हानिया, नसरुल्लाह ...?
बेंजामिन नेतन्याहू के तेवर देखकर लगता नहीं कि वे यहीं रुक जाएंगे।
हमास, हिज्बुल्लाह जैसे संगठनों को मदद ईरान से मिल रही है
लेबनान में 'पेजरकांड' के बाद हिज्बुल्लाह के प्रमुख हसन नसरुल्लाह का खात्मा इजराइल की खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा बलों के लिए बहुत बड़ी कामयाबी है। सालभर पहले जब हमास ने इजराइल पर अचानक हमला बोला था, तब यह तो माना जा रहा था कि इजराइल अपने नागरिकों की रक्षा करने के लिए बड़ी कार्रवाई करेगा, लेकिन वह इस हद तक जाएगा, इसकी उम्मीद कम ही थी। उसने हमास और हिज्बुल्लाह के कई लड़ाकों को मार गिराया।
इसी दौरान हमास के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख इस्माइल हानिया का खात्मा कर दिया। पेजरकांड के बाद यह शक जताया जाने लगा है कि ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी जिस हेलीकॉप्टर हादसे के शिकार हुए, उसमें भी 'पेजर' की भूमिका हो सकती है! बीते एक साल में इजराइल जिस तरह से अपने 'शत्रुओं' तक पहुंचने में सफल रहा है, उससे यह बात खुलकर सामने आती है कि उसकी खुफिया एजेंसी मोसाद की जड़ें बहुत गहरी हैं।ईरान सरकार और हमास एवं हिज्बुल्लाह के नेतृत्व ने कल्पना भी नहीं की होगी कि मोसाद का नेटवर्क उनके यहां इस तरह फैला होगा! हानिया और नसरुल्लाह तो बहुत कड़ी सुरक्षा में रहते थे। उन तक पहुंचना किसी फौलादी किले को ढहाने जैसा था। दोनों के साथ हमेशा सशस्त्र सैनिक रहते थे, जिन्हें अत्यंत उच्च स्तर का प्रशिक्षण दिया जाता और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि की सख्ती से जांच की जाती थी। इसके बावजूद दोनों अपने 'सुरक्षित ठिकानों' पर ही ढेर कर दिए गए।
इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के तेवर देखकर लगता नहीं कि वे यहीं रुक जाएंगे। वे नसरुल्लाह के मारे जाने को इजराइल के लिए अपने युद्ध लक्ष्यों को हासिल करने के वास्ते ‘आवश्यक शर्त’ बता चुके हैं। अब आशंका यह जताई जा रही है कि ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली ख़ामेनेई पर संकट के बादल मंडरा सकते हैं, चूंकि इजराइल के खिलाफ जारी लड़ाई को पर्दे के पीछे से वे ही संचालित कर रहे हैं। हमास, हिज्बुल्लाह जैसे संगठनों को मदद ईरान से मिल रही है। ईरानी अख़बार इनके लड़ाकों का गुणगान कर रहे हैं।
सात अक्टूबर को, जब इस लड़ाई को शुरू हुए एक साल हो जाएगा, ईरानी नेतृत्व को इस बात पर विचार जरूर करना चाहिए कि संपूर्ण घटनाक्रम से क्या हासिल हुआ? इजराइल के साथ ईरान, फिलिस्तीन जैसे देशों के तनावपूर्ण संबंध पहले भी थे, लेकिन हमास के हमले ने आग में तेल डालने का काम किया था।
अगर हमास इजराइल के नागरिकों पर हमले की पहल नहीं करता, उनका अपहरण नहीं करता तो बात यहां तक नहीं पहुंचती। छोटे बच्चों, लड़कियों और बुजुर्गों के साथ जिस तरह क्रूरता का बर्ताव किया गया, उससे हमास को मिलने वाली सहानुभूति में निश्चित रूप से कमी आई। आज जब यह कहा जाता है कि इजराइल की वायुसेना गाजा और लेबनान के आम लोगों पर बम बरसा रही है (यह कथन पूरी तरह गलत भी नहीं है) तो इसके जवाब में यह सवाल पूछा जाता है- '7 अक्टूबर को हमला क्यों किया था?'
इजराइल ने गाजा में जो जवाबी कार्रवाई शुरू की थी, उसमें अब तक 41,500 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की रिपोर्टें हैं। अब लेबनान में जिस तरह बम बरसाए जा रहे हैं, उससे यह आंकड़ा बढ़ना तय है। यह एक साल इन देशों के लिए संघर्ष और तबाही लेकर आया है, जिसे रोकने के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत है। ईरान को हमास, हिज्बुल्लाह जैसे संगठनों को मदद देना और उकसाना बंद करना चाहिए।
अयातुल्ला अली ख़ामेनेई की भूमिका एक 'शांतिरक्षक' की होनी चाहिए थी, लेकिन वे तो लड़ाई के नए-नए मोर्चे खोलने को आमादा हैं। उन्होंने हाल में भारत के खिलाफ टिप्पणी कर दी थी। उनका यह रवैया इजराइल के साथ शांति में बाधा ही बनेगा।
ईरान, लेबनान, हमास, हिज्बुल्लाह के लिए इस लड़ाई के कई मायने हो सकते हैं। वे हार का जोखिम उठा सकते हैं, जबकि इजराइल के लिए तो यह अस्तित्व बचाने का सवाल है। वह हार का जोखिम उठा ही नहीं सकता। अगर इजराइल हारा तो उसका अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा।