साइबर ठगी: बैंकर भी नहीं सुरक्षित!
तो आम आदमी कितना सुरक्षित है?
डिजिटल अरेस्ट एक झूठ है
दिल्ली में एक सेवानिवृत्त बैंकर को 'डिजिटल अरेस्ट' कर उनसे 23 करोड़ रुपए की ठगी संभवत: भारत में इस प्रकार के अपराध में लूटी गई राशि का सबसे बड़ा आंकड़ा है। साइबर जालसाजों ने 78 वर्षीय व्यक्ति को लगभग एक महीने तक डिजिटल अरेस्ट रखा और उनकी सारी जमा-पूंजी उड़ा ली। यह जानकर अचंभा होता है कि बैंक में वर्षों सेवा देने के बावजूद ये पूर्व अधिकारी साइबर जालसाजों के झांसे में आ गए! उन्हें जरा भी शक नहीं हुआ। जब अपराधी इस घटना को अंजाम दे रहे थे, तब इन सेवानिवृत्त बैंकर को कई फर्जी पत्र भी भेजे थे। उनकी शब्दावली, मुहर और प्रक्रिया के तौर-तरीकों में कोई तो गड़बड़ रही होगी, जिस पर नजर पड़ते ही शक होना चाहिए था। आम तौर पर यह माना जाता है कि बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों को आर्थिक मामलों की गहरी समझ होती है। वे जालसाजी को तुरंत पकड़ लेते हैं। अगर बैंक में जिंदगीभर नौकरी करने के बावजूद कोई व्यक्ति जालसाजों के पैंतरों को नहीं पकड़ सका तो इसका सीधा-सा मतलब यह है कि साइबर अपराधी बहुत शातिर हो गए हैं। उन्होंने ठगी के ऐसे तरीके ढूंढ़ लिए हैं कि आर्थिक मामलों के जानकार भी शिकार हो जाते हैं। उनके सामने आम आदमी कितना सुरक्षित है? हाल में डिजिटल अरेस्ट की घटनाएं कम ही सामने आ रही थीं। पिछले साल साइबर जालसाजों ने इसके नाम पर लोगों को बहुत लूटा था और रोजाना ही कोई मामला सोशल मीडिया पर चर्चा में रहता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में लोगों को बताया था कि डिजिटल अरेस्ट की धमकियों से डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह एक झूठ है। भारतीय संविधान में डिजिटल अरेस्ट जैसा कोई प्रावधान नहीं है। तो कोई एजेंसी इस तरह किसी व्यक्ति को कैसे गिरफ्तार करेगी?
ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए टेलीकॉम कंपनियों ने कुछ तकनीकी उपाय किए हैं, जो काफी हद तक प्रभावी साबित हुए हैं। हालांकि कोई तकनीक पूरी तरह सुरक्षित नहीं होती है। साइबर जालसाज ऐसे तरीके ढूंढ़ते रहते हैं, जिनकी मदद से वे लोगों तक पहुंच सकें, उन्हें धमका सकें और बैंक खातों में सेंध लगा सकें। कंपनियों को चाहिए कि वे तकनीकी उपायों को और मजबूत करें, ताकि कोई साइबर जालसाज अपने मंसूबों में कामयाब न हो पाए। वहीं, जनता को भी जागरूक होने की जरूरत है। खासकर बैंक कर्मचारियों को तो बहुत सावधान रहना चाहिए। उनके पास बैंक शाखा में काफी नकदी होती है। अगर कोई साइबर जालसाज उन्हें डरा-धमकाकर राशि ट्रांसफर करवा ले तो भारी नुकसान हो सकता है। हाल के वर्षों में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जब साइबर जालसाजों ने बैंक कर्मचारियों / पूर्व कर्मचारियों को बातों में उलझाकर लाखों रुपए ठग लिए थे। पिछले साल दिसंबर में उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक सेवानिवृत्त चीफ मैनेजर डिजिटल अरेस्ट के शिकार हो गए थे। उन्होंने 40.45 लाख रुपए गंवा दिए थे। इसी तरह जून 2024 में जयपुर में एक महिला बैंक मैनेजर से 17 लाख रुपए की ठगी हो गई थी। उन्हें भी डिजिटल अरेस्ट किया गया था। मैनेजर इतनी डर गई थीं कि उन्होंने अपनी एफडी तोड़कर साइबर जालसाजों के बैंक खातों में रुपए भेज दिए थे। जून 2024 में ही कोयंबटूर के एक बैंक मैनेजर पार्ट टाइम जॉब एवं निवेश स्कीम में ऐसे फंसे कि 48.57 लाख रुपए गंवा बैठे थे। कर्नाटक के मांड्या में एक बैंक मैनेजर को साइबर जालसाजों ने नकली सीबीआई अधिकारी बनकर डराया और डिजिटल अरेस्ट कर लिया था। मैनेजर ने जालसाजों की बातों में आकर उन्हें 56 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए थे। ये घटनाएं बताती हैं कि साइबर ठगी के बढ़ते खतरे के मद्देनज़र बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों को विशेष सावधानी बरतनी होगी। साइबर ठग जो नए पैंतरे आजमा रहे हैं, उनसे बचने के लिए बैंकों में चर्चा होनी चाहिए। अख़बार तो सबको रोज़ाना नियमपूर्वक पढ़ना चाहिए। जब बैंक अधिकारी और कर्मचारी ज्यादा सजग रहेंगे तो वे जनता के धन की सुरक्षा भी बेहतर ढंग से कर सकेंगे।

