तक्षशिला और नालंदा थे विश्व के सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय: आचार्य विमलसागरसूरी

गदन में शिक्षाविदों का हुआ सम्मेलन

तक्षशिला और नालंदा थे विश्व के सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय: आचार्य विमलसागरसूरी

विदेशों से भी विद्याभ्यास करने ले लिए लोग भारत आते थे

गदग/दक्षिण भारत। शनिवार को स्थानीय पार्श्व बुद्धि वीर वाटिका के विशाल पंडाल में आयोजित एक दिवसीय शिक्षण सम्मेलन में आचार्य विमलसागरसूरीश्वर जी ने कहा कि तक्षशिला और नालंदा भारत देश के दो प्राचीन विश्वविद्यालय थे। आज के अफगानिस्तान में आया तक्षशिला विश्वविद्यालय का 2700 वर्ष प्राचीन गौरवशाली इतिहास है। यहां एक साथ 10500 विद्यार्थी पढ़ते थे और 60 विषयों का विद्याभ्यास होता था। 

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तक्षशिला और नालंदा, दोनों का इतिहास यह बतलाता है कि प्राचीन काल से भारत शिक्षा, संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों के क्षेत्र में खूब प्रगति कर चुका था। गुरुकुल पद्धति की वह शिक्षा व्यवस्था समाज, धर्म, राष्ट्र और मानवता के लिए कल्याणकारी थी। बौद्ध चीनी यात्री हुएनसांग ने सातवीं शताब्दी में भारत की यात्रा की थी। 

आधे से अधिक भारत का भ्रमण कर उसने अपनी डायरियों में तत्कालीन भारत का इतिहास लिखा है। तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में हुएनसांग की गौरवशाली बातें जानने जैसी हैं। वह लिखता है.. विदेशों से भी विद्याभ्यास करने ले लिए लोग भारत आते हैं। देश का दुर्भाग्य है कि आज भारत की प्रतिभाएं बड़ी संख्या में पढ़ाई के लिए विदेश जाकर वहीं बसना चाहती हैं। यह माइग्रेशन देश के विकास और भविष्य को बहुत प्रभावित करेगा।

गदग के राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में हुबली की रिफ्रेश योर माइंड नामक संस्था ने इस सम्मेलन का आयोजन किया था। इसमें उत्तर कर्नाटक के अनेक क्षेत्रों के सरकारी विद्यालयों के हेडमास्टर, प्रिंसिपल, बोर्ड एज्यूकेशन ऑफिसर, डिस्ट्रिक्ट एज्यूकेशन मिनिस्टर और सैकड़ों शिक्षकों ने भाग लिया।

जैनाचार्य ने कहा कि आधुनिक शिक्षा पद्धत्ति में परिवर्तन के लिए हर सच्चे अच्छे भारतीय को जागना होगा। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की देन है और वह हमारे देश के भविष्य के लिए हानिकारक है। अंग्रेजों के जमाने में देश में सात लाख बत्तीस हजार गांव व शहर थे और इनमें सात लाख बीस हजार गुरुकुल कार्यरत थे। इन गुरुकुलों में निशुल्क शिक्षा व्यवस्था थी। 

गुरुकुलों में पढ़े-लिखे भारतीय विश्व के सफलतम मनुष्य थे। अंग्रेजों ने हमारी सांस्कृतिक और धर्म परंपरा को बर्बाद करने के लिए गुरुकुलों को बंद कर ब्रिटेन की शिक्षा पद्धति यहां लागू की। यह हमारे लिए सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। सभी को संगठित होकर इस दुर्भाग्य को दूर करना होगा। 

संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना, रिफ्रेश योर माइंड के राजेश बंदामुथा एवं शिक्षाधिकारियों ने दीप प्रज्ज्वलन कर सम्मेलन का शुभारंभ किया। गणिवर्य पद्मविमलसागर के सान्निध्य में सातवीं से बारहवीं कक्षा के प्रवेश पत्र धारक 200 से अधिक विद्यार्थी इसमें भाग ले रहे हैं।

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