देशहित में कड़े फैसले जरूरी
भारत के समक्ष जनसंख्या, प्रति व्यक्ति जमीन उपलब्धता, स्वास्थ्य सुविधाओं की बड़ी चुनौती है
अगर पिछली सरकारों ने समय रहते कुछ जरूरी कदम उठाए होते तो आज हालात बहुत बेहतर होते
विख्यात उद्योगपति एनआर नारायण मूर्ति ने देश में बढ़ती जनसंख्या और प्रति व्यक्ति जमीन की उपलब्धता के संबंध में जो टिप्पणी की, उस पर सरकारों को चिंतन, मनन और अध्ययन करना चाहिए। आज देश में जनसंख्या उस स्तर तक पहुंच गई है कि ज्यादातर लोगों को गुणवत्तापूर्ण सेवाएं व सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। जिधर जाएं, उधर भीड़ ही भीड़ दिखाई देती है। परीक्षाओं में एक-एक पद के लिए प्रतिस्पर्धा इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि कई युवाओं को अपने भविष्य को लेकर निराशा महसूस होती है।
नारायण मूर्ति ने सत्य कहा कि 'भारत के समक्ष जनसंख्या, प्रति व्यक्ति जमीन उपलब्धता, स्वास्थ्य सुविधाओं की बड़ी चुनौती है।' अगर आज देश की जनसंख्या संतुलित होती तो न तो जमीनों की कीमतें इतनी ज्यादा बढ़तीं और न ही स्वास्थ्य सुविधाओं का ऐसा हाल होता, जो दिखाई दे रहा है। देश के कई सरकारी अस्पतालों में तो स्थिति यह है कि मरीजों को न एंबुलेंस मिल पाती है और न बिस्तर उपलब्ध होता है। कोई व्यक्ति बस या ट्रेन में भारी भीड़ से निकलते हुए अपनी सीट तक पहुंच जाए तो वह ऐसा महसूस करता है, जैसे उसने कोई किला फतह कर लिया।ग्रामीण क्षेत्रों में सुबह-शाम बसों व जीपों की छतों पर बैठकर या पीछे लटककर गंतव्य तक जाते हुए कई यात्री हादसों के शिकार हो चुके हैं। आखिर वे क्या करें, अंदर बैठने के लिए जगह ही नहीं मिलती! सीटें भर जाने के बाद अन्य सवारियों को ठूंस-ठूंसकर भर दिया जाता है। गांवों से पलायन कर शहर आने वाले नौजवान काफी मशक्कत के बाद जब कोई नौकरी हासिल करते हैं और दो-चार साल बाद अपना घर लेने की कोशिश करते हैं तो जमीनों की कीमतें और भवन निर्माण की लागत सुनकर 'पांवों तले जमीन खिसकती' महसूस होती है।
अगर पिछली सरकारों ने समय रहते कुछ जरूरी कदम उठाए होते तो आज हालात बहुत बेहतर होते। प्राय: यह दलील दी जाती है कि जनसंख्या बढ़ गई तो क्या हुआ, खाद्यान्न उत्पादन भी तो बढ़ गया ... कई सुविधाएं भी बढ़ गईं ... कमाई बढ़ गई! इसमें स्पष्ट रूप से तथ्यों की कमी है। बेशक खाद्यान्न उत्पादन बढ़ा है, लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि यह जनसंख्या वृद्धि के साथ स्वत: नहीं बढ़ा है। इसके लिए कुछ खास किस्म के बीज विकसित किए गए, उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग बढ़ाया गया। आज इनके दुष्प्रभाव भी सामने आ रहे हैं।
मनुष्य को पेट भरकर भोजन चाहिए, लेकिन उसके जीवन की आवश्यकताएं भोजन तक ही सीमित नहीं हैं। मनुष्य को साफ हवा चाहिए, साफ पानी चाहिए, रहने के लिए अच्छी जगह चाहिए, मनोरंजन के उचित साधन चाहिएं, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं चाहिएं, बेहतरीन स्कूल-कॉलेज चाहिएं, सुरक्षित भविष्य भी चाहिए। अगर कमाई बढ़ी है तो चीजों के दाम भी बढ़े हैं। आटा, चावल, दाल, दूध, सब्जी, पेट्रोल, कहीं आने-जाने के लिए किराया ... सबकुछ महंगा हुआ है। ऐसे में आम आदमी के लिए तो गुणवत्तापूर्ण सुविधाएं हासिल करना एक सुनहरा ख्वाब ही है।
देश के पास संसाधन सीमित हैं, जबकि जनसंख्या ज्यादा है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में लोग जागरूक हुए हैं। अब ज्यादातर शिक्षित परिवारों में दंपति के दो से ज्यादा बच्चे नहीं होते। प्रजनन दर में कमी आई है। वहीं, अब भी कई परिवारों की 'रूढ़िवादी सोच' में बदलाव लाना बाकी है। इसके लिए जागरूकता का प्रसार एक विकल्प हो सकता है। हालांकि यह काफी नहीं है। सरकार को देशहित में कुछ कड़े फैसले भी लेने होंगे। आने वाली पीढ़ी का जीवन स्तर बेहतर हो, अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हों, इसके लिए बहुत जरूरी है कि वर्तमान सरकार इस दिशा में बड़ा कदम उठाए।