कुरीति पर विजय

देश में एक भी बाल विवाह न होने दिया जाए

कुरीति पर विजय

हिमंत बिस्वा सरमा ने बाल विवाह के खिलाफ डटकर मोर्चा खोल रखा है

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा द्वारा दी गई यह जानकारी कि 'कछार जिले के चार गांवों को बाल विवाह मुक्त घोषित किया गया है', इस कुरीति के खिलाफ राज्य सरकार के प्रयासों का परिणाम है। बहुत लोगों को यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि आज भी बाल विवाह होते हैं! कानूनी सख्ती और शिक्षा के प्रसार के कारण बाल विवाह के मामलों में भारी कमी आई है, लेकिन कुछ इलाकों में चोरी-छिपे बाल विवाह कर दिए जाते हैं। ऐसे 'विवाहों' के पक्ष में कुछ लोगों ने कई कुतर्क गढ़ रखे हैं। उन्हें लगता है कि यह तो किसी व्यक्ति या परिवार का मामला है, लिहाजा सरकारों को कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। वास्तव में यह न तो किसी का निजी और न ही पारिवारिक मामला है। यह तो उन मासूम बालक-बालिकाओं के साथ ज्यादती है, जो कथित परंपरा के नाम पर ब्याह दिए जाते हैं। हिमंत बिस्वा सरमा ने असम में बाल विवाह के खिलाफ डटकर मोर्चा खोल रखा है। इससे उन लोगों में भय है, जो बाल विवाह कराते हैं। हालांकि असम सरकार की सख्ती की आलोचना हुई है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अगर सिर्फ समझाइश का सहारा लिया जाता तो क्या बाल विवाह रुक सकते थे? इस कुरीति के खिलाफ सरकार को सख्त कदम उठाने ही चाहिएं। बाल विवाह रुकवाने में समाज की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रशासन को इसकी सूचना देने वाले लोग प्रशंसा के पात्र हैं। अगर उन्होंने समय रहते सतर्कता नहीं दिखाई होती तो कितनी ही बालिकाओं का बचपन उजड़ जाता। स्पष्ट है कि समाज में काफी जागरूकता आई है। अब लोग ऐसी कुप्रथाओं के खिलाफ खड़े हो रहे हैं। प्राय: बाल विवाह के समर्थन में कुछ लोग यह कहते मिल जाते हैं कि 'हमारे दादा-दादी, परदादा-परदादी का बाल विवाह हुआ था ... उनका दांपत्य जीवन बहुत खुशहाल रहा ... यह प्रथा तो भारत में सदियों से चलती रही है, अब इसमें क्या बुराई है?'

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ऐसी बातें कहकर बाल विवाह को महिमा-मंडित करने वाले लोग भूल जाते हैं कि वह ज़माना और था, यह ज़माना और है। तब पढ़ाई-लिखाई, परीक्षा, रोजगार, दैनिक खर्चों की स्थिति और थी, आज कुछ और है। यह भी देखें कि चालीस के दशक में मातृ मृत्यु दर कितनी थी? कितनी ही माताएं (जो स्वयं बच्चियां होती थीं) संतान को जन्म देते समय या उसके बाद उत्पन्न होने वाली जटिलताओं के कारण दम तोड़ देती थीं। इसके प्रमुख कारणों में बाल विवाह एक कारण था। इस पर आज कितने लोग बात करते हैं? बाल विवाह से दूरी और बेहतर चिकित्सा सुविधाओं के कारण माताओं का स्वास्थ्य अच्छा हुआ है, प्रसव संबंधी जटिलताओं का बहुत बढ़िया इलाज हुआ है, जिससे मातृ मृत्यु दर में कमी आई है। ये बदलाव इतने धीरे-धीरे आते हैं कि कई लोगों का इनकी ओर ध्यान ही नहीं जाता या बहुत देर से जाता है। आज बालिकाएं आगे आकर बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठा रही हैं। मोबाइल फोन जैसी सुविधाओं ने प्रशासन से संपर्क का रास्ता आसान कर दिया है। ऐसे मुद्दों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने से बड़ा बदलाव आया है। फिर भी किसी रूढ़िवादी परिवार में बाल विवाह होता है तो बालिकाएं स्वयं ही प्रशासन को सूचित कर देती हैं। ऐसे मामले सामने आए हैं, जब वे अपने बाल विवाह को निरस्त करवाने के लिए न्यायालय गईं और उन्हें इस कार्य में सफलता मिली। आज सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में बाल विवाह को लेकर जागरूकता है। हमारे महान समाज सुधारकों द्वारा जलाई गई जागरूकता की ज्योति और सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से बाल विवाह पर काफी काबू पा लिया गया है। जो व्यक्ति इस कुरीति से थोड़ा भी लगाव रखता है, उसके मन में भय जरूर रहता है कि अगर प्रशासन को भनक लग गई तो खैर नहीं है! शिक्षित परिवार स्वयं ही इस बुराई से दूर हो गए हैं। इसके बावजूद मीडिया, समाज और प्रशासन को सतर्क रहना चाहिए। समाज सुधारकों ने जो संघर्ष किया था, उसे पूरी तरह सफल बनाने के लिए जरूरी है कि देश में एक भी बाल विवाह न होने दिया जाए।

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