कैसे लाभ में आए डाक विभाग?

सिंधिया का सवाल वाजिब है

कैसे लाभ में आए डाक विभाग?

डाक विभाग को लाभ में लाने के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों को नए उत्साह के साथ काम में जुटना होगा

केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने डाक विभाग को लाभ में लाने के लिए एकजुट होकर काम करने और लक्ष्य हासिल करने के लिए सामूहिक प्रयास करने संबंधी जो आह्वान किया है, उसकी आज बहुत जरूरत है। डाक विभाग का जनता से गहरा संबंध रहा है। जब अपनों का हालचाल जानने और अपने मन की बात पहुंचाने के लिए पत्र ही सबसे बड़ा माध्यम थे, तब डाकघरों में इनका अंबार लगा रहता था। 

Dakshin Bharat at Google News
कई बार लोग शिकायत भी करते थे कि उनके पत्र समय पर नहीं मिल रहे, तो पता चलता था कि बड़ी संख्या में पत्र आ रहे हैं, इसलिए पहुंचाने में समय लग रहा है। नब्बे के दशक तक यह सिलसिला जोर-शोर से जारी रहा, लेकिन नई सदी में जैसे ही मोबाइल फोन क्रांति घर-घर पहुंची, लोगों का पत्रों से मोहभंग होता गया। पहले, प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर्म भरकर भेजने, कॉल लेटर और परीक्षा परिणाम की सूचना पाने में डाक विभाग की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती थी। 

अब ये सब काम ऑनलाइन हो गए। ब्याह-शादी के निमंत्रण पत्र हों या भाई-बहन के प्रेम की प्रतीक राखियां, डाक विभाग ने कितने ही रिश्तों को जोड़ा है। कोरोना काल के बाद शादियों के निमंत्रण पत्र भी तेजी से डिजिटल हो गए। वहीं, राखियां भेजने में प्राइवेट कूरियर कंपनियों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। यह हकीकत है कि शहरों में कम वजन वाली कोई चीज या दस्तावेज आदि भेजना हो, तो प्राइवेट कूरियर कंपनियों की सेवाएं लेने का चलन बढ़ता जा रहा है। 

निस्संदेह इन कंपनियों का अभी उतना बड़ा नेटवर्क नहीं है, जितना डाक विभाग का है। अगर आपको राजस्थान की सुदूर ढाणी, उत्तराखंड के दूर-दराज के गांव या अरुणाचल प्रदेश के दुर्गम क्षेत्र में रहने वाले अपने किसी मित्र को कोई दस्तावेज भेजना हो तो डाक विभाग ही मददगार साबित होता है। बड़ा सवाल यह है कि इतने बड़े नेटवर्क, व्यापक अनुभव और सरकारी सहायता के बावजूद डाक विभाग उस मुकाम तक क्यों नहीं पहुंच सका, जिसका यह हकदार है?

यही सवाल ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इन शब्दों में पूछा है, '... हम भारत सरकार के लिए एक लागत केंद्र हैं। हमारा राजस्व प्रवाह 12,000 करोड़ रु., लागत प्रवाह 36,000 करोड़ रु. है। ऐसा क्यों है कि मेरा परिवार सरकार के लिए लाभ केंद्र नहीं बन सकता? एक बड़ा लक्ष्य है ... 12,000 करोड़ रु. के राजस्व से 40,000 करोड़ रु. तक जाना, लेकिन यह संभावना के दायरे से बाहर नहीं है।' 

सिंधिया का सवाल वाजिब है। डाक विभाग को लाभ का केंद्र जरूर बनाना चाहिए। यह संभव है, लेकिन इससे पहले उन कारणों का पता लगाना होगा, जो इसकी प्रगति की राह में रुकावट बने। इसका बड़ा कारण है- समय के साथ खुद को अपडेट न करना। यह नहीं भूलना चाहिए कि नब्बे के दशक तक पत्रों से लेकर रुपए भेजने तक, डाक विभाग का ही जलवा था। इसकी खूबियों पर कई लोकगीत रचे गए, जो बड़े मशहूर हुए थे। लोग डाकिए का इंतजार करते थे, क्योंकि वह पत्र ही नहीं, मनीऑर्डर लेकर भी आता था। जिस घर में हर महीने मनीऑर्डर आता, उसे विशेष सम्मान के साथ देखा जाता था। 

चूंकि बैंकों के जरिए रुपए भेजना (तुलनात्मक रूप से) इतना आसान नहीं था। सामान्य आर्थिक पृष्ठभूमि वाले परिवारों तक बैंकों की पहुंच नहीं थी। अगर कोई ग्रामीण अपना बैंक खाता खुलवाना चाहता तो उसे शहर जाना पड़ता था। खाता खुलवाने के लिए कई जगह चक्कर लगाने पड़ते थे, जबकि डाकघर से मनीऑर्डर भेजने के लिए सिर्फ एक फॉर्म भरना पड़ता था। कालांतर में मोबाइल फोन ने पत्र की और डिजिटल पेमेंट ने मनीऑर्डर की जगह ले ली। हालांकि डाक विभाग भी इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक लेकर आया, लेकिन तब तक बाजार में प्राइवेट कंपनियां पूरी तरह छा गई थीं। 

डाक विभाग को लाभ में लाने के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों को नए उत्साह के साथ काम में जुटना होगा। विभाग के विशाल नेटवर्क का इस्तेमाल ई-कॉमर्स के लिए करें, जिसमें समयबद्धता का खास ध्यान रखा जाए। बचत योजनाओं की पहुंच बढ़ाई जाए। ज्यादा से ज्यादा लोगों को इन योजनाओं से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। तकनीकी बदलावों पर नजर रखें और उन्हें अपनाने के लिए तैयार रहें। त्योहारी सीजन में आकर्षक ऑफर लेकर आएं और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करते हुए जनता तक बेहतर सुविधाएं पहुंचाएं। इन उपायों से डाक विभाग निश्चित रूप से शानदार प्रदर्शन करते हुए मजबूती के साथ आगे बढ़ेगा।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download