्रह करता हूं। बच्चो, आप मेरा आग्रह मानेंगे न? देखिए, मेरा आग्रह है कि मैं जो कहता हूं, आप जरूर करिए, एक काम करिए – जब थोड़ा समय मिले तो माता-पिता से पूछकर मोबाइल उठाइए और अपने दादा-दादी, नाना-नानी या घर में जो भी बुजुर्ग हैं, उनका इंटरव्यू रिकॉर्ड कीजिए। जैसे आपने टीवी पर देखा होगा ना, कैसे पत्रकार इंटरव्यू करते हैं, बस वैसा ही इंटरव्यू आप कीजिए, और आप उनसे सवाल क्या करेंगे? मैं आपको सुझाव देता हूं। आप, उनसे जरूर पूछिए कि बचपन में उनका रहन-सहन कैसा था, वो कौनसे खेल खेलते थे, कभी नाटक देखने जाते थे, सिनेमा देखने जाते थे, कभी छुट्टियों में मामा के घर जाते थे, कभी खेत-खलिहान में जाते थे, त्यौहार कैसे मानते थे, बहुत-सी बातें आप उनको पूछ सकते हैं, उनको भी 40-50 साल, 60 साल पुरानी अपनी जिंदगी में जाना, बहुत आनंद देगा और आपके लिए 40-50 साल पहले का हिंदुस्तान कैसा था, आप जहां रहते हैं, वो इलाका कैसा था, वहां परिसर कैसा था, लोगों के तौर-तरीके क्या थे – सब चीजें बहुत आसानी से सीखने को मिलेंगी, जानने को मिलेंगी। आपको बहुत मजा आएगा और परिवार के लिए एक बहुत ही अमूल्य ख़जाना, एक अच्छा वीडियो एल्बम भी बन जाएगा।

प्रधानमंत्री ने कहा, यह सत्य है- आत्मकथा या जीवनी इतिहास की सच्चाई के निकट जाने के लिए बहुत ही उपयोगी माध्यम होती हैं। आप भी, अपने बड़े-बुजुर्गों से बातें करेंगे तो उनके समय की बातों को, उनके बचपन, उनके युवाकाल की बातों को और आसानी से समझ पाएंगे। ये बेहतरीन मौका है कि बुजुर्ग भी अपने बचपन के बारे में, उस दौर के बारे में, अपने घर के बच्चों को बताएं।

धरती मां का साथ दें
प्रधानमंत्री ने कहा, देश के एक बड़े हिस्से में अब मानसून पहुंच चुका है। इस बार बारिश को लेकर मौसम विज्ञानी भी बहुत उत्साहित हैं, बहुत उम्मीद जता रहे हैं। बारिश अच्छी होगी तो हमारे किसानों की फसलें अच्छी होंगी, वातावरण भी हरा-भरा होगा। बारिश के मौसम में प्रकृति भी जैसे खुद को रिजूवनेट कर लेती है। मानव प्राकृतिक संसाधनों का जितना दोहन करता है, प्रकृति एक तरह से बारिश के समय उनकी भरपाई करती है, रीफिलिंग करती है। लेकिन, यह रीफिलिंग तभी हो सकती है जब हम भी इसमें अपनी धरती मां का साथ दें, अपना दायित्व निभाएं। हमारे द्वारा किया गया थोड़ा सा प्रयास प्रकृति को, पर्यावरण को बहुत मदद करता है। हमारे कई देशवासी तो इसमें बहुत बड़ा काम कर रहे हैं।

कर्नाटक के किसान की सराहना
प्रधानमंत्री ने कहा, कर्नाटक के मंडावली में एक 80-85 साल के बुजुर्ग हैं कामेगौड़ा। वे एक साधारण किसान हैं, लेकिन उनका व्यक्तित्व बहुत असाधारण है। उन्होंने एक ऐसा काम किया है कि कोई भी आश्चर्य में पड़ जाएगा। 80-85 साल के कामेगौड़ाजी अपने जानवरों को चराते हैं, लेकिन साथ-साथ उन्होंने अपने क्षेत्र में नए तालाब बनाने का भी बीड़ा उठाया हुआ है। वे अपने इलाके में पानी की समस्या को दूर करना चाहते हैं, इसलिए जल-संरक्षण के काम में, छोटे-छोटे तालाब बनाने के काम में जुटे हैं। आप हैरान होंगे कि कामेगौड़ाजी अब तक 16 तालाब खोद चुके हैं। हो सकता है कि ये जो तालाब उन्होंने बनाए, वो बहुत बड़े-बड़े न हों, लेकिन उनका ये प्रयास बहुत बड़ा है। आज पूरे इलाके को इन तालाबों से एक नया जीवन मिला है।

वडोदरा की प्रेरक मुहिम
प्रधानमंत्री ने कहा, गुजरात के वडोदरा का भी एक उदाहरण बहुत प्रेरक है। यहां जिला प्रशासन और स्थानीय लोगों ने मिलकर एक दिलचस्प मुहिम चलाई। इस मुहिम की वजह से आज वडोदरा में एक हजार स्कूलों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग होने लगी है। एक अनुमान है कि इस वजह से हर साल औसतन करीब 10 करोड़ लीटर पानी बेकार बह जाने से बचाया जा रहा है।

