ज्ञान और विद्याओं का न हो कभी दुरुपयोग: आचार्यश्री विमलसागरसूरी
'जैनाचार्याें के पास उच्च काेटि का ज्ञान और अनेक सात्विक विद्याओं की साधना रही है'

रात्रिकालीन ज्ञानसत्र काे गणि पद्मविमलसागरजी ने संबाेधित किया
चिकमगलूर/दक्षिण भारत। बुधवार काे नमि-बुद्धि-वीर वाटिका में विशाल धर्मसभा काे मार्गदर्शन देते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने आगे कहा कि ज्ञान और विद्याओं की सिद्धि के लिए सात्विक जीवन, पवित्र मन, गहरी निष्ठा भावना और अथक पुरुषार्थ चाहिए। विशिष्ट ज्ञान और विद्याएं खरीदी या बेची नहीं जा सकती।
उन्होंने कहा कि इतिहास इस बात का साक्षी है कि जैनाचार्याें के पास उच्च काेटि का ज्ञान और अनेक सात्विक विद्याओं की साधना रही है। वे समाज और राष्ट्र हित में समय-समय पर उनका उपयाेग करते रहे हैं। ज्ञान और विद्याओं की उपलब्धि का पहला सिद्धांत यही है कि वे किसी के शाेषण अथवा परेशानी के लिए नहीं हाेनी चाहिए। जाे विद्याओं का दुरुपयाेग करते हैं वे पाप का अनुबंध ताे करते ही हैं, धीरे-धीरे अज्ञानी और विद्याहीन बन जाते हैं।बुधवार काे भाेरवेला में यहां नमिनाथ जिनालय में मंत्राें, मुद्राओं और विविध जड़ी बूटियाें के साथ संगीतमय विशिष्ट अभिषेक हुए। बड़ी संख्या में पुरुषाें और महिलाओं ने भक्तियाेग के इस अनुष्ठान में भाग लिया। दाेपहर तीन बजे 15 वर्ष से बड़े अविवाहित युवक-युवतियाें के लिये सेमिनार का आयाेजन हुआ।
रात्रिकालीन ज्ञानसत्र काे गणि पद्मविमलसागरजी ने संबाेधित किया। प्रश्नाेत्तरी और परिचर्चा में सैकड़ाें युवा सम्मिलित हुए। जैन संघ के अध्यक्ष व मंत्री ने बताया कि गुरुवार काे नमि-बुद्धि-वीर वाटिका में नूतन माह के शुभारंभ के उपलक्ष्य में भाेरवेला में संगीतमय मंत्रजाप, महामांगलिक आयाेजित हाेगा।