कुछ मौकों पर ही क्यों याद आते हैं गांधी?

नेतागण महात्मा गांधी के नाम की फिक्र न करें

कुछ मौकों पर ही क्यों याद आते हैं गांधी?

अगर फिक्र करनी है तो अपने काम की करें

जब से विकसित भारत-रोजगार और आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण) (वीबी- जी राम जी) विधेयक, 2025 पर चर्चा शुरू हुई है, कुछ नेताओं को महात्मा गांधी की ज्यादा ही याद आ रही है। विपक्षी सांसदों को इस विधेयक के कमजोर पहलुओं के बारे में आवाज जरूर उठानी चाहिए। इसमें क्या सुधार किए जा सकते हैं, मजदूरी के दिनों की संख्या कितनी होनी चाहिए, न्यूनतम मजदूरी कितनी होनी चाहिए, इसमें किन कार्यों को जोड़ा जा सकता है - जैसे कई बिंदु हैं, जिन पर वाजिब दलीलों के साथ बहस होनी चाहिए। लेकिन यह कहना कि 'महात्मा गांधी का नाम मिटाया जा रहा है, उनका अपमान किया जा रहा है', कई सवालों को जन्म देता है। महात्मा गांधी के नाम को न तो कोई हटा सकता है, न मिटा सकता है। यह नाम किसी प्रचार के कारण नहीं, तपस्या के कारण जाना जाता है। महात्मा गांधी के नाम को शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्यवाद भी नहीं मिटा सका था, इसलिए नेतागण उनके नाम की फिक्र न करें। अगर फिक्र करनी है तो अपने काम की करें। आज महात्मा गांधी होते तो देश की समस्याओं के समाधान के लिए क्या करते? विपक्ष के जो नेता महात्मा गांधी के नाम की माला जपते रहते हैं, वे अपने जीवन में उनके आदर्शों का कितना पालन करते हैं? गांधीजी ने अंग्रेज हुकूमत के विरोध में अपने शरीर से विदेशी वस्त्र उतार फेंके थे और हाथ से बनी धोती पहनते थे। उन्होंने देशवासियों को चरखे का महत्त्व समझाकर स्वदेशी को अपनाने का आह्वान किया था। उससे कितना बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया था! आज कितने नेता (सत्ता पक्ष और विपक्ष) स्वदेशी के लिए समर्पित हैं?

Dakshin Bharat at Google News
मोहनदास को महात्मा किसी सोशल मीडिया पोस्ट ने नहीं बनाया था। दक्षिण अफ्रीका के पीटरमैरिट्ज़बर्ग रेलवे स्टेशन पर नस्लीय भेदभाव होने के बाद उन्होंने सत्याग्रह शुरू किया था। एक लंबी तपस्या ने उनमें वह आत्मबल पैदा किया, जिससे अत्याचारी ब्रिटिश सरकार भी घबराती थी। सवाल है- महात्मा गांधी कुछ खास मौकों पर ही क्यों याद आते हैं? नेताओं से तो यह उम्मीद की जाती है कि वे हमेशा महात्मा गांधी को याद रखें और उनके आदर्शों के अनुसार जीवन बिताएं। गांधीजी सत्य, सरलता और सादगी की मूर्ति थे। नेतागण इन विशेषताओं को अपनाने का ही संकल्प ले लें। अभी देश के सामने दो बड़ी समस्याएं हैं- डॉलर के मुकाबले रुपए का गिरना और दिल्ली समेत कई इलाकों में गंभीर वायु प्रदूषण होना। सत्ता पक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर शब्दबाण छोड़ना बंद करें और इन समस्याओं के पुख्ता समाधान ढूंढ़ें। सभी सांसद और विधायक मिलकर स्वदेशी का प्रचार क्यों नहीं करते? वे अपने परिवार से लेकर निर्वाचन क्षेत्र तक, स्वदेशी चीजों के नामों वाली सूची का वितरण क्यों नहीं करते? डॉलर 90 पार चला गया, इसे 80 पर कैसे ला सकते हैं? इस पर नेतागण कोई सुझाव क्यों नहीं देते? मतदाताओं ने आपको खींचतान करने के लिए नहीं, देशवासियों का कल्याण करने के लिए चुना है। दिल्ली में भारत के वरिष्ठ नेता, अधिकारी, विशेषज्ञ और बहुत ज्ञानी लोग बैठते हैं, लेकिन वे वायु प्रदूषण दूर नहीं कर पा रहे हैं। इनके घरों में एयर प्यूरीफायर लगे हैं, जबकि आम जनता त्रस्त है। कोई एक नेता तो आगे आकर मिसाल कायम करे। वायु प्रदूषण दूर करने के कई तरीके हो सकते हैं। सबसे असरदार तरीका है- संसाधनों का कम उपभोग। इससे कम उत्सर्जन होगा। नेतागण अपने काफिलों में वाहनों की संख्या घटाएं, जीवन में सादगी पर जोर दें। उन्हें देखकर जनता प्रेरित होगी। इससे वायु प्रदूषण दूर होगा। एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ने से समस्याएं कम नहीं होंगी, बल्कि और बढ़ेंगी। नेतागण अपनी जिम्मेदारी समझें और देशहित के लिए गंभीरता से काम करें।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download