'मैं तब तक योग सिखाती रहूंगी, जब तक मेरी सांसें चलेंगी'

ताओ पोर्चोन-लिंच ने योगाभ्यास से पाई थी दीर्घायु

'मैं तब तक योग सिखाती रहूंगी, जब तक मेरी सांसें चलेंगी'

Photo: taoporchonlynch100 Instagram account

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। हमारे देश की सांस्कृतिक-आध्यात्मिक परंपराओं में अपने प्रियजन के लिए दीर्घायु या शतायु होने की कामना करने का विशेष महत्त्व है। योगशास्त्र के इतिहास में तो ऐसे अनेक योगियों का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने सौ साल से ज्यादा उम्र पाई थी।

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ताओ पोर्चोन-लिंच भी एक प्रख्यात योगी थीं, जिन्होंने उम्र का शतक लगाया था। उन्होंने इस संसार में 101 साल तक जीवित रहकर यह संदेश दिया कि प्रकृति के अनुकूल जीवन और योगाभ्यास से दीर्घायु की प्राप्ति हो सकती है।

पोर्चोन का जन्म 13 अगस्त, 1918 को इंग्लिश चैनल के बीच एक जहाज पर हुआ था। उनके पिता फ़्रांस से थे, जबकि मां भारत के मणिपुर से थीं। जब पोर्चोन सात महीने की थीं, उनकी मां की मृत्यु हो गई। उसके बाद उनका पालन-पोषण चाची और चाचा ने किया था। उनके चाचा रेलमार्ग डिजाइन करते थे, जो उन्हें कई देशों की यात्राओं पर साथ लेकर जाते थे। उस परिवार के पास फ्रांस में अंगूर के बाग थे।

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पोर्चोन ने आठ साल की उम्र में भारत में पुड्डुचेरी के समुद्र तट पर युवाओं के एक समूह को योगाभ्यास करते देखा था। यह पहली घटना थी, जब पोर्चोन की योग में रुचि पैदा हुई। उनकी चाची का कहना था कि योग मुख्यतः पुरुषों के लिए है। हालांकि पोर्चोन ने उनकी सलाह के विपरीत योगाभ्यास में रुचि लेनी शुरू कर दी थी। वे धीरे-धीरे इसमें निपुण होती गईं। उन्होंने महात्मा गांधी के साथ दो अलग-अलग मौकों पर मार्च भी किया था। 

पोर्चोन अभिनय के क्षेत्र में कार्यरत थीं, लेकिन विवाह के बाद इसे छोड़ दिया और अपना जीवन योग को समर्पित कर दिया। उन्होंने महर्षि अरविंद और इंद्रा देवी से भी योग की शिक्षा प्राप्त की थी। जैक लालेन, जो अमेरिका में फिटनेस के गॉडफादर और पोषण गुरु माने जाते थे, ने उनसे योगाभ्यास सीखा था।

पोर्चोन साल 1976 में योग शिक्षक गठबंधन की संस्थापकों में से एक बनीं, जो अब योग शिक्षक संघ के रूप में जाना जाता है। उन्होंने न्यूयॉर्क में योगाभ्यास सिखाना शुरू किया और साल 1982 में वेस्टचेस्टर इंस्टीट्यूट ऑफ योगा की स्थापना की।

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वे उम्र बढ़ने के बावजूद पूरी तरह सक्रिय रहीं। उनका यह कहना प्रसिद्ध है- 'मैं तब तक योग सिखाती रहूंगी, जब तक मेरी सांसें चलेंगी।' उन्हें मई 2012 में बर्नीस बेट्स से विश्व की सबसे बुजुर्ग योग शिक्षिका का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड का खिताब मिला था। उन्होंने 'रिफ्लेक्शंस: द योगिक जर्नी ऑफ लाइफ' पुस्तक लिखी थी।

उन्होंने स्वस्थ जीवन का रहस्य बताते हुए कहा था, 'जब मैं सुबह उठती हूं तो सूरज की ओर देखती हूं और कहती हूं- 'यह मेरे जीवन का सबसे अच्छा दिन होगा' और ऐसा ही होगा। यह हमेशा होता है। ... सांस हमें सिखाती है - इसे सुनें। अपने फेफड़ों को बाहर की ओर फैलते हुए महसूस करें, अपने हाथों को छत की ओर, ऊपर की ओर खींचें और वहां ऊर्जा को महसूस करें। जीवन की सांस अंदर लें और शांति की सांस बाहर छोड़ें।'

पोर्चोन को योग के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए साल 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वे 21 फरवरी, 2020 को भौतिक देह त्यागकर ब्रह्मलीन हो गईं।

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