चीन की डूबती नैया!
यह आंकड़ा 50 से ऊपर होता तो संकेत मिलता कि अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, बाजारों में मांग है
सूचकांक के पिछले नौ महीनों के आंकड़े यही कहानी बयान कर रहे हैं, जिन्हें चीनी सरकार ज्यादा छुपा नहीं सकती थी
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का नए साल के भाषण में यह कहना कि 'देश की अर्थव्यवस्था पहले से अधिक लचीली और गतिशील बन गई है', मौजूदा मुश्किल हालात पर लीपापोती की तरह है। शी अपने अड़ियल रवैए के कारण अपने हाथों इस देश की अर्थव्यवस्था का बंटाधार करने को आमादा हैं। वे मशहूर उद्योगपति जैक मा द्वारा बैंकिंग प्रणाली के पुराने ढर्रे की जरा-सी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाए। उसके बाद जैक के साथ जो हुआ, वह पूरी दुनिया ने देखा। ऐसे में कौन उद्योगपति चीनी सरकार की नीति और रवैए पर विश्वास करेगा?
पिछले एक साल में कई कंपनियों ने चीन के बजाय अन्य देशों का रुख कर लिया। इन सबका नतीजा यह हुआ कि इस देश की विनिर्माण गतिविधियां दिसंबर में धीमी पड़ गईं और अर्थव्यवस्था ने कमजोर प्रदर्शन किया। चीन के लिए यह खतरे की घंटी है, क्योंकि विश्व की नंबर दो अर्थव्यवस्था के अव्वल दर्जे पर आने के मंसूबे पर पानी फिरता नजर आ रहा है। कारखानों के प्रबंधकों के माथों पर पसीने आ रहे हैं। बाजार में मांग कम है और पूंजी का ब्याज बढ़ता जा रहा है। इससे बैंकिंग क्षेत्र पर दबाव बढ़ रहा है।भवन निर्माताओं ने बैंकों से उधार लेकर बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर दीं, लेकिन अब खरीदार नहीं मिल रहे। जो मिल रहे हैं, वे उतनी कीमत नहीं देना चाहते, जितनी निर्माता मांग रहे हैं। चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने जो आंकड़े जारी किए हैं, वे भी इस बात की गवाही दे रहे हैं कि अगर सरकार ने जल्द कोई ठोस उपाय नहीं किए तो अर्थव्यवस्था का ग्राफ यूं ही गोते खाता रहेगा। उसका आधिकारिक विनिर्माण क्रय प्रबंधक सूचकांक 'पीएमआई' दिसंबर में गिरकर 49 पर आ गया।
यह इस बात का संकेत है कि बाजारों में खरीदार नहीं आ रहे, मांग की स्थिति सुस्त है। इसका सीधा असर विक्रेताओं की स्थिति पर पड़ रहा है। अगर कुछ और महीनों तक यही हालत रही तो उन्हें किराया चुकाने में कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।
यह आंकड़ा 50 से ऊपर होता तो संकेत मिलता कि अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, बाजारों में मांग है, माल की खपत हो रही है, लिहाजा कारखानों की गतिविधियां बढ़ रही हैं। ऐसी स्थिति तब है, जब चीनी सरकार पर असल आंकड़े छुपाने के आरोप लगते रहे हैं। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि चीनी अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत दिए गए आंकड़े से ज्यादा खराब है।
उक्त सूचकांक के पिछले नौ महीनों के आंकड़े यही कहानी बयान कर रहे हैं, जिन्हें चीनी सरकार ज्यादा छुपा नहीं सकती थी। यह सूचकांक आठ बार गिरा, जबकि सितंबर में बढ़ा है। चीन की अर्थव्यवस्था पर कोरोना के बाद लगातार चोट हो रही है। शी जिनपिंग ने जिस तरह कुप्रबंधन और लापरवाही से संक्रमण को बढ़ावा दिया, उसकी दुनिया ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। कोरोना महामारी ने विश्व समुदाय को जो घाव दिए हैं, उनके निशान दशकों तक रहेंगे।
वहीं, चीन में शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। शी जिनपिंग के चहेते पदाधिकारियों की 'पांचों अंगुलियां घी में और सिर कड़ाही में' हैं। वे जमकर दौलत बटोर रहे हैं। इस लूटमार में सैन्य अधिकारी भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे। हाल में पीएलए के नौ वरिष्ठ जनरलों का कच्चा चिट्ठा शी जिनपिंग के सामने खोला गया तो उन पर गाज गिरी।
चीनी जनता जानती है कि ये जनरल अकेले ऐसे पदाधिकारी नहीं हैं, जिन्होंने भ्रष्टाचार किया है। अगर जांच का दायरा बढ़ाया जाए तो कई और पदाधिकारी नपेंगे। अभी शी जिनपिंग की प्राथमिकता अर्थव्यवस्था में जान फूंकना है, जिसका चक्का धीमा पड़ता जा रहा है। इसमें पर्यटन बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इसके लिए चीन ने अपने धुर विरोधी अमेरिका के लिए वीजा नियमों में आसानी करने का फैसला किया है।
कोरोना संक्रमण के विस्तार के बाद चीन से विदेशी पर्यटक कन्नी काटने लगे थे। यह सिलसिला आज भी जारी है। उसका वुहान शहर, जो पहले पर्यटन के लिए मशहूर था, अब वायरस के लिए बदनाम है। ऐसे में वीजा नियमों में आसानी के बावजूद कौन विदेशी पर्यटक जोखिम लेना चाहेगा? जान है तो जहान है!