गणेश चतुर्थी के लिए आह्वान
प्रधानमंत्री ने कहा, इस बरसात में प्रकृति की रक्षा के लिए, पर्यावरण की रक्षा के लिए, हमें भी कुछ इसी तरह सोचने की, कुछ करने की पहल करनी चाहिए। जैसे कई स्थानों पर गणेश चतुर्थी को लेकर तैयारियां शुरू होने जा रही होंगी। क्या इस बार हम प्रयास कर सकते हैं कि इको-फ्रेंडली गणेशजी की प्रतिमाएं बनाएंगे और उन्हीं का पूजन करेंगे? क्या हम ऐसी प्रतिमाओं के पूजन से बच सकते हैं, जो नदी-तालाबों में विसर्जित किए जाने के बाद जल के लिए, जल में रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए संकट बन जाती हैं? मुझे विश्वास है आप ऐसा जरूर करेंगे और इन सब बातों के बीच हमें यह भी ध्यान रखना है कि मानसून में कई बीमारियाँ भी आती हैं। कोरोना काल में हमें इनसे भी बचकर रहना है। आयुर्वेदिक औषधियां, काढ़ा, गर्म पानी इन सबका इस्तेमाल करते रहिए, स्वस्थ रहिए।

नरसिम्हा राव को नमन
प्रधानमंत्री ने कहा, आज 28 जून को भारत अपने एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि दे रहा है, जिन्होंने एक नाजुक दौर में देश का नेतृत्व किया। हमारे ये पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा रावजी की आज जन्म-शताब्दी वर्ष की शुरुआत का दिन है। जब हम पीवी नरसिम्हा रावजी के बारे में बात करते हैं, तो स्वाभाविक रूप से राजनेता के रूप में उनकी छवि हमारे सामने उभरती है, लेकिन यह भी सच्चाई है कि वे अनेक भाषाओं को जानते थे। भारतीय एवं विदेशी भाषाएं बोल लेते थे। वे एक ओर भारतीय मूल्यों में रचे-बसे थे, तो दूसरी ओर उन्हें पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान का भी ज्ञान था। वे भारत के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक थे। लेकिन, उनके जीवन का एक और पहलू भी है, और वो उल्लेखनीय है, हमें जानना भी चाहिए|

प्रधानमंत्री ने कहा, नरसिम्हा रावजी अपनी किशोरावस्था में ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए थे। जब हैदराबाद के निजाम ने वन्दे मातरम् गाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, तब उनके ख़िलाफ़ आंदोलन में उन्होंने भी सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 17 साल थी। छोटी उम्र से ही नरसिम्हा राव अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज उठाने में आगे थे। अपनी आवाज बुलंद करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ते थे। नरसिम्हा रावजी इतिहास को भी बहुत अच्छी तरह समझते थे। बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि से उठकर उनका आगे बढ़ना, शिक्षा पर उनका जोर, सीखने की उनकी प्रवृत्ति और इन सबके साथ, उनकी, नेतृत्व क्षमता – सब कुछ स्मरणीय है। मेरा आग्रह है कि नरसिम्हा रावजी के जन्म-शताब्दी वर्ष में आप सभी लोग उनके जीवन और विचारों के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जानने का प्रयास करें। मैं एक बार फिर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

हम सब मिलकर आगे बढ़ेंगे
प्रधानमंत्री ने कहा, इस बार ‘मन की बात’ में कई विषयों पर बात हुई। अगली बार जब हम मिलेंगे तो कुछ और नए विषयों पर बात होगी। आप अपने संदेश, अपने इनोवैटिव आइडियाज़ मुझे जरूर भेजते रहिए। हम सब मिलकर आगे बढ़ेंगे, और आने वाले दिन और भी सकारात्मक होंगे। जैसा कि मैंने आज शुरू में कहा, हम इसी साल यानी 2020 में ही बेहतर करेंगे, आगे बढ़ेंगे और देश भी नई ऊंचाइयों को छुएगा। मुझे भरोसा है कि 2020 भारत को इस दशक में एक नई दिशा देने वाला वर्ष साबित होगा। इसी भरोसे को लेकर, आप भी आगे बढ़िए, स्वस्थ रहिए, सकारात्मक रहिए। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।

Google News
Tags:

About The Author

Post Comment

Comment List

Advertisement

Latest News

'छद्म युद्ध' की चुनौतियां 'छद्म युद्ध' की चुनौतियां
आर्थिक दृष्टि से अधिक शक्तिशाली भारत अपने दुश्मनों पर और ज्यादा शक्ति के साथ प्रहार कर सकेगा
दपरे: कारगिल युद्ध के वीरों के सम्मान में सेंट्रल हॉस्पिटल ने रक्तदान शिविर लगाया
कर्नाटक सरकार ने रामनगर जिले का नाम बदलकर बेंगलूरु दक्षिण करने का फैसला किया
मराठा लाइट इन्फैंट्री रेजिमेंटल सेंटर ने कारगिल युद्ध विजय की 25वीं वर्षगांठ मनाई
एमयूडीए मामला: प्रह्लाद जोशी ने सिद्दरामैया पर आरोप लगाया, सीबीआई जांच की मांग की
भोजनालयों पर नाम प्रदर्शित करने संबंधी निर्देश पर योगी सरकार ने उच्चतम न्यायालय में क्या दलील दी?
'विपक्षी दल के रूप में काम नहीं कर रही भाजपा, कुछ भी गलत या घोटाला नहीं हुआ'