यह स्थिति क्यों?

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण का स्तर कम करने के लिए ठोस समाधान खोजना होगा

यह स्थिति क्यों?

13 नवंबर से 20 नवंबर तक प्रस्तावित वाहनों की सम-विषम योजना लागू नहीं होगी

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण किस स्तर तक पहुंच गया है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उच्चतम न्यायालय ने भी टिप्पणी की है। 'पराली जलाने की घटनाओं पर रोक लगानी होगी' - न्यायालय अब परिणाम देखना चाहता है। पराली जलाने से रोकने के कई प्रयासों के बावजूद दिल्ली में वायु प्रदूषण की यह स्थिति क्यों है? अगर राष्ट्रीय राजधानी की हवा सांस लेने लायक नहीं रहेगी तो वहां से देश का राज-काज कैसे चलेगा?

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उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी में आम जनता की सेहत को लेकर फिक्र महसूस की जा सकती है। उसके ये शब्द सरकारों को आईना दिखाते हैं कि 'प्रदूषण से जुड़ीं कई रिपोर्टें और समितियां हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं हो रहा।' होगा भी कैसे? पर्यावरण स्वच्छता को हमने बहुत गंभीरता से नहीं लिया। ये तो अब हालात मुश्किल हो गए, इसलिए नेतागण के बयान आने लगे हैं। अन्यथा जैसे चला आ रहा था, आगे भी चलता रहता।

निस्संदेह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण का स्तर कम करने के लिए ठोस समाधान खोजना होगा। इन दिनों सोशल मीडिया पर कभी खबर आती है कि वाहनों पर सम-विषम योजना लागू होगी, कभी खबर आती है कि नहीं लागू होगी। जनता एक ओर तो प्रदूषण से परेशान है। वहीं, सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली अपुष्ट खबरें भी सिरदर्द से कम नहीं हैं।

आखिरकार दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने शुक्रवार को कह दिया कि 13 नवंबर से 20 नवंबर तक प्रस्तावित वाहनों की सम-विषम योजना लागू नहीं होगी, क्योंकि बारिश के कारण यहां की वायु गुणवत्ता में 'उल्लेखनीय' सुधार हुआ है। अब दीपावली के बाद वायु गुणवत्ता की स्थिति की समीक्षा की जाएगी। अगर गुणवत्ता में अचानक गिरावट पाई गई तो सम-विषम योजना पर फैसला लिया जा सकता है।

पता नहीं यह 'उल्लेखनीय' सुधार कितना हुआ है और जरूरत पड़ने पर सम-विषम योजना से हवा कितनी साफ होगी! यह आग लगने पर कुआं खोदने जैसी ही प्रतीत होती है। अगर वाहनों से निकलने वाले धुएं को नियंत्रित करना था तो इसके लिए बहुत पहले तैयारियां करनी थीं। ढूंढ़ने वाले सम-विषम योजना की काट भी ढूंढ़ लेंगे। समृद्ध घरों में पहले से ही दो या इससे ज्यादा गाड़ियां होती हैं। अगर नहीं हैं तो वे एक गाड़ी (सम या विषम नंबर वाली, जो उनके पास पहले नहीं थी) और खरीद लेंगे। उसके बाद एक दिन सम नंबर वाली गाड़ी चलाएंगे, दूसरे दिन विषम नंबर वाली! परेशान होगा आम आदमी, जो एक और गाड़ी खरीदने में समर्थ नहीं है।

इससे सार्वजनिक परिवहन तंत्र पर अचानक दबाव बढ़ेगा। बड़ी तादाद में लोग मेट्रो व बसों में सवारी के लिए आएंगे। अब या तो ट्रेनों व बसों की संख्या बढ़ाई जाए या उनके फेरों में बढ़ोतरी की जाए। क्या इसके लिए कोई तैयारी की गई है? सर्वोच्च न्यायालय भी सम-विषम योजना की प्रभावशीलता पर सवाल उठा चुका है, जिसके बाद गोपाल राय को 'समीक्षा' की बात कहनी पड़ी।

महाराष्ट्र के लातूर शहर के एक कॉलेज ने पर्यावरण की स्वच्छता के लिए जो कदम उठाया है, देश के अन्य स्कूल-कॉलेजों को इसकी ओर ध्यान देना चाहिए। राजर्षि साहू कॉलेज में 100 स्वदेशी और दुर्लभ पेड़ों का एक 'पुस्तकालय' स्थापित किया गया है। इससे विद्यार्थियों को इन पौधों के बारे में अधिक जानकारी मिलेगी। वे इनके संरक्षण के लिए प्रोत्साहित होंगे। ऐसे 'वृक्ष पुस्तकालय' सभी संस्थानों में हों तो वायु प्रदूषण जैसी समस्या का दृढ़ता से सामना किया जा सकता है।

विद्यार्थियों को प्रोत्साहन देने के लिए इसे पढ़ाई और परीक्षा से जोड़ा जा सकता है, लेकिन केवल पाठ याद करने तक नहीं, बल्कि धरातल पर कुछ करना होगा। जो विद्यार्थी पांच पौधे लगाकर उनका ध्यान रखें, उन्हें इसके अंक दिए जाएं। कई जगह, विवाह प्रमाण पत्र लेने वाले दंपतियों से नवाचार के तहत पौधे लगवाए जा रहे हैं। इसका विस्तार अन्य क्षेत्रों तक होना चाहिए। जब लोगों को पौधे लगाने पर पर्यावरण के साथ निजी लाभ भी दिखेगा तो कुछ ही वर्षों में देश हरा-भरा हो जाएगा।

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