अयोध्या मामला : श्रीश्री ने फिर पर्सनल-ला बोर्ड से अदालत के बाहर समझौते की अपील की
अयोध्या मामला : श्रीश्री ने फिर पर्सनल-ला बोर्ड से अदालत के बाहर समझौते की अपील की
बेंगलूरु। आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने राम जन्मभूमि मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) से मंगलवार को फिर अदालत के बाहर समझौता करने की अपील करते हुए कहा कि मामले का कानून के माध्यम से निपटारा किए जाने पर ब़डे पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे भ़डक सकते हैं। एआईएमपीएलबी के सदस्यों को लिखे एक खुले पत्र में उन्होंने कहा कि अदालत का रास्ता अपनाने से हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लिए फायदेमंद नहीं है और ऐसे में अदालत के बाहर समझौता दोनों समुदायों के लिए जीत की स्थिति होगी।हिंदू तथा मुस्लिम नेताओं से मुलाकात कर मामले का समाधान निकालने का प्रयास कर रहे रवि शंकर ने कहा, मैं दोनों धर्मों के नेताओं से इस कदम पर गंभीरता से विचार करने का अनुरोध करता हूं। अन्यथा, हम अपने देश को गृहयुद्ध की ओर धकेल रहे हैं। उन्होंने चार संभावित स्थितियां दी, अदालत या तो जमीन मुस्लिमों को दे दे या जमीन हिंदुओं को दे दे या इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश बरकार रखते हुए एक एक़ड जमीन में एक मस्जिद का निर्माण करे जबकि बाकी ६० एक़ड में मंदिर बनाया जाए या फिर संसद इस पर एक कानून पारित करे। उन्होंने कहा, सभी चार विकल्पों में या तो अदालत या फिर सरकार के माध्यम से, नतीजे समान्य रूप से देश और विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के लिए विनाशकारी ही होंगे।रवि शंकर ने कहा कि अदालत के बाहर समझौता ही सबसे बेहतर समाधान होगा, जिसमें मुस्लिम संगठन आगे आएं और हिंदुओं को एक एक़ड जमीन भेंट दंे, जो कि इसके बदले में मुस्लिमों को पास ही में एक ब़डी मस्जिद के निर्माण के लिए पांच एक़ड जमीन दें। उन्होंने एआईएमपीएलबी के नेताओं से कहा कि इस्लाम मस्जिद को दूसरे जगह स्थानांतरित करने की अनुमति देता है, जिसका मौलाना सलमान नदवी और कई अन्य मुस्लिम विद्वानों ने स्पष्ट भी किया है। बहरहाल, रवि शंकर ने कहा, मुस्लिम यह भूमि बाबरी मस्जिद ध्वस्त करने वाले लोगों या किसी विशेष संगठन को नहीं दे रहे। उन्होंने कहा, इसके उलट वे यह जमीन भारत के लोगों को भेंट में दे रहे हैं, उन्हें यह बात दिल और दिमाग में रखनी चाहिए। यह केवल सामंजस्य और उनके व्यापक विचार, उदारता, हितकारिता और सद्भावना की अभिव्यक्ति है।
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