मंत्र आभामंडल को सत्वशाली बनाते हैं: आचार्यश्री विमलसागरसूरी
रविपुष्य योग में दादावाड़ी में हुई ध्यान और मंत्र साधना

साधना विधि की जानकारी देकर साधकाें काे ज्ञान से समृद्ध किया
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। रविवार काे पुष्य नक्षत्र का संयाेग पाकर बसवनगुड़ी स्थित जिनकुशलसूरी दादावाड़ी में बीजमंत्राें की साधना और ध्यान के प्रयाेग करवाते हुए आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि मंत्रदान और साधना के लिए आश्विन व चैत्र माह की नवरात्रि के दिन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हाेते हैं।
इनके अलावा मंत्राें की उपासना के लिए शास्त्राें में रविपुष्य, गुरुपुष्य और कार्तिक शुक्ल पंचमी (लाभपंचमी) के उल्लेख मिलते हैं। इन पवित्र दिनाें में ब्रह्मचर्य का परिपालन और संयमित आहारचर्या के साथ जाे भावपूर्वक मंत्रसाधना करते हैं, वे निहाल हाे जाते हैं।जैन व वैदिक परंपरा में मंत्र और ध्यान साधनाओं की सिद्धि के अनेक प्रामाणिक उल्लेख मिलते हैं। यहां ध्वनि विज्ञान के अद्भुत आविष्कार के रूप में अनेक बीजमंत्राें का निर्माण हुआ है। वे प्रकृति और शरीर के विभिन्न केंद्राें काे प्रभावित करते हुए मनुष्य काे आराध्य के ध्यान में निमग्न करते हैं। समय-समय पर साधकाें ने बीजमंत्राें की साधना कर संसार की शांति और मानवजाति की उन्नति के अनेक सिद्ध प्रयाेग किए हैं।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने साधना से संबंधित तलस्पर्शी मार्गदर्शन देते हुए स्थान, दिशा, नक्षत्र, बीज मंत्र, उनकी प्रकृति, आसन, आहार, मुद्रा, सामग्री और साधना विधि की राेचक जानकारी देकर साधकाें काे ज्ञान से समृद्ध किया।
उन्हाेंने ओंकार और हृींकार बीजमंत्राें की विस्तृत विवेचना की। उन्हाेंने बताया कि तीन अथवा तीन से अधिक स्वराें और व्यंजनाें के जाेड़ से बीजमंत्र का निर्माण हाेता है। वैदिक परंपरा ओंकार और हृींकार में ब्रह्मा, विष्ण और माहेश्वर की परिकल्पना करती हैं, जबकि जैन परंपरा उनमें पंच परमेष्ठी और चाैबीस तीर्थंकर का निवास मानती हैं। मंत्र आभामंडल काे सत्वशाली बनाते हैं।
इस अवसर पर गणि पद्मविमलसागरजी, खरतरगच्छ के मुनि मलयप्रभसागरजी, अनेक साधु-साध्वीगण, दादावाड़ी ट्रस्ट के तेजराज मालानी, बाबूलाल भंसाली, अरविंद काेठारी, तेजराज गुलेच्छा आदि अनेक गणमान्य लाेग उपस्थित थे।
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