शेख हसीना: आगे कठिन डगर
बीएनपी का 'चुनाव का बहिष्कार' भी बहुत लोगों की समझ से परे था
शेख हसीना पर जनता के इस भरोसे के साथ ही उम्मीदें भी बढ़ गई हैं
बांग्लादेश में अवामी लीग का लगातार चौथी बार आम चुनाव जीतना निवर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना की लोकप्रियता के साथ ही यह भी बताता है कि इस पड़ोसी देश में विपक्ष के पास ठोस रणनीति का अभाव है। उसने अवामी लीग सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए, जिन्हें जनता ने नकार दिया। विपक्षी बीएनपी ने तो चुनाव का बहिष्कार कर दिया था और वह अवामी लीग सरकार को ‘अवैध सरकार’ बताती रही। उसके द्वारा 48 घंटे की राष्ट्रव्यापी हड़ताल के आह्वान के बाद कई जगहों पर हिंसक घटनाएं हुईं, लेकिन चुनाव नतीजे वही आए, जिनकी पहले से ही संभावना जताई जा रही थी।
बीएनपी का 'चुनाव का बहिष्कार' भी बहुत लोगों की समझ से परे था। बतौर विपक्ष, उसके उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतरना चाहिए था, लेकिन इस पार्टी ने एक तरह से बिना लड़े ही हथियार डाल दिए। इससे शेख हसीना के लिए चुनावी लड़ाई और ज्यादा आसान हो गई। वे गोपालगंज-3 सीट से भी बहुत भारी अंतर से जीतीं। शेख हसीना पर जनता के इस भरोसे के साथ ही उम्मीदें भी बढ़ गई हैं।इस समय बांग्लादेश के सामने महंगाई, बेरोजगारी, अच्छी सार्वजनिक सुविधाओं का अभाव, बढ़ती असहिष्णुता जैसी कई चुनौतियां हैं। रूस-यूक्रेन जंग छिड़ने के बाद बांग्लादेश का खाद्य सामग्री का आयात बिल बढ़ गया। इससे विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से खाली हुआ है। ईंधन के दामों में भी वृद्धि हो गई, जिससे कई घरों में रसोई का बजट बिगड़ गया है। बांग्लादेश को मजबूरन आईएमएफ के पास जाना पड़ा था।
विपक्ष शेख हसीना पर भ्रष्टाचार करने, विरोधियों की आवाज दबाने के साथ ही यह आरोप लगा रहा है कि अवामी लीग के पास देश की आर्थिक समस्याओं से निजात दिलाने का कोई रोडमैप नहीं है। उसे इस बात की भी 'आशंका' है कि शेख हसीना के नए कार्यकाल में देश की आर्थिक स्थिति और बिगड़ सकती है।
तमाम चुनौतियों के बावजूद हाल के वर्षों में बांग्लादेश ने कई उपलब्धियां भी हासिल की हैं। शेख हसीना के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस पड़ोसी देश ने महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया है। महिलाओं के लिए रोजगार के मौके बढ़े हैं। बांग्लादेश के गार्मेंट उद्योग के लिए तो यह कहा जाता है कि नारी शक्ति ने इसे इतनी ऊंचाई पर पहुंचाया है।
बांग्लादेश में लघु बचत, बैंकिंग सुविधाएं, परिवार नियोजन, खाद्यान्न वितरण समेत कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय काम हुए हैं, जिनका श्रेय शेख हसीना को मिलना चाहिए। इसके अलावा उन्होंने अल्पसंख्यकों के आराधना स्थलों के विकास के लिए भी प्रयास किए हैं, जिसकी वजह से वे कट्टरपंथी संगठनों के निशाने पर आ गईं।
शेख हसीना की एक और बड़ी उपलब्धि है, जिसका जिक्र करना जरूरी है। बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में जिन ताकतों ने पाकिस्तानी फौज का साथ देते हुए महिलाओं, खासतौर से हिंदू महिलाओं पर अत्याचार किए थे, उन अपराधियों के प्रति शेख हसीना का रुख बहुत सख्त रहा है। उनमें से कई अपराधी या तो जेल भेज दिए गए या फांसी पर लटका दिए गए। ऐसे अपराधियों की सूची जारी की गई थी, जिनमें से कई तो आज भी फरार हैं।
हालांकि बीएनपी के राज में उनकी मौज थी। उनमें से एक व्यक्ति बांग्लादेश के उद्योग जगत का बड़ा नाम रह चुका है। वह राजनीति में अपने रसूख से मंत्री बन गया था। यही नहीं, वह भारत के असम में तस्करी के जरिए उग्रवादियों को धन और हथियार पहुंचाने का नेटवर्क चलाता था। उसके बांग्लादेश समेत पाकिस्तान में भी बड़ी संख्या में समर्थक थे, लेकिन अवामी लीग सरकार ने ठोस सबूत जुटाए, जिसकी वजह से उस अपराधी को फांसी पर लटकाया गया।
अगस्त 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान (शेख हसीना के पिता और तत्कालीन राष्ट्रपति) के हत्याकांड में शामिल अपराधियों पर भी शेख हसीना ने खूब शिकंजा कसा था। उनमें से एक पूर्व सैन्य अधिकारी को अप्रैल 2020 में फांसी दी गई थी। शेख हसीना को नए कार्यकाल में देश के आर्थिक विकास को शीर्ष प्राथमिकता देने के साथ ही कट्टरपंथ और (भारतीय सीमा में नागरिकों की) घुसपैठ जैसी समस्याओं का ठोस समाधान करना होगा। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमलों की घटनाओं में भारी वृद्धि हुई है, जो बहुत चिंता का विषय है।