कर्नाटक: वन विभाग ने मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए रेडियो कॉलर विकसित किया
रेडियो कॉलर बांदीपुर और नागरहोल टाइगर रिजर्व के अधिकारियों को सौंप दिए गए हैं

Photo: eshwarkhandre.official FB Page
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। कर्नाटक के पर्यावरण मंत्री ईश्वर खांडरे ने बुधवार को केपी ट्रैकर लॉन्च किया, जो एक स्वदेशी जीएसएम आधारित हाथी रेडियो कॉलर है। इसे वन विभाग ने इन्फिक्शन लैब्स प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से विकसित किया है, ताकि मानव-हाथी संघर्ष को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए हाथियों की निगरानी की जा सके।
ये नए लॉन्च किए गए कर्नाटक रिसर्च ट्रैकर (या कर्नाटक निर्मित ट्रैकर) लागत प्रभावी रेडियो कॉलर हैं, जो तत्काल तैनाती के लिए आसानी से उपलब्ध हैं। अधिकारियों ने कहा कि इन्हें स्थानीय रूप से प्राप्त, पर्यावरण के अनुकूल सामग्रियों का उपयोग करके बनाया गया है, ताकि कम से कम पारिस्थितिक प्रभाव सुनिश्चित किया जा सके।ಕೊಡಗು, ಚಿಕ್ಕಮಗಳೂರು, ಹಾಸನ ಹಾಗು ಸುತ್ತಮುತ್ತ ಆನೆ-ಮಾನವ ಸಂಘರ್ಷ ತಡೆಗಟ್ಟಲು ದೆಶೀಯವಾಗಿ ಅಭಿವೃದ್ಧಿಪಡಿಸಿದ ‘ಕೆ.ಪಿ. ಟ್ರ್ಯಾಕರ್’ ರೇಡಿಯೋ ಕಾಲರ್ ಲೋಕಾರ್ಪಣೆ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ. ಇದು ಆನೆಗಳ ಚಲನ ವಲನ ಗಮನಿಸಿ, ಸ್ಥಳೀಯರಿಗೆ ಮುನ್ನೆಚ್ಚರಿಕೆ ನೀಡಲು ಸಹಾಯ ಮಾಡಲಿದೆ.
— Eshwar Khandre (@eshwar_khandre) February 5, 2025
ಇದು ಹಗುರ, ಪರಿಸರ ಸ್ನೇಹಿ ಮತ್ತು ಸಂಪೂರ್ಣವಾಗಿ ದೇಶೀಯ ತಂತ್ರಜ್ಞಾನ… pic.twitter.com/jpVDj4Bg0m
कोडागु, चिकमगलूरु और हासन में हाथियों के घूमने की घटनाओं का हवाला देते हुए मंत्री ने कहा कि अब स्थानीय लोगों को हाथियों की गतिविधियों के बारे में जानकारी देने के लिए स्वदेशी रूप से निर्मित रेडियो कॉलर का इस्तेमाल किया जाएगा, जो आमतौर पर झुंड का नेतृत्व करने वाली मादा हाथियों को लगाए जाते हैं। इस पहल से हाथियों के उत्पात को रोकने में मदद मिलने की उम्मीद है।
ये रेडियो कॉलर अब बांदीपुर और नागरहोल टाइगर रिजर्व के अधिकारियों को सौंप दिए गए हैं।
खांडरे के अनुसार, 6,395 हाथियों के साथ कर्नाटक में हाथियों की संख्या देश में सबसे ज़्यादा है। हालांकि, हाथियों की बढ़ती आबादी के अनुपात में वन क्षेत्र का विस्तार नहीं हो रहा है, इसलिए मानव-हाथी संघर्ष बढ़ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार हाथियों पर रेडियो कॉलर लगाकर स्थानीय लोगों को समय पर सूचना उपलब्ध कराने के लिए काम कर रही है, जिससे मानव और हाथी दोनों के जीवन की रक्षा होगी।
उन्होंने कहा, 'अब तक ये रेडियो कॉलर दक्षिण अफ्रीका स्थित संगठन अफ्रीका वाइल्डलाइफ ट्रैकिंग (एडब्ल्यूटी) और जर्मनी स्थित संगठन वेक्टरोनिक से आयात किए जाते थे। ये कॉलर आसानी से उपलब्ध नहीं थे और प्रत्येक की कीमत 6.5 लाख रुपए थी। लेकिन अब घरेलू स्तर पर विकसित रेडियो कॉलर की कीमत सिर्फ 1.80 लाख रुपए है।'
खांडरे ने आगे कहा कि इस पहल से रेडियो कॉलर की उपलब्धता बढ़ेगी, विदेशी निर्भरता और उच्च लागत में कमी आएगी तथा विदेशी मुद्रा की बचत होगी।