आतंक के आकाओं को झटका
तहव्वुर राणा का होगा प्रत्यर्पण

कसाब की तरह उसका कच्चा चिट्ठा खुलना चाहिए
26/11 आतंकवादी हमलों में भूमिका के लिए भारतीय जांच एजेंसियों द्वारा वांछित तहव्वुर राणा के अमेरिका से प्रत्यर्पण का रास्ता साफ होने से 'आतंक के आकाओं' को तगड़ा झटका लगा है। भारत को नुकसान पहुंचाकर कोई आतंकवादी खुद को सुरक्षित न समझे। इस मामले से पश्चिमी देशों में स्पष्ट संदेश जाएगा कि उदारवाद के नाम पर खूंखार आतंकवादियों और अलगाववादियों को शरण देने से उन्हें कोई फायदा नहीं होने वाला, बल्कि वे कालांतर में उनके लिए सिरदर्द बनेंगे। तहव्वुर राणा को पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक जरूर कहा जाता है, लेकिन अब कसाब की तरह उसका कच्चा चिट्ठा खुलना चाहिए। आईएसआई अपने गुर्गों को पश्चिमी देशों में भेजकर उन्हें वहां बसने में मदद करती है, ताकि वे उधर रहते हुए उसके मंसूबे पूरे करते रहें। तहव्वुर राणा कोई सामान्य आतंकवादी नहीं है, जिसे किसी संगठन ने अपना मोहरा बना लिया। वह पाकिस्तानी फौज में डॉक्टर था। उसने कैप्टन की रैंक हासिल कर ली थी। पाक फौज के डॉक्टर अपने जवानों और अधिकारियों को ही नहीं, आतंकवादियों को भी सेवाएं उपलब्ध कराते हैं। गोली लगने या घायल होने पर पट्टी कैसे की जाती है, हमले में ज्यादा से ज्यादा नुकसान कैसे पहुंचाया जाता है, प्रतिकूल परिस्थितियों में जान कैसे बचाई जाती है, बिना कोई आहार ग्रहण किए लंबा रास्ता / चढ़ाई कैसे पार की जा सकती है, कम से कम खुराक में ज्यादा से ज्यादा दिनों तक कैसे गुजारा कर सकते हैं, किस उत्तेजक / मादक पदार्थ मिश्रित इंजेक्शन को लगाने से पीड़ा कम महसूस होती है और लड़ाई लंबी खींच सकते हैं ... जैसे सवालों के जवाब पाक फौज के डॉक्टर इन आतंकवादियों को विस्तार से देते हैं।
तहव्वुर राणा सिर्फ कैप्टन बनकर कनाडा बसने चला गया था, जबकि पाकिस्तानी फौज के अन्य अफसर ब्रिगेडियर, मेजर जनरल और लेफ्टिनेंट जनरल बनकर विदेशों में बसने जाते हैं! पाकिस्तानी फौज के इस पूर्व डॉक्टर ने वहां जाकर जो कारोबार शुरू किया, वह 'आव्रजन सेवा' से संबंधित था! वास्तव में पाकिस्तानी फौज के जितने भी 'सेवानिवृत्त' अफसर विदेशों में बसने जाते हैं, वहां उनका मकसद कुछ और होता है। वे उधर जासूसों का नेटवर्क खड़ा करते हैं और भारतविरोधी गतिविधियों को हवा देते रहते हैं। तहव्वुर राणा चाहता तो कनाडा में शांतिपूर्वक रहकर एक खुशहाल जिंदगी जी सकता था, लेकिन उसका मकसद यह था ही नहीं। वह फौज की नौकरी के दौरान ही आतंकवादियों से गहरी सहानुभूति रखने लगा था। वह कनाडा जाकर कट्टरपंथी गतिविधियों में शामिल रहने लगा था। तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण संबंधी फैसले के बाद पश्चिमी देशों में रहने वाले उन लोगों में खलबली जरूर मच गई, जो वहां भारतविरोधी कारनामों को अंजाम देते हैं। उन देशों में तहव्वुर राणा जैसे कई लोग हो सकते हैं, जो अपने दिलो-दिमाग में भारत को नुकसान पहुंचाने का एजेंडा लिए घूम रहे हों। जब यह शख्स भारत लाकर अदालत में खड़ा किया जाएगा तो इस मामले पर पूरी दुनिया की नजरें होंगी। खासकर पाकिस्तान बहुत शोर मचाएगा। वह तहव्वुर के पक्ष में (उसकी उम्र का हवाला देते हुए) सोशल मीडिया पर अभियान चला सकता है। उसे ऐसा 'युद्धविरोधी' व्यक्ति बताया जाने लगा है, जिसे हेडली ने धोखा देकर फंसा दिया! इसके मद्देनजर हमारी एजेंसियां पुख्ता सबूत जुटाकर मामले को इतना मजबूत बनाएं कि इसके बचकर निकलने की कोई गुंजाइश ही न रहे। एक पाकिस्तानी, उच्च शिक्षित शख्स, फौज में डॉक्टर, विदेश में बसने और 'कारोबार' करने का अनुभव ... इसके बावजूद आतंकवादियों के साथ गहरे संबंध! अब यह दलील नहीं दी जा सकती (जैसा कि कसाब और अन्य आतंकवादियों के मामले में कहा गया था) कि अनपढ़ और गरीब था, इसलिए गुमराह होकर आतंकवाद के रास्ते पर चला गया। अगर मन में नफरत का जहर भरा हो तो बड़ी से बड़ी डिग्री भी ऐसे व्यक्ति का हृदय-परिवर्तन करने में नाकाम हो जाती है।